
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. वैशाख माह की चतुर्थी विकट संकष्टी चतुर्थी के रूप में जानी जाती है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि विकट संकष्टी चतुर्थी को गणपति बप्पा का व्रत और पूजा करने से भक्त को ज्ञान, स्वास्थ्य, धन और सुख की प्राप्ति होती है.


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
विकट संकष्टी चतुर्थी की पूजा के लिए क्या है शुभ मुहूर्त
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 16 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन 17 अप्रैल 2025 को दोपहर 3 बजकर 23 मिनट तक रहेगी. हिंदू धर्म में उदयातिथि मान्य होती है. ऐसे में विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 अप्रैल 2025 को रखा जाएगा.
इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 55 मिनट से सुबह 9 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. इस बार विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन दो अत्यंत शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं. इन योगों में किया गया कार्य विशेष फलदायी होता है. बुधवार का दिन गणेश भगवान को समर्पित होता है, इसलिए इस बार यह तिथि और भी शुभ मानी जा रही है.
क्या है चंद्रोदय का समय
विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरा करने के लिए रात में चंद्रमा को अर्घ्य देना जरूरी होता है. इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर पारण किया जाता है. वैशाख संकष्टी विकट चतुर्थी के दिन चंद्रोदय का समय रात 9 बजकर 53 मिनट पर है. चंद्रमा भगवान को अर्घ्य देने के लिए दूध, जल और सफेद पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए.
पूजा विधि
1. विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखने वाले को सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए.
2. इसके बाद संपूर्ण उपवास या फलाहार का संकल्प लेना चाहिए.
3. पूजा स्थान को स्वच्छ कर गणपति की प्रतिमा स्थापित करना चाहिए.
4. दुर्वा, फूल, घी का दीपक, मोदक और लड्डू गणपति बप्पा को अर्पित करना चाहिए.
5. इसके बाद व्रत कथा पढ़ना चाहिए. मंत्रों का जाप करना चाहिए.
6. शाम को दोबारा पूजा व आरती करने के बाद चंद्रमा के दर्शन करके व्रत का पारण करना चाहिए.
विकट संकष्टी चतुर्थी को करें इन मंत्रों का जाप
1. ॐ गं गणपतये नम:
2. ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्
3. ॐ नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकट निवारय-निवारय स्वाहा
4. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा
5. ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये। वर वरद् सर्वजन्म मे वशमानाय नम:
