संपादकीय लेख पाकिस्तान का टूटता आत्मविश्वास: बलूच विद्रोह और सेना में भगदड़ की आहट,भय और भिक्षा का कटोरा: पाकिस्तान की गिरी हुई मनोस्थिति,डूबते पाकिस्तान और फिसलता बांग्लादेश : भारत की निर्णायक जीत

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जब कोई देश अपने भीतर से दरकने लगे, तो बाहरी आक्रमणों की आवश्यकता नहीं रह जाती। पाकिस्तान आज उसी चौराहे पर खड़ा है, जहाँ से हर रास्ता विघटन की ओर जाता प्रतीत होता है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के रुख में आए उग्र तेवर ने न केवल पाकिस्तान की कूटनीति को बौखलाया है, बल्कि उसके सबसे बड़े गर्व — सेना — के भीतर भी अभूतपूर्व भगदड़ मचा दी है। केवल दो दिनों में पांच हजार सैनिकों और अधिकारियों के सामूहिक इस्तीफे ने इस्लामाबाद के गलियारों में एक भयावह सन्नाटा भर दिया है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

सूत्र बताते हैं कि सेना के भीतर खौफ की लहर फैली हुई है। सैनिकों के परिवार अपने बेटों से फौज छोड़ने की अपील कर रहे हैं। जनरल उमर बुखारी के उस पत्र ने इस डर को औपचारिक मान्यता दे दी है, जिसमें उन्होंने इस्तीफों पर चिंता जताते हुए स्वीकार किया कि अगर यही हाल रहा, तो भारत से टकराव की स्थिति में सेना ध्वस्त हो जाएगी।

यह घटना केवल एक सैन्य संकट नहीं है। यह उस मानसिक और नैतिक पतन का प्रमाण है, जो एक दशक से पाकिस्तान की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था को खोखला करता रहा है। कश्मीर से लेकर कराची तक, गिलगित से लेकर ग्वादर तक, हर क्षेत्र में अव्यवस्था की फफूंद फैल चुकी है।

बलूचिस्तान: एक धधकता ज्वालामुखी परिणामस्वरूप, पाकिस्तान के आंतरिक अव्यवस्थाओं का सबसे उग्र चेहरा बलूचिस्तान के विद्रोह में दिखाई दे रहा है। वर्षों से उपेक्षित और शोषित बलूच जनता ने अब निर्णायक संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है। न केवल पारंपरिक युद्ध के तौर-तरीकों से, बल्कि अब बलूचों का जन-आंदोलन रेलवे स्टेशनों पर कब्जे, ट्रेन हाईजैकिंग, सरकारी ठिकानों पर सशस्त्र हमलों के रूप में प्रकट हो रहा है।

पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान ने बलूचों के प्राकृतिक संसाधनों को तो लूटा, पर विकास और सम्मान के नाम पर उन्हें धोखा दिया। इस ऐतिहासिक अन्याय का परिणाम अब पाकिस्तान को भुगतना पड़ रहा है। तिलक देवेशर और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि बलूच विद्रोह अब काबू से बाहर हो जाएगा — और आज वही चेतावनी हकीकत बनती दिख रही है।

सेना का खोता हुआ मनोबल: अंत की शुरुआत?पाकिस्तान की सेना, जिसे अब तक ‘स्टेट विदिन स्टेट’ माना जाता था, आज स्वयं अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। सैनिकों का इस्तीफा देना केवल एक घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक संकेत है — संकेत उस भरोसे के टूटने का, जो किसी भी देश की सैन्य क्षमता की रीढ़ होता है। जब सैनिक अपने नेताओं पर विश्वास खो दें, जब देश की जनता अपनी सेना से मुँह मोड़ने लगे, तब किसी भी राष्ट्र का विघटन समय की बात बन जाता है।

बलूचिस्तान में बढ़ती अस्थिरता के बीच सेना को एक साथ कई मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। भीतर से बलूच विद्रोह, बाहर से भारत का दबाव, और ऊपर से आर्थिक संकट — यह त्रिमुखी आघात पाकिस्तान की एकता की नींव को हिला रहा है।

एक विघटित पाकिस्तान?आज जो स्थिति है, वह केवल बलूचिस्तान तक सीमित नहीं रहेगी। बलूचों के स्वतंत्रता की लहर अगर सफल होती है, तो सिंध और खैबर पख्तूनख्वा जैसे क्षेत्रों में भी असंतोष का ज्वार उमड़ सकता है। पंजाब, जो पाकिस्तान की सत्ता और सेना का मुख्य आधार रहा है, भी इस संकट से अछूता नहीं रहेगा।

पाकिस्तान के मौजूदा हालात इस बात के गवाह हैं कि एक राष्ट्र केवल जंगी नारों, धार्मिक उन्माद और क्षणिक आक्रोश से नहीं चलता। उसे एक सशक्त, न्यायपूर्ण और समावेशी व्यवस्था की आवश्यकता होती है — और दुर्भाग्यवश, पाकिस्तान ने अपने निर्माण के बाद से ही इस आदर्श को तिलांजलि दी थी।

आज पाकिस्तान न तो अपने नागरिकों का विश्वास जीत पा रहा है, न अपने सैनिकों का सम्मान बचा पा रहा है। बलूच विद्रोह और सेना में हो रही भगदड़ इस टूटते हुए मुल्क की मृत्यु-कथा का आरंभिक अध्याय हैं।

समय गवाह रहेगा — इतिहास के पन्नों में जल्द ही एक ऐसे राष्ट्र का किस्सा लिखा जाएगा, जिसने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा।

पाकिस्तान के सैनिक भारत से इतने भयभीत हो गए हैं कि उनकी स्थिति वही हो गई है — जैसे कटोरा लेकर भीख माँगने वाला। वहीं बांग्लादेश, जो कभी चीन तो कभी पाकिस्तान के संपर्क में आकर डगमगा रहा है, अब नशे और कुप्रबंधन के चलते अपने अस्तित्व के संकट में फँस सकता है।


भय और भिक्षा का कटोरा: पाकिस्तान की गिरी हुई मनोस्थिति,भारत की कठोर रणनीति और स्पष्ट संदेश के बाद पाकिस्तान के भीतर भय का ऐसा वातावरण बन गया है कि उसके सैनिकों की हालत किसी कटोरा लिए भीख माँगने वाले जैसी हो गई है। कभी जो फौज खुद को ‘इस्लाम का रक्षक’ और ‘अजेय’ बताती थी, आज वह अपनी सुरक्षा के लिए दुनिया के शक्तिशाली देशों के सामने हाथ फैलाए खड़ी है।

अमेरिका से लेकर चीन तक, कहीं कर्ज के लिए गिड़गिड़ाना, कहीं सुरक्षा की गारंटी के लिए दरख्वास्त — यही आज पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान का असली चेहरा बन चुका है।बांग्लादेश: एक और डगमगाता पड़ोसी,दूसरी ओर, बांग्लादेश भी स्थिरता के संकट से जूझ रहा है। कभी चीन की गोद में, कभी पाकिस्तान के पुराने इस्लामी उन्माद से प्रभावित होकर, बांग्लादेश ने भी अपनी राष्ट्रीय अस्मिता को खतरे में डाल दिया है। नशीली संस्कृति, इस्लामी कट्टरवाद और शासन-व्यवस्था की विफलता ने बांग्लादेश को एक ऐसी दिशा में धकेल दिया है, जहाँ से लौटना मुश्किल होता जा रहा है।यदि बांग्लादेश समय रहते अपने राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को दुरुस्त नहीं करता, तो वह भी पाकिस्तान की ही तरह, एक ‘फेल स्टेट’ बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है — जहाँ न शांति होगी, न विकास, बस अराजकता और विदेशी ताकतों का खिलौना बनकर रह जाएगा।

भारत के लिए यह दोनों पड़ोसियों का संकट गंभीर चुनौती और अवसर दोनों है। एक ओर भारत को अपनी सीमाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, वहीं दूसरी ओर मानवीय सहायता और कूटनीति के ज़रिए क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने की ऐतिहासिक भूमिका भी निभानी होगी।

डूबते पाकिस्तान और फिसलता बांग्लादेश : भारत की निर्णायक जीत,आज पाकिस्तान और बांग्लादेश अपनी ही गलतियों के दलदल में धँसे हुए हैं। पाकिस्तान, जो कभी कश्मीर राग अलापता नहीं थकता था, आज खुद अपने वजूद को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गिड़गिड़ा रहा है। उसकी सेना, जो कभी युद्ध का सपना देखती थी, अब आंतरिक गृहयुद्ध और दिवालिया होती अर्थव्यवस्था से भयभीत है। चीन का भी भरोसा उठ चुका है, और अब पाकिस्तान केवल एक “नशेड़ी देश” बनकर रह गया है, जहाँ न विकास है, न स्थिरता।

बांग्लादेश की हालत भी कुछ कम शर्मनाक नहीं है। भारत से विश्वासघात करने के चक्कर में वह कभी चीन, तो कभी इस्लामी कट्टरपंथियों की गोद में जा बैठता है। परिणामस्वरूप, बांग्लादेश में आतंकवादी नेटवर्क पनप रहे हैं, ड्रग्स और अपराध चरम पर हैं और उसकी युवा पीढ़ी विनाश के रास्ते पर जा रही है। बांग्लादेश सरकार को अब साफ समझ आ चुका है कि भारत से टकराना आत्मघाती साबित होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आक्रामक और दूरदर्शी कूटनीति ने भारत को ऐसा मजबूत बना दिया है कि अब पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही भारत के कदमों में झुकने को मजबूर हैं। आने वाला समय इन दोनों देशों के लिए और भी कठिनाइयों भरा रहेगा, क्योंकि भारत अब सिर्फ जवाब नहीं देगा, बल्कि निर्णायक कार्यवाही करेगा। दोनों देशों के लिए अब केवल दो रास्ते बचे हैं — या तो भारत के नेतृत्व को स्वीकार करो, या इतिहास के कूड़ेदान में खो जाओ।

भारत अब सिर्फ सहनशील नहीं, बल्कि निर्णायक शक्ति बन चुका है — और पाकिस्तान-बांग्लादेश जैसे विफल राष्ट्र इसके सामने बस निरीह तमाशबीन बनकर रह गए हैं।



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