अतिक्रमण पर न्याय का बुलडोजर: हाईकोर्ट ने दिखाई आईना, रसूखदारों पर मौन क्यों?”रुद्रपुर में भी सत्ता की मिलीभगत से अरबों की जमीन पर कब्जे

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अवतार सिंह बिष्ट की कलम से

नैनीताल/देहरादून/रुद्रपुर।

देहरादून के विकासनगर में झुग्गीवासियों के घरों पर चली सरकारी कार्रवाई पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगाते हुए सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं—गरीबों के घरों पर बुलडोजर क्यों और रसूखदारों पर खामोशी क्यों?

शनिवार को विशेष अवकाश के दिन भी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने प्रभावित झुग्गीवासियों की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सरकार से 15 अप्रैल तक स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। कोर्ट को बताया गया कि विकासनगर में प्रशासन ने 20 झुग्गीवासियों को तीन दिन में हटने का नोटिस दिया, जबकि एसडीएम की रिपोर्ट में दो बड़े रसूखदारों द्वारा नाले की जमीन पर किए जा रहे निर्माण का खुलासा है—लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं!

“कानून गरीबों के लिए, रसूखदारों को छूट?”

याचिकाकर्ताओं के वकील अभिजय नेगी ने कोर्ट को बताया कि नाले की ओर बढ़ाए गए कॉम्पलेक्स और बिना दस्तावेजों के किए जा रहे निर्माणों को संरक्षण दिया जा रहा है, वहीं गरीबों की बस्तियों पर कार्रवाई की जा रही है। कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताते हुए झुग्गीवालों के नोटिसों के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगा दी।

रुद्रपुर में भी सत्ता की मिलीभगत से अरबों की जमीन पर कब्जे

अगर बात की जाए रुद्रपुर, उधम सिंह नगर की, तो हालात और भी गंभीर हैं। नजूल की बेशकीमती जमीनों पर सत्ताधारी वर्ग की मिलीभगत से एक से बढ़कर एक आलीशान इमारतें खड़ी कर दी गईं। सत्ता की छांव में अरबों की जमीन खुर्द-बुर्द कर दी गई, और जिन पर कार्र कावाई होनी थी, वे मंचों पर सम्मानित होते रहे।

“उत्तराखंड राज्य की आत्मा को कुचला जा रहा है”

राज्य आंदोलनकारी और जनपक्षधर पत्रकार अवतार सिंह बिष्ट का मानना है कि यह सरकार की दोहरी नीति का सबसे कड़वा उदाहरण है। गरीबों के घर-झोपड़ी पर बुलडोजर, और रसूखदारों को कानून से छूट? क्या यही उत्तराखंड राज्य आंदोलन की कल्पना थी?

“जरूरत पड़ी तो संघर्ष करेंगे, शहादत भी देंगे”

बिष्ट कहते हैं—”अब वक्त आ गया है कि उत्तराखंड को ‘भूमियामुक्त’ किया जाए। जंगल बचाओ, जमीन बचाओ—यह सिर्फ नारा नहीं, आंदोलन बनेगा। यदि राज्य की आत्मा को कुचला गया तो हम शहादत देने से भी पीछे नहीं हटेंगे।”

“कोर्ट की सक्रियता बनी उम्मीद की किरण”

हाई कोर्ट द्वारा सीसीटीवी लगाने, डीजीपी को अतिक्रमणकारियों पर मुकदमा दर्ज करने और सचिव शहरी विकास को जनजागरूकता फैलाने के आदेश से स्पष्ट है कि न्यायपालिका ने जनता की आवाज सुनी है।

पर बड़ा सवाल यह है—क्या सरकार भी सुनेगी?

क्या सत्ता अब भी रसूखदारों के साथ खड़ी रहेगी या न्याय के साथ?



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