असल में हरियाणा चुनाव को लेकर कहा जा रहा था कि कांग्रेस एक अप्रत्याशित और ऐतिहासिक जीत दर्ज करेगी, उसके पक्ष में लहर चल रही थी। तमाम एग्जिट पोल भी क्योंकि इस ओर इशारा कर रहे थे, ऐसे में उन दावों को और ज्यादा मजबूती मिली। लेकिन अब जब नतीजे सामने आ चुके हैं, कांग्रेस को पिछले कुछ सालों का सबसे बड़ा सियासी झटका लगा है। कहना चाहिए बीजेपी ने उसके मुंह से जीत छीनने का काम किया।


हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट,
दिल्ली की राह हुई मुश्किल, AAP से पंगा
अब कांग्रेस ने सिर्फ राज्य नहीं गंवाया है बल्कि कहना चाहिए उसने इंडिया गठबंधन में अपनी स्थिति को काफी कमजोर कर लिया है। इस समय हरियाणा नतीजों को लेकर तमाम पार्टियां कांग्रेस को ही कोसने का काम कर रही हैं। कोई इसे कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस बता रहा है तो कोई इसे पार्टी के अहंकार के साथ जोड़ रहा है। यहां तक कहां जा रहा है कि अगर इंडिया गठबंधन को हरियाणा चुनाव में उचित सम्मान दिया जाता तो नतीजे अलग हो सकते थे
इस समय कांग्रेस पर सबसे ज्यादा हमलावर तो आम आदमी पार्टी है क्योंकि हरियाणा चुनाव में उसका पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन होने वाला था, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर विवाद हुआ और सहमति नहीं बन पाई। इसी वजह से अब आम आदमी पार्टी खुलकर कह रही है कि कांग्रेस अहंकार में चूर थी। आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि हरियाणा में इंडिया गठबंधन को 47 फीसदी वोट मिले, अगर अलायंस कर लिया जाता तो नतीजे अलग होते। कांग्रेस आप को कुछ नहीं समझती।
अब आम आदमी पार्टी का बयान कांग्रेस के लिए दिल्ली में एक बड़ा झटका है। अब क्योंकि हरियाणा में कांग्रेस ने सम्मान नहीं किया, ऐसे में दिल्ली में आम आदमी पार्टी भी कोई तवज्जो नहीं देने वाली। दो टूक कह दिया गया है कि दिल्ली विधानसभा में अकेले ही चुनाव लड़ा जाएगा। अब राजधानी में कांग्रेस की कैसी हालत है, यह किसी से छिपी नहीं, सिर्फ हारी नहीं है बकायदा जमानत जब्त हुई हैं। ऐसे में उस राज्य में कांग्रेस को एक मजबूत साथी की जरूरत थी। लेकिन हरियाणा हार ने वहां समीकरण बिगाड़ दिए हैं।
उद्धव को सीएम चेहरा घोषित करने की मजबूरी
अब चलते हैं महाराष्ट्र जहां पर महा विकास अघाड़ी जरूरत से ज्यादा उत्साहित नजर आ रही है। उसे इस बात की खुशी नहीं है कि कांग्रेस की हार हुई है, उसे इस बात की राहत है कि कांग्रेस ने अपनी लोकसभा वाली बढ़त गंवा दी है, फिर उसकी बारगेनिंग पावर कम हो चुकी है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अभी तक तो उद्धव ठाकरे को सीएम फेज कांग्रेस बिल्कुल भी स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। ज्यादा सीटें भी वो अपनी झोली में रखने वाली थी, लेकिन अब सारे समीकरण बिगड़ गए हैं। हो सकता है मुख्यमंत्री चेहरे पर तो समझौता करना ही पड़े, स्थानीय पार्टियों को ज्यादा सम्मान भी देना ना पड़ सकता है।
अगर ध्यान से देखा जाए तो लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ‘बड़े भाई’ वाली भूमिका में थी, वो फैसला कर रही थी उसे कहां कितनी सीटें चाहिए। दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादा कुछ इसलिए नहीं बोल पाईं क्योंकि वोटरबेस कुछ राज्यों तक सीमित रहा। लेकिन अब हरियाणा नतीजों ने दो बातों को साफ कर दिया है- पहला बीजेपी से सीधी फाइट में आज भी कांग्रेस कमजोर है। दूसरी बात यह कि जीती हुई बाजी भी कांग्रेस हारना जानती है। यह दोनों ही प्वाइंट इंडिया गठबंधन के दूसरे साथियों के लिए संजीवनी से कम नहीं।
मोदी बनाम कौन? इंडिया के लिए राहुल नहीं
एक तरफ इन प्वाइंट्स के सहारे अब कांग्रेस को महाराष्ट्र-झारखंड-दिल्ली और आने वाले समय में दूरे राज्यों में साइडलाइन किया जाएगा, नेशनल लेवल पर भी फिर राहुल गांधी की दावेदारी कुछ कमजोर हो जाएगी। लोकसभा चुनाव ने जवाब दिया था- मोदी बनाम कौन का जवाब राहुल गांधी है। लेकिन हरियाणा चुनाव के नतीजों ने उस जवाब को संशय मेंं डाल दिया है। अब इंडिया वाले कई नेता मानेंगे- मोदी बनाम कौन का जवाब सिर्फ राहुल गांधी तो नहीं हो सकता। इस रेस में उद्धव से लेकर अरविंद केजरीवाल तक कई दूसरे नेता शामिल हो जाएंगे।
यानी कि राहुल गांधी के लिए जो रेड कारपेट सेट किया जा रहा था, जिस तरह से उन्हें नेता प्रतिपक्ष बना भी पूरे विपक्षी कैंप में लीड लेने की कोशिश हुई थी, उस पूरी कवायद को एक बड़ा झटका लग गया है। कांग्रेस को फिर शुरुआत से सब साबित करना पड़ेगा। खुद राहुल गांधी को फिर अपनी नेतृत्व क्षमता दिखानी पड़ेगी। हर बार इसमें सफल होना आसान नहीं, ऐसे में कांग्रेस के लिए डगर मुश्किल और इंडिया गठबंधन के लिए अवसर के नए दरवाजे खुलते दिख रहे हैं।
अडानी जैसे मुद्दों पर पूरी तरह आइसोलेट
वैसे अब कांग्रेस को अपने हर मुद्दे पर इंडिया गठबंधन का समर्थन मिल जाए, ऐसा भी नहीं होने वाला है। अभी तक तो राहुल गांधी लगातार अडानी मुद्दे को भुना रहे थे, ममता और दूसरे नेताओं की आपत्ति का भी कोई असर नहीं था। हरियाणा में भी उन्होंने उठाया, लेकिन अब नतीजे फिर राहुल को सोचने पर मजबूर करेंगे और इंडिया को आईना दिखाने का मौका देंगे। पूरी संभावना है कि अडानी मुद्दे विपक्ष बंट जाए जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। इसी तरह महाराष्ट्र में सावरकर के मुद्दे पर भी अब कांग्रेस की एक नहीं चलने वाली है। यह जरूर हो सकता है कि चुनावी मौसम में कांग्रेस को सावरकर की तारीफ करने पर मजबूर किया जाए। हरियाणा नतीजों के बाद इतनी बारगेनिंग पावर तो जरूर उद्धव गुट ने हासिल कर ही ली है।

