उधम सिंह नगर: बांग्लादेशी घुसपैठियों की शरणस्थली बनता जा रहा उत्तराखंड का यह सीमांत जिला लेखक: अवतार सिंह बिष्ट संपादक – हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / शैल ग्लोबल टाइम्स

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रुद्रपुर,उत्तराखंड जैसे शांत, पर्वतीय और धार्मिक राज्य में धीरे-धीरे एक ऐसा खतरा पनप रहा है जो भविष्य में राज्य की जनसांख्यिकी, सामाजिक संरचना और राष्ट्रीय सुरक्षा—तीनों को एक साथ झकझोर सकता है। देहरादून और हरिद्वार में हाल ही में गिरफ्तार किए गए छह बांग्लादेशी नागरिकों की घटनाओं ने एक बार फिर उस सत्य को उजागर किया है, जो दशकों से ‘खुले रहस्य’ की तरह उधम सिंह नगर में पलता रहा है—बांग्लादेशी घुसपैठ और उनकी सुव्यवस्थित बसावट।

देहरादून-हरिद्वार की गिरफ्तारी से खुला पोल, पर उधम सिंह नगर पर खामोशी क्यों?

एसएसपी देहरादून अजय सिंह के नेतृत्व में हाल ही में क्लेमेंटटाउन में गिरफ्तार पांच बांग्लादेशी नागरिकों और उनकी मददगार एक भारतीय महिला की कहानी ने न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों को हिलाया, बल्कि यह भी साबित किया कि घुसपैठिए अब सामान्य नागरिक के भेष में शादी-ब्याह, आधार-पैन कार्ड, और मजदूरी के नाम पर पूरी व्यवस्था को गुमराह कर रहे हैं। इन्हीं में से मुनीर चंद्र राय नामक व्यक्ति, जिसने भारत में रहकर दो बार बांग्लादेश की यात्रा की और फिर लौटकर देहरादून में रहना शुरू किया, ये दर्शाता है कि यह महज “शरणार्थी” नहीं बल्कि एक संगठित नेटवर्क है।

अब प्रश्न यह उठता है: क्या उधम सिंह नगर इससे अछूता है?

उधम सिंह नगर: रोहिल्ला मुसलमानों और बांग्लादेशियों का ‘आधार स्थल’?

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उधम सिंह नगर में बड़ी संख्या में रोहिल्ला मुसलमानों और बांग्लादेशी घुसपैठियों ने पनाह ली। ये लोग न केवल मजदूरी बल्कि जमीन खरीदने, कारोबार शुरू करने और स्थानीय जनसंख्या में घुलने-मिलने में भी सफल रहे हैं। कई मामलों में इन लोगों ने हिंदू नाम-पते तक अपना लिए हैं, जिससे इनकी पहचान करना और मुश्किल हो गया है।

क्या स्थानीय पुलिस ने कभी इस पर कोई संगठित जांच या सत्यापन अभियान चलाया है? नहीं।

क्या प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है? निश्चित ही है।

क्या वोटबैंक की राजनीति इन पर कार्रवाई रोक रही है? संभवतः हाँ।

राजनीति, प्रशासन और पुलिस की त्रिकोणीय चुप्पी

यह चिंताजनक है कि उधम सिंह नगर में हर दूसरे गांव, खासकर किच्छा, रुद्रपुर, गदरपुर और सितारगंज जैसे क्षेत्रों में बांग्लादेशी मूल के लोगों की उपस्थिति साफ देखी जा सकती है। ये लोग स्थानीय नेताओं, दलालों और भू-माफियाओं की मदद से ज़मीनें खरीदते हैं, फर्जी दस्तावेज बनवाते हैं और फिर कानूनी प्रक्रिया का मज़ाक उड़ाते हुए नागरिक सुविधाएं हथिया लेते हैं।

क्या कभी किसी विधायक, सांसद या जिलाधिकारी ने इस बढ़ती जनसंख्या पर प्रश्न उठाया?

क्या उधम सिंह नगर में कभी बांग्लादेशियों की जनगणना हुई?

क्या पंचायत और नगर निकाय चुनावों में इनकी हिस्सेदारी की जांच हुई?

इन प्रश्नों के उत्तर जानबूझकर टाले जा रहे हैं।

हिंदू नामों के पीछे छुपे रोहिंग्या और बांग्लादेशी, खतरे की घंटी

सबसे खतरनाक प्रवृत्ति यह है कि घुसपैठिए अब अपना धार्मिक और जातीय स्वरूप भी बदल रहे हैं—वे हिंदू नामों से राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड बनवा रहे हैं। इससे वे ना केवल सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं, बल्कि आने वाले समय में यह “डेमोग्राफिक इनवेज़न” का रूप ले सकता है। उत्तराखंड की पहाड़ी क्षेत्रों तक में इनकी उपस्थिति दर्ज की जा रही है।

राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता या राजनीतिक सुविधा?बांग्लादेशी नागरिकों की मौजूदगी केवल एक जनसंख्या का मामला नहीं है, यह आंतरिक सुरक्षा का सवाल है। कई खुफिया रिपोर्टों में यह संकेत मिल चुके हैं कि अवैध घुसपैठ की आड़ में देश विरोधी गतिविधियां, फर्जी दस्तावेज बनवाकर आतंकी लिंक, और धार्मिक कट्टरता फैलाने वाले तत्व भी सक्रिय हैं।

तो क्या उत्तराखंड में भी असम जैसे NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) की आवश्यकता है? क्या उधम सिंह नगर में एक विशेष सत्यापन अभियान शुरू नहीं होना चाहिए? क्या सरकार को अब भी सबूतों की जरूरत है?

एक जिम्मेदार राज्य बनाम एक लापरवाह प्रशासन,उत्तराखंड सरकार और केंद्र को यह समझना होगा कि सीमांत जिलों में यदि बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोकने में कोताही बरती गई, तो आने वाले वर्षों में यह एक राज्यीय-सामाजिक विस्फोट का रूप ले सकता है।

जैसे असम, पश्चिम बंगाल और केरल की दशा घुसपैठ के कारण बिगड़ी, वैसे ही उधम सिंह नगर उत्तराखंड की शांति, धार्मिक संतुलन और पहचान को खा जाएगा—और तब केवल पछतावा शेष रहेगा।

आज आवश्यकता है कि उधम सिंह नगर को “घुसपैठ निगरानी जिला” घोषित किया जाए। यहां घर-घर सत्यापन हो, दस्तावेजों की दोबारा जांच हो, और बांग्लादेशी मूल के लोगों की पहचान कर उन्हें डिपोर्ट किया जाए। इसके अलावा, जो स्थानीय भारतीय नागरिक इनकी सहायता करते हैं, उन पर राष्ट्रद्रोह तक की धाराओं में मुकदमा चले।यदि यह नहीं किया गया, तो उत्तराखंड के पर्वतों की शांति को निचले मैदानों से उपजी घुसपैठ निगल जाएगी।



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