
इन्हीं में से एक है दो पहाड़ियों के बीच बना मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर। यह मंदिर खूबसूरत होने के साथ-साथ हिंदुओं के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। अरावली पर्वत पर बना यह मंदिर एक हजार साल पुराना माना जाता है।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
दौसा जिले में है मंदिर
यह मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है। मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। कहा जाता है कि मेहंदीपुर धाम मुख्य रूप से नकारात्मक शक्ति और भूत-प्रेत बाधा से ग्रस्त लोगों के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि नकारात्मक शक्ति से ग्रस्त लोगों को यहां जल्द ही राहत मिलती है।कहा जाता है कि बालाजी की छाती के बाईं ओर एक छोटा सा छेद है। मान्यता है कि ऐसा करने से बीमारियां दूर होती हैं और बुरी आत्माओं से रक्षा होती है।
मंदिर में विराजमान हैं तीन देवता
इस मंदिर में तीन देवता विराजमान हैं, बालाजी, प्रेतराज और भैरव। इन तीनों देवताओं को अलग-अलग तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बालाजी महाराज लड्डू से प्रसन्न होते हैं। वहीं, भैरव जी को उड़द और प्रेतराज को चावल का भोग लगाया जाता है।बालाजी के धाम में जाने से कम से कम एक सप्ताह पहले प्याज, लहसुन, शराब, मांस, अंडा और मदिरा का सेवन बंद कर देना होता है। कहा जाता है कि अगर बालाजी प्रसाद के दो लड्डू भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को खिला दिए जाएं तो उसके शरीर में मौजूद भूत को तेज दर्द होता है और वह तड़पने लगता है।
जान लें यह नियम
आमतौर पर लोग मंदिर में दर्शन करने के बाद प्रसाद घर ले आते हैं, लेकिन मेहंदीपुर बालाजी मंदिर से भूलकर भी प्रसाद घर नहीं लाना चाहिए। ऐसा करने से आप पर भूत-प्रेत का साया आ सकता है। बालाजी के दर्शन कर घर लौटते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपकी जेब या बैग में कोई खाने-पीने की चीज न हो। यहां का नियम है कि यहां से कोई भी खाने-पीने की चीज घर नहीं ले जानी चाहिए। कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों को जितने दिन बालाजी की नगरी में रहना है, उतने दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। कहा जाता है कि जो भी यहां नियमों का पालन नहीं करता, उसे पूरा फल नहीं मिलता और अनिष्ट का भय बना रहता है। यहां पर चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को दरखवस्त या अर्जी कहते हैं। मंदिर में दरखवस्त प्रसाद चढ़ाने के बाद तुरंत वहां से निकल जाना होता है, जबकि अर्जी प्रसाद लेते समय उसे पीछे की ओर फेंकना होता है। प्रसाद फेंकते समय पीछे की ओर नहीं देखना चाहिए।
