रुद्रपुर अब उत्तराखंड का औद्योगिक शहर नहीं, बल्कि एक ‘माफिया-संचालित माडल’ में तब्दील हो चुका है। शहर की हर गली, हर मोहल्ला, हर कोना अब किसी न किसी अवैध धंधे की प्रयोगशाला बन चुकी है। चाहे बात नशे की हो, मिलावटी खाद्य पदार्थों की हो, दूध माफिया, शराब माफिया, ज़मीन माफिया या फिर नकली दवा माफिया—हर माफिया को यहां प्रशासनिक संरक्षण मिला हुआ है। पुलिस चौकी से महज़ सौ मीटर दूर मेडिकल स्टोर्स में मादक दवाओं की धड़ल्ले से बिक्री हो रही है, तो कहीं आवास विकास की कालोनियों में सुबह 4 बजे से ही नकली पनीर व दूध का कारोबार चरम पर है।


आश्चर्य इस बात का नहीं कि ये सब हो रहा है। असली चिंता की बात यह है कि यह सब खुलेआम, पुलिस व प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है, और कोई कुछ नहीं कर रहा।
औचक निरीक्षण या ‘चुनिंदा कार्रवाई’?
बाजपुर में वरिष्ठ औषधि निरीक्षक नीरज कुमार की अगुवाई में हुए छापेमारी अभियान में कुछ मेडिकल स्टोर्स पर अनियमितताएं मिलने पर कार्यवाही की गई। ये कार्यवाही स्वागत योग्य है, लेकिन सवाल उठता है—क्या यही निरीक्षण रुद्रपुर में नहीं किया जाना चाहिए था, जहां मेडिकल स्टोर्स नशे की मंडी में तब्दील हो चुके हैं?
रुद्रपुर में हर दूसरा मेडिकल स्टोर मादक दवाओं का गुप्त विक्रय केंद्र बन चुका है। फॉर्मासिस्ट गायब, बिलिंग का कोई रिकॉर्ड नहीं, और पुलिस की आंखें मूंदे हुए हैं। यह नशा केवल शरीर को नहीं, समाज की आत्मा को खोखला कर रहा है।
आवास विकास—‘हीरोइन हब’ या आवासीय क्षेत्र?
रुद्रपुर का आवास विकास, जो कभी शहरी नियोजन का उदाहरण बन सकता था, अब पूरे उत्तराखंड में नशे की राजधानी के रूप में कुख्यात होता जा रहा है। हीरोइन से लेकर नशीले कैप्सूल, सस्ती सिरप तक की बिक्री यहां खुलेआम होती है। सुबह 4 बजे से आवास विकास, जगतपुरा रोड, और कुमावत क्षेत्र में गाड़ियों की लंबी कतारें लगती हैं—जो दूध, पनीर या नशे की खेप लेकर निकलती हैं।
यह गतिविधि इतनी सुनियोजित है कि बिना प्रशासनिक सहमति के संभव ही नहीं। सप्लाई इंस्पेक्टर, खाद्य सुरक्षा अधिकारी, पुलिस, और टैक्स विभाग के अफसर सभी चुपचाप अपनी “मासिक कमाई” की गिनती में व्यस्त हैं।
भ्रष्टाचार के केंद्र में नौकरशाही और सत्ताधारी गठजोड़
दूध माफिया ₹20 प्रति किलो में नकली दूध बनाकर उसे ₹50 किलो में बेच रहा है। पनीर, घी, मक्खन—सब नकली है और दिल्ली से ‘आयातित’ होता है। टैम्पो, टेम्पो ट्रेवलर और भारी वाहन अवैध सामान से भरे सुबह-सुबह निकलते हैं। और ये सब तब हो रहा है जब शहर का प्रशासन इसे देख रहा है, पहचान रहा है, मगर मौन है।
क्यों मौन है प्रशासन?
क्योंकि खेल बहुत बड़ा है। सत्ता, नौकरशाही और माफिया की ये त्रिमूर्ति रुद्रपुर को एक ‘काला हब’ बनाने में जुटी है। सत्ताधारी नेता वोटबैंक के लिए आंखें मूंदे हुए हैं, जबकि अधिकारी मोटी कमाई में मशगूल हैं।
समाधान क्या है?
- प्रथम चरण में रुद्रपुर को ‘माफिया मुक्त’ घोषित कर विशेष टास्क फोर्स बनाई जाए।
- हर मेडिकल स्टोर की सघन जांच हो, CCTV अनिवार्य हो, और बिना फॉर्मासिस्ट लाइसेंस रद्द हों।
- दूध व पनीर की हर इकाई का खाद्य प्रयोगशाला परीक्षण कराया जाए और फर्जी फैक्ट्रियों को सील किया जाए।
- आवास विकास और कुमावत क्षेत्र में सुबह 3 बजे से ही पुलिस व SOG की संयुक्त छापेमारी हो।
- शहर के हर थाना-चौकी की 6 माह की रिपोर्ट की स्वतंत्र जांच हो।
एक अंतिम चेतावनी—
रुद्रपुर अगर अब भी नहीं संभाला गया, तो यह उत्तराखंड की साख को लील जाएगा। आने वाले वर्षों में यह शहर केवल अखबार की हेडलाइन बनकर रह जाएगा—“रुद्रपुर: नशे, नकली दूध और भ्रष्टाचार की राजधानी”।
यह जिम्मेदारी पत्रकारों, जागरूक नागरिकों और ईमानदार अधिकारियों की है कि वे इस गिरते हुए शहर को उबारें। वरना ‘माफिया राज’ का यह मॉडल पूरे प्रदेश के लिए अंधकारमय भविष्य की नींव
रुद्रपुर, जो एक समय उत्तराखंड का औद्योगिक गौरव कहलाता था, आज एक ऐसी दिशा में बढ़ चुका है जहाँ सत्ता, सिस्टम और संगठित अपराध का त्रिकोण उसे रसातल की ओर खींच रहा है। इस शहर के हर कोने में कोई न कोई ‘माफिया’ सक्रिय है—दूध माफिया, नशा माफिया, ज़मीन माफिया, नकली दवा माफिया, शराब माफिया और सरकारी संरक्षण प्राप्त फूड माफिया। और यह सब कुछ प्रशासनिक संरक्षण और राजनीतिक मिलीभगत के बिना संभव ही नहीं।
I. मेडिकल माफिया: शहर के ‘केमिस्ट’ नहीं, नशे के सौदागर
11 जून को बाजपुर में हुई औचक छापेमारी एक सकारात्मक शुरुआत मानी जा सकती है, जहाँ कृष्णा मेडिकल स्टोर और जगदीश मेडिकल स्टोर जैसे प्रतिष्ठानों पर अनियमितताएं पाई गईं। पर सवाल यह है कि क्या ऐसी छापेमारी रुद्रपुर जैसे शहर में नहीं होनी चाहिए

