


दो दिग्गजों की जंग के कारण लोकसभा का एक उपचुनाव देश की राजनीति में सबसे बड़ा चर्चा का विषय था। इस उपचुनाव में पूरा पहाड़ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बहुगुणा के समर्थन में इंदिरा के खिलाफ आ खड़ा हुआ था।


उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में 1982 के उपचुनाव को सबसे दिलचस्प चुनाव माना जाता है। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस में बगावत करके गढ़वाल सांसद हेमवती नंदन बहुगुणा ने 1982 में पार्टी और संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। गढ़वाल सीट पर उपचुनाव हुआ और एक बार फिर बहुगुणा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर मैदान में थे।
इंदिरा गोपनीय ढंग से पहुंची थी देहरादून
कांग्रेस ने चंद्र मोहन सिंह नेगी को बहुगुणा के खिलाफ उतारा। नेगी को इंदिरा के प्रतिनिधि के तौर पर देखा गया। बहुगुणा इस विद्रोह का पहाड़ का एक बड़ा वर्ग कायल था। जब बहुगुणा ने चुनावी सभा की तो इतनी भीड़
जुटी की पांव रखने के लिए जमीन नहीं बची।
तब ये अटकलें भी लगी कि बहुगुणा की जमीनी का ताकत का अंदाजा लगाने के लिए इंदिरा गोपनीय ढंग से देहरादून पहुंची थी और उन्होंने परेड ग्राउंड के एक स्थान पर गुप्त रूप से बहुगुणा का भाषण सुना। इंदिरा ने बहुगुणा को उन्हीं की जमीन पर हराने की ठानी थी।
उनकी गढ़वाल में एक दर्जन से अधिक सभाएं कीं। इंदिरा ने तत्कालीन गृह मंत्री जैल सिंह तक को उपचुनाव में भेजा। देहरादून के कांग्रेस भवन में उन्होंने कई दिन तक कैंप किया। सारी ताकत और मशीनरी झोंकने के बावजूद कांग्रेस बहुगुणा से चुनाव हार गई। गढ़वाल में बहुगुणा का शानदार प्रदर्शन रहा। देहरादून में जरूर उन्हें कड़ी चुनौती मिली। जब-जब लोस चुनाव आते हैं तो 1982 का उप चुनाव सहसा स्मृतियों में उतर आता है।

