इस वर्ष 8 फरवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में हिंसा भड़क उठी थी. हिंसा इसलिए भड़की थी क्योंकि अधिकारियों ने मदरसा और उसके परिसर में नमाज अदा करने के लिए बने स्थान सहित अतिक्रमण को ध्वस्त कर दिया था. इस हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई थी और करीब 100 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे.
24 अगस्त को हाईकोर्ट ने फैसला रख लिया था सुरक्षित
एक न्यूज एजेंसी के मुताबिक न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें पुलिस को मामले में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए और समय दिया गया था. मामले में हाईकोर्ट ने 24 अगस्त को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या राम कृष्णन आरोपियों की ओर से हाई कोर्ट में पेश हुए थे. 8 फरवरी को मदरसा गिराए जाने के विरोध में कुछ लोगों ने बनभूलपुरा थाने और उसके बाहर खड़ी पुलिस व मीडिया कर्मियों की दर्जनों गाड़ियों में आग लगा दी थी.
इस घटना के बाद इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया था. यह कर्फ्यू कई दिनों तक था. वहीं, अब आरोपियों को जमानत दे दी गई है. नियमों के मुताबिक पुलिस को किसी भी मामले में आरोप पत्र दायर करने के लिए न्यूनतम 60 और अधिकतम 90 दिन का समय दिया जाता है. आरोपियों की गिरफ्तारी करने में पुलिस ने तेजी तो दिखाई लेकिन, चार्जशीट दायर में करने में देरी कर दी.
90 दिन का काम पुलिस 202 दिन में भी नहीं कर पाई. यही कारण है कि इतने दिन बाद सभी 50 उपद्रवियों को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि पुलिस ने हिंसा में शामिल लोगों की पहचान करने में गलती की. जिससे वह पर्याप्त साक्ष्य भी नहीं जुटा पाई. जिसके चलते सभी को जमानत मिल गई.
इन धाराओं में दर्ज हुआ था मुकदमा
बनभूलपुरा में अवैध मदरसे और नमाज स्थल तोड़ने को लेकर हुए बवाल में 5 लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में आरोपियों के विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, आइपीसी की धारा, 147, 148, 149, 120 बी, 307, 302, 332, 427, 435, उत्तराखंड प्रिवेंशन ऑफ डैमेज पब्लिक प्रापर्टी, आर्म्स एक्ट आदि के तहत मामला दर्ज किया गया था.