इसके साथ ही इस पुराण में मृत्यु के बाद के संस्कार, आत्मा और तमाम लोकों के जिक्र किया गया है. गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद शरीर के अंतिम संस्कार से लेकर पिंडदान और तेरहवीं तक का महत्व बताया गया है. आइए जानते हैं कि क्यों मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान किया जाता है.


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
13 दिनों तक परिजनों के बीत रहती है आत्मा
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति की आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के बीच ही रहती है. इस दौरान आत्मा भूख और प्यास से तड़पती रहती है और रोती है. इस बीच 10 दिनों तक आत्मा को उसके परिजनों द्वारा जो पिंडदान किया जाता है, उससे उसका सूक्ष्म शरीर बनता है जो एक अंगूठे के बराबर के आकार का होता है. पुराण के पहले अध्याय में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को पाप और पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए एक प्रेत शरीर मिलता है.
मृत्यु के बाद क्यों होता है पिंडदान
पहले दिन के पिंडदान से सिर बनता है, दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से हृदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास इत्यादि उत्पन्न होती है. इस पिंडदान से भूख और प्यास से प्रेरित जीव ग्यारहवें और 12 दिन भोजन करता है. पिंडदान के बाद तेरहवीं दिन जब मृतक के परिजन 13 ब्रह्मणओं को भोजन कराते हैं तो आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि जिस व्यक्ति के परिजन उसके लिए पिंडदान नहीं करते, ऐसे लोगों की आत्मा को यमदूत 13वें दिन घसीटते हुए यमलोक तक ले जाते हैं.

