उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के नतीजे केवल सत्ता समीकरणों का पुनर्गठन नहीं, बल्कि जनमत की बदलती प्रवृत्ति और राजनीतिक चेतना की गूंज हैं। इन चुनावों ने यह साबित कर दिया कि अब मतदाता ‘चेहरे’ नहीं, ‘चरित्र’ और ‘कार्य’ को वोट देता है। बद्रीनाथ से लेकर नैनीताल, चमोली से उत्तरकाशी तक जो परिणाम आए हैं, उन्होंने भाजपा, कांग्रेस दोनों को आईना दिखाया है और निर्दलीयों को एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभारा है।
महेंद्र भट्ट और महंत दिलीप रावत के गढ़ में हार – क्या बदल रहा है जनविश्वास?रुद्रपुर (उधम सिंह नगर): जिला पंचायत चुनाव 2025 में खानपुर पूर्व सीट से सुषमा हालदार ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को लगभग 8000 मतों के भारी अंतर से हराकर क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया। सुषमा हालदार, जो पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के समर्थन व मार्गदर्शन में चुनावी मैदान में उतरी थीं, को जनता का जबरदस्त समर्थन मिला।जीत के बाद भव्य विजय जुलूस निकाला गया, जिसकी अगुवाई खुद राजकुमार ठुकराल ने की। ढोल-नगाड़ों और फूल-मालाओं से सजी सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब, इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बना। जनता में खासा उत्साह देखने को मिला। सुषमा हालदार ने अपने संबोधन में कहा कि यह जीत जनता की जीत है और वह क्षेत्र की सेवा के लिए पूर्ण समर्पण से कार्य करेंगी।
पूर्व विधायक ठुकराल ने कहा कि यह जीत सत्य, सेवा और समर्पण की विजय है। उन्होंने मतदाताओं का आभार जताते हुए भरोसा दिलाया कि खानपुर क्षेत्र के विकास के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। यह परिणाम आगामी चुनावों के लिए भी भाजपा के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।
बद्रीनाथ में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की अगुवाई में पार्टी को करारी शिकस्त मिली। यह वही क्षेत्र है जिसे भाजपा का अभेद्य गढ़ माना जाता था। वहीं लैंसडाउन से विधायक महंत दिलीप रावत की पत्नी नीतू रावत को कांग्रेस की प्रत्याशी ज्योति पटवाल से मिली हार केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सत्ताधारी दल के प्रति आक्रोश का जनादेश है।
यह पराजय बताती है कि राजनीतिक रसूख और रिश्तेदारी अब ‘गैरंटी कार्ड’ नहीं रहे। जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से संवाद, विकास और जवाबदेही चाहती है।
चमोली और उत्तरकाशी: निर्दलीयों की आंधी, दलों की रणनीति पर सवाल
चमोली जनपद, जो वर्षों से भाजपा-कांग्रेस के बीच घनघोर मुकाबलों का गवाह रहा है, इस बार निर्दलीय प्रत्याशियों की प्रयोगशाला बन गया। 26 में से 17 सीटों पर निर्दलीयों की जीत यह दर्शाती है कि लोग अब परंपरागत दलों की खींचतान से ऊब चुके हैं। वहीं उत्तरकाशी में कांग्रेस समर्थित और निर्दलीय प्रत्याशियों ने 21 सीटें जीतकर भाजपा को झटका दे दिया।
ये जिले अब सत्ता नहीं, ‘संपर्क’ की राजनीति के संदेशवाहक बन रहे हैं। पंचायत चुनावों में स्थानीय लोकप्रियता और सशक्त जनसंपर्क निर्णायक बन गए हैं।
देहरादून, पौड़ी और अल्मोड़ा – जहां कांग्रेस ने दिखाई वापसी की झलक
राजधानी देहरादून में भाजपा 13 सीटों पर जीत दर्ज कर भले राहत की सांस ले रही हो, लेकिन 10 निर्दलीय और 7 कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों की जीत ने तस्वीर को त्रिकोणीय बना दिया है। पौड़ी जिले में भाजपा ने 18 सीटें जीतीं, लेकिन नीतिगत असंतोष और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी के कारण पार्टी की कई दिग्गज हार गए। अल्मोड़ा में तो कांग्रेस 21 सीटों के साथ सबसे आगे रही, लेकिन किसी को स्पष्ट बहुमत न मिलने से ‘किंगमेकर’ की भूमिका निर्दलीयों को मिल गई है।
महिलाओं की भागीदारी – पंचायत राजनीति का नया चेहरा?उत्तरकाशी की 28 में से 15 सीटों पर महिलाओं की जीत और चमोली, अल्मोड़ा, पौड़ी में महिला प्रत्याशियों के प्रबल प्रदर्शन से यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड की पंचायत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अब केवल प्रतीकात्मक नहीं रही। वे वास्तविक सत्ता-साझेदार बन रही हैं। इससे राज्य की जमीनी राजनीति में संवेदनशीलता, पारदर्शिता और सामाजिक मुद्दों पर नया विमर्श पनपेगा।
निर्दलीयों का उदय – क्या यह राष्ट्रीय दलों के लिए चेतावनी है?चमोली, उत्तरकाशी, नैनीताल और बागेश्वर जैसे जिलों में निर्दलीयों का प्रदर्शन केवल असंतोष का संकेत नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक जनराजनीति का उदय है। लोगों ने साफ संदेश दे दिया है – “अगर पारंपरिक दल नहीं सुधरे तो जनता अपना नेतृत्व खुद चुनेगी।”
यह भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए एक कड़ा सबक है कि महज चुनावी प्रचार, पोस्टर-बैनर और हाईकमान का चेहरा अब जीत की गारंटी नहीं रहा।
बदलते उत्तराखंड की गूंज?पंचायत चुनाव 2025 के नतीजे बताते हैं कि उत्तराखंड की जनता अब विकल्प चाहती है, सकारात्मक नेतृत्व चाहती है, और राजनीति में जनभागीदारी की गारंटी चाहती है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।
भाजपा और कांग्रेस को अब आत्ममंथन करना होगा – संगठन की जमीनी पकड़ मजबूत करनी होगी, कार्यकर्ताओं को सम्मान देना होगा और “जनता से संवाद” को प्राथमिकता देनी होगी।
और जहां तक निर्दलीयों की बात है – अब उनके सामने अग्निपरीक्षा है। वे सिर्फ सियासी समीकरण न बनाएं, बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों में गणतांत्रिक जवाबदेही का उदाहरण प्रस्तुत करें।चमोली: उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे बीते 31 जुलाई को सामने आए हैं। जिसमें कई प्रत्याशियों ने जीत का ताज पहना है तो, वहीं कई प्रत्याशियों को हार का सामना भी करना पड़ा है। इन्हीं में पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी और भाजपा जिलाध्यक्ष गजपाल बर्तवाल भी पंचायत चुनाव हार गए हैं।
2025 के पंचायत चुनावों ने उत्तराखंड को नई दिशा दी है – यह राजनीतिक पुनर्जागरण की शुरुआत है। यहाँ से जनतंत्र की जड़ें और भी गहरी होंगी… बशर्ते हर जीत, केवल सत्ता की नहीं, सेवा की जीत बने।

