दुनिया के सात अजूबों में शुमार और भारत की शान ताजमहल ना सिर्फ एक खूबसूरत इमारत है बल्कि रहस्यों का खजाना भी है। इस सफेद संगमरमर की इमारत को देखने हर साल लाखों सैलानी देश-विदेश से आते हैं।

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि ताजमहल के भीतर एक ऐसा तहखाना है जिसे सालों से बंद रखा गया है? इस तहखाने में 22 कमरे हैं जिन्हें आम लोगों से छिपाकर रखा गया है। आखिर क्यों? क्या है इन कमरों की कहानी? आइए जानते हैं।

क्यों बंद किए गए हैं 22 कमरे? इन कमरों को बंद रखने के पीछे कई वैज्ञानिक और संरक्षण से जुड़े कारण बताए जाते हैं:

  1. मार्बल को खतरा: संगमरमर (मार्बल) पर कार्बन डाइऑक्साइड का बुरा असर होता है। अगर इन कमरों को बार-बार खोला जाए या यहां आवाजाही हो तो इससे ताजमहल की संरचना पर असर पड़ सकता है। खासकर, नमी और हवा की वजह से मार्बल की चमक खत्म हो सकती है।

  2. दीवारों की मजबूती: तहखाने की दीवारें बहुत पुरानी हैं। इन्हें बार-बार खोलने से दीवारों की मजबूती कमजोर हो सकती है। इसलिए संरचना की सुरक्षा के लिए इन्हें बंद रखा जाता है।

  3. संरक्षण कार्य: इन कमरों की देखरेख और मरम्मत का कार्य सिर्फ ASI करती है। किसी भी बाहरी व्यक्ति को यहां प्रवेश की इजाजत नहीं है।

क्या है ताजमहल का तहखाना? ताजमहल के नीचे एक लंबा तहखाना है जिसमें 22 अलग-अलग कमरे हैं। यह तहखाना मुख्य इमारत के पिछले हिस्से की ओर स्थित है, जिसे आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है। इन कमरों में ना तो कोई नियमित आवाजाही होती है और ना ही पर्यटकों को इसकी जानकारी दी जाती है।

आखिरी बार कब खुला था तहखाना? इतिहास में दर्ज है कि ताजमहल के तहखाने को आखिरी बार वर्ष 1934 में खोला गया था। उसके बाद से यह सिर्फ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के निरीक्षण और मरम्मत के दौरान ही खोला जाता है। आम लोगों को यहां जाने की अनुमति नहीं दी जाती।

क्या है इन कमरों के बारे में लोगों की सोच? कई बार सोशल मीडिया और कुछ लेखों में दावा किया गया कि इन कमरों में ऐतिहासिक रहस्य छिपे हैं या कुछ ऐसा रखा गया है जिसे सरकार दुनिया से छिपाना चाहती है। हालांकि ASI और विशेषज्ञों ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि ऐसा कुछ नहीं है। ये सिर्फ पुरातात्विक सुरक्षा और संरक्षण का मामला है।

क्या कभी खोले जाएंगे ये कमरे? फिलहाल इन कमरों को खोलने की कोई योजना नहीं है। ASI का मानना है कि इनकी स्थिति को जस का तस बनाए रखना ही बेहतर है। अगर भविष्य में तकनीक इतनी विकसित हो जाए कि बिना नुकसान पहुंचाए इन्हें खोला जा सके तो शायद ये कमरे फिर से आम लोगों के लिए भी खुल सकें। (Disclaimer: यह लेख आपको केवल जागरूक करने के लिए लिखी गई है, प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]इसकी पुष्टि नहीं करता है।)


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