रुड़की से अल्मोड़ा जा रहे एक दंपति की कार खाई में गिरने से उनकी मौत हो गई। इस हादसे में कार में सवार उनकी नौ वर्षीय बेटी की भी मौत हो गई है। जबकि ग्यारह वर्षीय बेटा घायल है। परिजनों ने बताया कि बच्चों का अल्मोड़ा में ही दाखिला करवाना था।

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हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

इसलिए दंपति दोनों को अपने साथ ले जा रहे थे। शायद भगवान को ये मंजूर नहीं था।

अल्मोड़ा में हुए हादसे से रुड़की में परिजनों में कोहराम मचा है। मुनेंद्र सिंह सैनी का परिवार रुड़की के साउथ सिविल लाइन में पिछले करीब तेरह सालों से रहता है। मुनेंद्र सिंह के चचेरे भाई दिनकर सैनी ने बताया कि मुनेंद्र सिंह यहां अपनी पत्नी, बेटे और बेटी के अलावा अपनी मां उषा और पिता ईश्वर चंद सैनी के साथ रहते थे।

उन्होंने बताया कि सोमवार तड़के मुनेंद्र सिंह सैनी अपने बेटे अर्णव, बेटी अदिति और पत्नी शशि सैनी के साथ अल्मोड़ा के लिए रवाना हुए थे। अगले दिन जैसे ही इस हादसे के बारे में पता चला तो परिजनों में कोहराम मच गया। उन्होंने बताया कि मुनेंद्र सिंह अपने बेटे और बेटी को रुड़की के एक निजी संस्थान में पढ़ा रहे थे।

लेकिन पत्नी की अल्मोड़ा में जॉब की वजह से तमाम तरह की दिक्कतें हो रही थी। ऐसे में उन्होंने अल्मोड़ा में ही बच्चों को पढ़ाने की प्लानिंग की थी। ग्रीष्मकालीन की वजह से बच्चों की छुट्टी चल रही है। इसलिए दोनों बच्चों को लेकर अपने साथ जा रहे थे। ताकि वहां के स्कूलों से भी बच्चों को रुबरु कराया जा सके। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

मां बोली, घर में इतने लोग क्यों आ रहे हैं
मृतक मुनेंद्र सिंह सैनी की मां उषा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर उसके यहां इतने लोग सुबह से क्यों आ रहे हैं। पुरुषों के साथ ही महिलाओं का भी आना जाना लगा रहा। सभी उषा को ये दिलासा दे रहे थे कि मुनेंद्र को मामूली चोट लगने की सूचना मिली तो वह कुशलक्षेम के लिए आ गए हैं। परिजनों ने मुनेंद्र की मां का ढांढस बढ़ाते हुए कहा कि ऊपर वाले की कृपा से सब कुछ ठीक होगा। मां को क्या पता था कि उसका बेटा, बहू और नातिन दुनिया को अब छोड़ चुके हैं।

मां को हादसे के बारे में नहीं बताया
मुनेंद्र सिंह सैनी की मां उषा सैनी करीब 62 साल की हैं। जो कि रुड़की के साउथ सिविल लाइन में रहती हैं। इस हादसे के बारे में मंगलवार को सभी परिजनों और रिश्तेदारों को पता चल गया। लेकिन किसी ने भी इस घटना के बारे में मंगलवार देर शाम तक मुनेंद्र सिंह की मां को नहीं बताया था। सभी को पता था कि मां को जैसे ही इसके बारे में पता चलेगा तो उन्हें बहुत बड़ा सदमा लगेगा।

अर्णव के सामने मां-बहन के बाद पापा ने भी दम तोड़ा
स्याल्दे। गर्मियों की छुट्टियां बिताने मां के साथ देघाट आ रहे अर्णव को शायद एहसास नहीं होगा कि आगे जिंदगी भर के गम उसका इंतजार कर रहे हैं। कुछ देर पहले कार में छोटी बहन से चुहलबाजी करते हुए, मम्मी-पापा से डांट खाते हुए 11 साल के अर्णव की जब खाई में बेहोशी टूटी तो उसकी दुनिया बिखर चुकी थी।

ऐसी आफत में जब समझदार शख्स का भी हौसला जवाब दे जाए। वह अकेला परिवार को बचाने की जद्दोजहद करता रहा। जिस बहन से अक्सर लड़ता था। आज कई बार पुचकार के बाद भी जब वह नहीं उठी तो उसने मां को झकझोरा, लेकिन मां ने भी आज पलटकर लाडले की बात का जवाब नहीं दिया। शाम अब काली रात का रूप लेती जा रही थी।

हादसे में बच गए अर्णव को दूर-दूर तक कोई सहारा नजर नहीं आया तो वह चिल्लाया, लेकिन उसकी आवाज जंगल में गुम हो गई। अर्णव ने बताया कि इस बीच रात के एक पहर फिर उसके जीवन में उम्मीद लौटी जब पापा धीरे से कराहे। वह दौड़कर पापा के पास पहुंचा और उन्हें उठने में मदद की। इसके बाद पापा ने कलेजे के टुकड़े को गले से लगा लिया तो अर्णव को लगा अब पापा सब ठीक कर देंगे।

उसने पापा के सिर पर लगा खून पोंछा और उन्हें सहारा देकर मम्मी और छोटी बहन के पास लेकर गया। पापा ने कुछ देर शशि को फिर अपनी बेटी को झकझोरा, लेकिन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ तो फफक कर रो पड़े। अब अर्णव को एहसास हुआ कि मां और बहन उससे कभी बात नहीं करेंगे।

अर्णव ने बताया कि अंधेरे में ये जद्दोजहद चलती रही और कुछ देर बाद पापा भी शांत हो गए। इसके कुछ देर बात जब उजाला हुआ तो उसने फिर पापा को उठाने की कोशिश की, लेकिन अब उसे एहसास हो गया था कि पापा भी नहीं रहे।

इसके बाद वह गांव की तरफ चला। बिजौली गांव में जिस शख्स को उसने पहली बार ये कहानी सुनाई उसे बात पर भरोसा ही नहीं हुआ, लेकिन अर्णव का हुलिया देख उसे मानना पड़ा। इसके बाद ग्रामीण मौके पर पहुंचे और पुलिस को सूचना दी।

सुबह पांच बजे के करीब अंतिम बार बोले पापा
अर्णव की बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसके पिता ने सुबह करीब पांच बजे उससे आखिरी बार बात की। अर्णव ने बताया कि पापा आखिरी बार बोले, बेटा सिर में बहुत दर्द हो रहा है। इसके बाद उनके भी कराहने की आवाज शांत हो गई और कुछ देर बाद उजाला हो गया।

पहली बार मां के साथ देघाट आ रहे थे बच्चे
दुर्घटना में घायल स्टाफ नर्स शशि सैनी तीन माह पहले ही देघाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात हुई थीं। कुछ दिन पूर्व ही वह बच्चों से मिलने घर गई थीं। गर्मी की छुट्टियां थीं तो बच्चों ने देघाट घूमने की जिद की। बच्चों की जिद के आगे मां शशि कमजोर पड़ गईं और पति के साथ देघाट की ओर निकल आए, लेकिन देघाट पहुंचने से पहले ही हादसा हो गया और शशि सहित पति और बेटी की जान चली गई।


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