संपादकीय विशेष | उत्तराखंड – हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स “टिहरी विस्थापितों के नाम पर भ्रष्टाचार का सिंचाई तंत्र – कब तक चलेगा ये गोरखधंधा?” ✍️ अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता | 27 जुलाई 2025

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जिन्होंने घर छोड़े, उन्हें आज भी ठिकाना नहीं मिला; और जिन्होंने सिस्टम को छोड़ा नहीं, उन्हें दो-दो भूखंड मिल गए।” — यही वाक्य इस पूरे प्रकरण की सच्चाई को बयां करता है।

टिहरी बांध परियोजना देश की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं में से एक रही है, लेकिन इस परियोजना के नाम पर जो ‘नियोजन और पुनर्वास’ की साजिशें चल रही हैं, वह अब किसी छिपे रहस्य का हिस्सा नहीं रहीं।

देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल की जनसुनवाई में सामने आए घोटालों की श्रृंखला इस बात की गवाही दे रही है कि कैसे बांध विस्थापितों की पीड़ा को मुनाफे का माध्यम बना लिया गया है। पुनर्वास खंड ऋषिकेश के तहत भूखंडों का आवंटन अब ‘पुनर्वास’ नहीं बल्कि ‘पुनः भ्रस्टाचार’ योजना बन चुकी है।


कुछ चौंकाने वाले मामले:

  1. फूलसनी में दोहरी आवंटन की पोल

    ऋषिकेश की पुलमा देवी ने वर्ष 2007 में चंदरू से खरीदी गई 200 वर्ग मीटर भूमि पर हक जताया। लेकिन पुनर्वास खंड ने इसी भूमि को 2019 में फिर चंदरू के नाम कर दिया। यह सवाल उठाता है – क्या विभाग के रिकॉर्ड्स में अद्यतन व्यवस्था नहीं या जानबूझकर घोटाला?

  2. विकासनगर, अटकफार्म में ताजगी से सड़ांध

    वर्ष 2017 में सुमेर चंद्र व हेमंत कुमार को भूखंड मिला, लेकिन रिकॉर्ड में नाम लक्ष्मी देवी, शैलेंद्र कुमार और हेमंत पांडे के निकले। कब्जा किसी चौथे व्यक्ति कुंदन लाल जोशी का था।

    ये “एक आवंटन, चार दावेदार” जैसा प्रकरण विभाग की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

  3. अजबपुर कलां में ‘कॉपी पेस्ट’ घोटाला

    इरशाद अहमद को 2004 में दी गई भूमि को विभाग ने अगले ही साल फतरू को आवंटित कर दिया। 20 साल की लड़ाई के बाद 2024 में जाकर आवंटन रद्द हुआ। ये व्यवस्था की भ्रष्ट और अमानवीय प्रकृति का जीता-जागता उदाहरण है।


एक साल में उजागर हुए बड़े भ्रष्टाचार:


अब जरूरी है – कार्रवाई नहीं, उदाहरण बने

देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल की संस्तुति पर यदि सचमुच विजिलेंस या सीबीसीआईडी जांच होती है, तो उम्मीद है कि सैकड़ों पीड़ितों को न्याय मिलेगा। लेकिन अगर ये भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दबा ‘रूटीन प्रोसेस’ बनकर रह गया, तो उत्तराखंड के प्रशासनिक तंत्र की साख और टूट जाएगी।

क्या सिंचाई विभाग, पुनर्वास विभाग, और राजस्व विभाग में गठजोड़ नहीं है? क्या दोहरी आवंटन की छूट बिना अंदरूनी सांठगांठ के संभव है?

इन सवालों के जवाब उत्तराखंड की जनता चाहती है – बिना राजनीति, बिना लीपापोती के।


संपादकीय सवाल सरकार से –

  • क्या विस्थापितों के नाम पर चल रहे ‘भूखंड व्यापार’ में शामिल अफसरों पर कार्रवाई होगी?
  • कब तक जांच की सिफारिशें “अधूरी प्रक्रिया” बनकर फाइलों में दफन होंगी?
  • जिन लोगों ने एक से अधिक भूखंड ले रखे हैं, क्या उनसे संपत्तियां वापस ली जाएंगी?

टिहरी बांध ने जिन लोगों का जीवन जलमग्न किया, उनके पुनर्वास के नाम पर भ्रष्टाचार की नदियाँ बहाई जा रही हैं। विस्थापन का दंश झेलने वाले लोग आज भी न्याय की भीख मांग रहे हैं, और अफसर-नेता वर्ग उनकी पीड़ा को लाभ का धंधा बना बैठे हैं।

अब वक्त आ गया है कि सरकार केवल घोषणाएं नहीं, उदाहरण पेश करे – ताकि जो विस्थापित हैं, उन्हें आश्रय मिले और जो भ्रस्ट हैं, उन्हें दंड।



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