
उत्तराखंड का स्वास्थ्य विभाग वर्षों से कराह रहा था। सरकारी अस्पतालों की दीवारों पर पपड़ीदार पेंट, हेल्प डेस्क पर उपेक्षा की मोटी परत, मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार की बदबू और विभागीय दफ्तरों में बैठी साजिशों की अदृश्य मशीनरी — यह वो असलियत थी जिसे लाखों उत्तराखंडी महसूस करते थे, पर कह नहीं पाते थे। ✍️ अवतार सिंह बिष्ट | संपादक, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्सलेकिन आज, जब प्रदेश सरकार स्वास्थ्य विभाग में स्वतंत्र आयुक्त की नियुक्ति की ऐतिहासिक तैयारी में जुटी है, तो इसका श्रेय सिर्फ सत्ता को नहीं, बल्कि उन दो जनयोद्धाओं को भी जाना चाहिए जिन्होंने तंत्र के खिलाफ निडर आवाज़ उठाई — संजय कुमार पाण्डे और चंद्र शेखर जोशी।यह सिर्फ एक नियुक्ति की खबर नहीं है, बल्कि वर्षों से सड़ांध मारती व्यवस्था को बदलने की शुरुआत है। उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हो रहा है कि स्वास्थ्य विभाग की स्वतंत्र निगरानी के लिए आयुक्त स्तर का अधिकारी बैठाया जाएगा, जो सीधी जिम्मेदारी के साथ काम करेगा। यह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों का परिणाम जरूर है, लेकिन सवाल यह है कि ये निर्देश क्यों और किसके दबाव में जारी हुए?उत्तर स्पष्ट है — जनसंघर्ष की तपिश और दस्तावेजों की धार। पाण्डे और जोशी ने न तो राजनीतिक मंच का सहारा लिया और न ही मीडिया में चमकने के लिए कोई ड्रामा रचा। इन्होंने आरटीआई, जनहित याचिकाएं, कानूनी दस्तावेज़, और सीधा संवाद अपनाया — प्रधानमंत्री कार्यालय, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, ईडी, मुख्य सचिव और उच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुँचाई। इनकी शिकायतों में दम था, साक्ष्य इतने ठोस थे कि शासन को झुकना पड़ा।यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि स्वास्थ्य महानिदेशालय से जुड़े हालिया पत्र में सिर्फ दो नामों को गंभीरता से लिया गया — चंद्र शेखर जोशी और संजय पाण्डे। यह दर्शाता है कि बाकी सब चुप थे या समझौता कर चुके थे। इन दोनों ने न केवल चुप्पी तोड़ी, बल्कि व्यवस्था को हिलाने का माद्दा दिखाया। यह एक असाधारण उदाहरण है कि जब एक नागरिक सच बोलने का साहस करता है, तो पूरी व्यवस्था को जवाब देना पड़ता है।लेकिन यह अंत नहीं, बल्कि एक शुरुआत है। सूत्रों से संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में ये दोनों कार्यकर्ता विभागीय घोटालों, फर्जी बिलिंग, पदों के दुरुपयोग और आमजन से जुड़े तमाम मुद्दों पर और बड़े खुलासे करने जा रहे हैं। यदि शासन ने वाकई ईमानदारी की राह चुनी है, तो यह सफर हर डॉक्टर, हर नर्स, हर स्वास्थ्यकर्मी और सबसे बढ़कर हर मरीज के अधिकारों की पुन: स्थापना की ओर जाएगा।इस परिवर्तन की एक और खूबसूरत बात यह है कि इसमें किसी राजनीतिक दल का झंडा नहीं लहराया गया। यह जन चेतना की जीत है, न कि किसी पार्टी की। ये दोनों कार्यकर्ता हर उस आमजन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अस्पतालों में दवाई के इंतज़ार में दम तोड़ देता है, जो रिश्वत देने के बावजूद भर्ती नहीं हो पाता, और जो सिस्टम से हारकर चुपचाप घर लौट आता है।अब जब सरकार ने पहली बार इस विभाग में आयुक्त जैसे निगरानी पद की योजना बनाई है, तो यह न केवल एक प्रशंसनीय कदम है, बल्कि आने वाले कल की नीति संरचना में पारदर्शिता और जवाबदेही की ज़मीन भी तैयार करेगा।अब वक्त है इस चेतना को व्यापक आंदोलन में बदलने का।
उत्तराखंड का हर नागरिक, हर सामाजिक कार्यकर्ता और हर पत्रकार यदि ईमानदारी से अपने हिस्से की जवाबदेही निभाए, तो सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही नहीं — पूरे शासन तंत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है।और आखिर में —
जब सवाल जीवन और मृत्यु का हो, तो चुप रहना गुनाह है।
चंद्र शेखर जोशी और संजय पाण्डे ने यह गुनाह नहीं किया — और आज बदलाव दस्तक दे रहा है।
संपादकीय लेख हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
✍️ अवतार सिंह बिष्ट



