रुद्रपुर की राजनीति का रंग अब ताश के पत्तों की तरह बिखरता जा रहा है, जहां हर नेता छूट भैया’ की उपाधि लेकर एक-दूसरे को छुट साबित करने की जुगत में लगा है। भाजपा की स्थानीय राजनीति इस समय उस दौर से गुजर रही है जहां बड़े मुद्दों से ज़्यादा छूट भैयावाद’ का जलवा है। विधानसभा और नगर निगम के बीच चल रही अदृश्य खींचातानी, और उसमें सोशल मीडिया के ज़रिए उड़ रही चुटकुलों की गंध, अब लोगों को राजनीतिक व्यंग्य की रसोई में व्यस्त रखे हुए है।
छूट भैया नेता कौन होते हैं? छुट भैया’ नेताओं की परिभाषा सीधी-सी है: न विधायक, न मंत्री, न महापौर, न ही पार्षद, पर खुद को किसी बड़े पद का दावेदार मानने वाले, फोटो खिंचवाने में अग्रणी, और बयानों में बहादुरी दिखाने वाले। ये वे लोग हैं जो हर सार्वजनिक मुद्दे पर फेसबुक लाइव में दिखते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनकी पकड़ फिसलन भरी होती है।
रुद्रपुर: यहां अब नेता नहीं, छूट भैया’ पैदा हो रहे हैं। और छुट भैया भी वो जो पहले सोशल मीडिया पर पोस्ट मारते हैं, फिर उसी पोस्ट पर खुद ही प्रतिक्रिया दे देते हैं। जैसे फेसबुक कोई चुनावी मंच हो और इंस्टाग्राम किसी राजनैतिक दल की शाखा। छूट भैया नेताओं की टोली ऐसी बढ़ी है कि नगर निगम से लेकर विधानसभा तक शांति की राजनीति को अब मेमे-तंत्र ने निगल लिया है।
रुद्रपुर की राजनैतिक शब्दावली में छूट भैया नेता’ वह होता है, जिसकी न दाल में घी है, न ही पार्टी में सीट। परंतु उसका आत्मविश्वास ऐसा, जैसे वह मुख्यमंत्री का दाहिना हाथ हो और चुनाव आयोग उसका ………….। ऐसे नेता न ज़मीन पर होते हैं, न ही ज़मीर में — मगर सोशल मीडिया पर ऐसे सक्रिय जैसे नगर निगम भी उनकी पोस्ट से ही चलती हो।



