
अब कोरोना वायरस से संक्रमण का खतरा तो टल गया, लेकिन जेल अधिकारियों का संक्रमण काल शुरु हो गया. हुआ ये कि परोल पर छोड़े गए कई कैदी वापस ही नहीं आए. इस मामले में अब जाकर जेल प्रशासन की नींद टूटी है. और उन्होने सभी जिलों के एसएसपी को इसकी जानकारी भेजी है. इसके अलावा सभी जेल सुपरिटेंडेंट को भी मामले में तलब किया गया है.


उत्तराखंड पुलिस के आईजी (लॉ एंड ऑर्डर) नीलेश भरणे ने बताया,
उत्तराखंड की जेलों से कोविड की पहली लहर में 250 से ज्यादा सजायाफ्ता कैदी और 600 से ज्यादा अंडर ट्रायल कैदियों को रिहा किया गया था. इनमें से 581 कैदी फरार हैं. इन्होंने अब तक जेल प्रशासन से संपर्क नहीं किया है. इनमें 81 सजायाफ्ता और 500 कैदी अंडर ट्रायल हैं.
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, इनपुट के मुताबिक, इन कैदियों की निगरानी के लिए जिलास्तर पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है. वहीं पुलिस मुख्यालय और जेल प्रशासन ने इनको ट्रैक करने के लिए सभी जिला की पुलिस को सख्त आदेश दिए हैं. जिला पुलिस इन सभी गायब कैदियों के स्टेटस को खंगालेगी और पता करेगी कि इनमें से कितनों को परोल खत्म होने के बाद एक्सटेंशन मिला या कोर्ट से जमानत मिली. और कितनों को सरेंडर करने के लिए कहा गया. स्टेट्स मिलने के बाद पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी. कोविड खत्म होने के बाद मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान राज्यों को निर्देश दिया कि कोविड काल में परोल पर रिहा किए गए कैदी 15 दिनों के अंदर सरेंडर करें.
देश भर में जेल में 5 लाख से ज्यादा कैदी
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर की जेलों में वर्तमान में 5 लाख से ज्यादा कैदी जेल में हैं. इनमें सजायाफ्ता और अंडरट्रायल सभी तरह के कैदी शामिल हैं. मार्च 2020 में देशभर में बढ़ते कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को कैदियों की अस्थायी रिहाई के लिए उच्च स्तरीय कमेटी के गठन का आदेश दिया था. इन कमेटियों का उद्देश्य उन कैदियों की पहचान करना था, जिन्हें अस्थायी जमानत या परोल पर छोड़ा जा सकता है. ताकि जेलों में भीड़भाड़ कम हो. और संक्रमण फैलने का खतरा टले.

