
काठगोदाम,हर वर्ष की तरह इस बार भी बाबा नीब करौरी महाराज के कैंची धाम स्थापना दिवस पर हजारों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से दर्शन करने नैनीताल जनपद में पहुंचे। किंतु इस वर्ष व्यवस्था के नाम पर जो नजारा श्रद्धालुओं ने देखा, वह आस्था पर नहीं, व्यापार पर केंद्रित था।
जहाँ एक ओर बाबा नीब करौरी की कृपा के लिए लोग सैकड़ों किलोमीटर चलकर आते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक कुंठा और अवसरवादी सोच ने इस पुण्य यात्रा को एक व्यापारिक मंडी बना डाला।


🚫 मीडिया पर “नो एंट्री” – डर किस बात का?
सबसे पहले तो यह सवाल उठता है कि कैंची धाम जैसे सार्वजनिक, आध्यात्मिक स्थल पर मीडिया की नो एंट्री क्यों? क्या उत्तराखंड पुलिस और शासन को डर है कि मीडिया कुछ ऐसा उजागर कर देगा जो छिपाया जा रहा है? धार्मिक आयोजन में पारदर्शिता होनी चाहिए, न कि सेंसरशिप। श्रद्धालु अपने अनुभव साझा करें और मीडिया उस भावना को दुनिया तक पहुंचाए, यही तो लोकतंत्र की खूबसूरती है। लेकिन मीडिया को बाहर कर देना? यह तो उत्तराखंड की देवभूमि की परंपरा का गला घोंटना है।
🛑 निजी वाहनों पर रोक, लेकिन महंगे विकल्प चालू
काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर उतरते ही श्रद्धालुओं के लिए उनके निजी टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर और फोर-व्हीलर कैंची धाम तक प्रतिबंधित कर दिए गए। इसके बजाय जो व्यवस्था की गई वह श्रद्धा नहीं, शुद्ध व्यापार प्रतीत होती है – ₹140 प्रति व्यक्ति शटल सेवा और ₹200 प्रति व्यक्ति टैक्सी सेवा। गरीब, मजदूर, बुजुर्गों की श्रद्धा अब उनके जेब की हैसियत पर निर्भर करती दिख रही है।
🪖 हेलमेट टैक्स और स्थानीय रोजगार या लूट?
हद तो तब हो गई जब हेलमेट रखने पर ₹50 किराया तय कर दिया गया। घरों को पार्किंग स्थल बना दिया गया, जिसका ₹50 शुल्क वसूला जा रहा है। यह ठीक है कि स्थानीय लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है, लेकिन सवाल यह है – क्या यह नियोजित व्यवस्था है या खुली लूट? क्या इसके लिए सरकार ने कोई गाइडलाइन तय की? क्या इसका राजस्व भी रिकॉर्ड में है?
और जब पुलिस खुद कह रही है कि हेलमेट का चार्ज देना पड़ेगा, तो यह स्पष्ट है कि यह सब कुछ उनके “संज्ञान” में है। यानी जनता से जबरन वसूली को प्रशासन ने वैधता का आवरण पहना दिया है।
🤯 श्रद्धालुओं का आक्रोश और भीड़ में कमी
सूत्रों के अनुसार इस बार भीड़ पिछली बार की तुलना में कम रही, और जो श्रद्धालु काठगोदाम से बिना दर्शन किए लौटे, वे न केवल निराश थे बल्कि प्रशासन के खिलाफ आक्रोश में भी दिखे। क्या उत्तराखंड सरकार अब आस्था के आयोजनों में भी “कमाई” तलाश रही है?
✍️ उत्तराखंड सरकार से प्रश्न:
- क्या मीडिया की एंट्री पर रोक संविधान सम्मत है?
- क्या श्रद्धालुओं से ₹50 हेलमेट शुल्क और ₹140 शटल सेवा का कोई अधिकृत आदेश है?
- क्या यह धार्मिक आयोजन है या ठेके पर दिया गया व्यापारिक आयोजन?
- क्या निजी वाहनों पर रोक और टैक्सी शुल्क की जांच किसी नियामक संस्था द्वारा की गई?
उत्तराखंड सरकार और नैनीताल प्रशासन को यह नहीं भूलना चाहिए कि कैंची धाम केवल पर्यटक स्थल नहीं, यह श्रद्धा का केंद्र है। यहां आस्था आती है, ईमानदारी से सेवा की उम्मीद लेकर। अगर सरकार इसे टोल टैक्स वाली सड़क समझेगी और मीडिया को प्रतिबंधित करेगी, तो यह जन भावना के साथ धोखा होगा।
‘देवभूमि’ को ‘टोलभूमि’ में तब्दील करना बंद कीजिए।
📌 हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की ओर से यह स्पष्ट मांग है कि:
- मीडिया को पूर्ण अनुमति दी जाए।
- हेलमेट और पार्किंग पर जबरन वसूली बंद हो।
- श्रद्धालुओं की जेब से आस्था की कीमत न वसूली जाए।
- इस पूरे मसले की न्यायिक जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
कृपा बाबा की सच्ची होती है, लेकिन व्यवस्था अगर भ्रष्ट हो जाए, तो पुण्य यात्रा भी दुर्भाग्य बन जाती है।
✒️ अवतार सिंह बिष्ट, संपादक
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
