जीवन में जब भी परेशानी आती है या फिर संकट के बादल छा जाते हैं तो आशा की किरण के तौर पर हमें संकटमोचन हनुमान की ही याद आती है। हनुमान जी उम्मीद की वह लौ बनते हैं, जो हमारे दिलों में आत्मविश्वास बनकर जगमगाने लगते हैं।

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हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि जब लोग कहते हैं कि हनुमान जी त्रेता युग में जन्मे थे, तो मन में एक सवाल उठता है कि फिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि “चारों युग परताप तुम्हारा”? आखिर चार युग तो हैं, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। हनुमान जी तो रामायण में प्रकट हुए, जो कि त्रेता युग की कथा है। फिर बाकी युगों में उनका प्रभाव कैसे रहा? तो आज की इस खबर में हम उस रहस्य से पर्दा उठाने वाले हैं। आइए जानते हैं।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]

जानें क्या है पूरी कथा
तो चलिए हम बताते हैं। इसका उत्तर बहुत ही सुंदर और दिव्य है। हनुमान जी कोई साधारण पात्र नहीं, बल्कि उन्हें अमरता का वरदान मिला है। वह चिरंजीवी हैं। यानी जब तक ये सृष्टि है, तब तक वे जीवित हैं। त्रेता युग में राम जी की सेवा करने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। लेकिन जैसे ही त्रेता युग समाप्त हुआ, वे कहीं चले नहीं गए। उनका अस्तित्व बना रहा, उनका पराक्रम फैला रहा।

द्वापर युग में भी मौजूद थे हनुमान जी
महाभारत के समय द्वापर युग में भी वे उपस्थित थे। जब अर्जुन को अपने पराक्रम पर घमंड हो गया तो हनुमान जी ने उसका अहंकार तोड़ा। और जब कुरुक्षेत्र का युद्ध शुरू हुआ, तब अर्जुन के रथ की ध्वजा पर वही बैठे, ताकि उसकी रक्षा हो सके। यानी त्रेता के बाद भी वे गुप्त रूप से लीला करते रहे और अब, कलियुग की बात करें, तो यह वो युग है जब हनुमान जी की कृपा सबसे सहज, सबसे सुलभ मानी जाती है।

कलियुग में भी भक्तों पर कृपा बरसाते हैं हनुमान जी
इस युग में ना तो यज्ञ की शक्ति है, ना घोर तप की, लेकिन नाम स्मरण खासकर राम नाम और हनुमान जी की भक्ति अत्यंत फलदायक है। भक्त कहते हैं कि इस युग में हनुमान जी की कृपा सबसे जल्दी मिलती है। उनकी मौजूदगी आज भी मंदिरों में, मंत्रों में, चालीसा के हर शब्द में महसूस होती है। बहुतों ने अनुभव किया है कि संकट के समय जब कोई “जय बजरंगबली” पुकारता है, तो अचानक राह बनती है।

भक्तों की सच्ची पुकार सुन लेते हैं हनुमान जी
इसलिए कहा गया है कि चारों युग परताप तुम्हारा। हनुमान जी का यश, उनका बल, उनकी भक्ति और उनकी कृपा, किसी एक युग तक सीमित नहीं रही। वे समय से परे हैं, युगों के आर-पार मौजूद हैं। वो राम के भक्त तो हैं ही पर हर उस हृदय में बसते हैं, जहां श्रद्धा हो, जहां सेवा हो और जहां सच्ची पुकार हो। तो चाहे सतयुग हो या आज का कलियुग हनुमान जी का पराक्रम हर युग में गूंजता रहा है और जब तक भक्ति है, तब तक गूंजता रहेगा।


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