
उत्तराखंड राज्य आंदोलन एक जनसंग्राम था — उसमें रक्त बहा, माताएं विधवा हुईं, नौजवानों ने बलिदान दिया, और गांवों-शहरों की आत्मा ने राज्य निर्माण का सपना देखा। लेकिन आज, जब राज्य बने 25 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, तब उन्हीं आंदोलनकारियों को सरकारी तंत्र द्वारा बार-बार अपमानित किया जाना इस राज्य की सबसे बड़ी विडंबना बन चुका है।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
03 जून 2025 को चिन्यालीसौड (जिला उत्तरकाशी) में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संगठन की एक बैठक के दौरान जो हुआ, वह हर संवेदनशील नागरिक को विचलित करने के लिए काफी है। राज्य आंदोलनकारी संगठन के ज्ञापन के अनुसार, वे अपनी वर्षों पुरानी मांगों को लेकर जब जिला प्रशासन से मिलने पहुँचे, तो उन्हें अपमानित किया गया। प्रशासन ने उनसे 25,000 रुपये का फंड जमा करने की बात कहकर एक प्रकार से उनका उपहास किया — मानो वे कोई ठेकेदार हों, आंदोलनकारी नहीं।यह केवल एक दिन की घटना नहीं है। यह उस सोच की मिसाल है, जिसमें राज्य आंदोलनकारियों को आज भी ‘झंझट’ समझा जाता है।
ज्ञापन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि—


- वर्ष 2003 में जिन आंदोलनकारियों का सत्यापन हो चुका है, आज तक उन्हें पहचान पत्र तक नहीं मिला है।
- ज़िला स्तर पर गठित समिति वर्षों से निष्क्रिय है।
- राज्य स्तर पर भी सरकार द्वारा केवल प्रतीकात्मक कदम उठाए जाते हैं।
- आंदोलनकारियों को पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा और सम्मान के नाम पर केवल ‘घोषणाएं’ मिलती हैं।
और सबसे बड़ा सवाल—जब राज्य आंदोलनकारी संगठन द्वारा दिए गए पूर्व प्रस्ताव और मानकों के आधार पर फाइलें तैयार हैं, तो फिर यह ₹25,000 की मांग किस नैतिकता के तहत की गई?
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों ने अपने जीवन का स्वर्णिम समय उत्तराखंड को बनाने में लगा दिया, वे आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। उनके नाम पर आज राजनेता वोट मांगते हैं, पर उन्हें सम्मान देना भूल जाते हैं।
सवाल यह है कि—क्या उत्तराखंड की सरकार इतनी असंवेदनशील हो चुकी है कि वह राज्य निर्माण के सच्चे नायकों को ‘फॉर्मेलिटी’ के नाम पर लज्जित करे?क्या राज्य आंदोलनकारी केवल राज्य स्थापना दिवस पर याद किए जाने वाले प्रतीक बनकर रह जाएंगे?
चिन्यालीसौड
इस मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तराखंड शासन को अविलंब संज्ञान लेकर—संबंधित जिला प्रशासन से जवाब मांगना चाहिए,₹25,000 वाली फंड मांग को तत्काल निरस्त करना चाहिए,
- और राज्य आंदोलनकारियों को बिना शर्त पूर्ण मान्यता और सम्मान देना चाहिए।
- उत्तराखंड की आत्मा को और कलंकित न करें।यह मसला केवल उत्तरकाशी या बड़कोट का नहीं है। यह पूरे उत्तराखंड के उन लाखों दिलों का सवाल है, जिन्होंने “अलग उत्तराखंड राज्य” के लिए खून-पसीना बहाया। यदि आज वे अपमानित होते हैं, तो इसका अर्थ है कि यह व्यवस्था आज भी दिल्ली से चली रही है — जिसमें जनता की कुर्बानी को सिर्फ़ आँकड़ों में गिना जाता है।
