हिंदू धर्म में वट यानी बरगद के पेड़ को विशेष पूजनीय माना गया है। खासकर वट सावित्री व्रत के दिन इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है।

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इसकी जड़ों को ब्रह्मा, तने को विष्णु और शाखाओं को शिव का रूप माना जाता है।
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हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन सुहागिनें बरगद के पेड़ की पूजा करके उसके चारों ओर कच्चा सूत लपेटती हैं और सात परिक्रमा करती हैं। यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और अटूट रिश्ते का प्रतीक मानी जाती है।
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क्यों खास होता है वट सावित्री व्रत?
वट सावित्री व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, नारी शक्ति और अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस दिन को लेकर एक गहरी पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इसी दिन सावित्री ने अपने अद्भुत तप और संकल्प से अपने मृत पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे। तभी से यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य का प्रतीक बन गया। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर सावित्री की तरह अगर सच्ची श्रद्धा से पूजा की जाए, तो दांपत्य जीवन सुखी रहता है और पति की आयु लंबी होती है।

पूजा विधि
इस दिन महिलाएं सुबह स्नान कर पूर्ण श्रृंगार करती हैं और बिना कुछ खाए-पिए कठोर व्रत का पालन करती हैं। वे वट यानी बरगद के पेड़ के पास जाकर उसकी विधिपूर्वक पूजा करती हैं। पूजा के दौरान बरगद के तने के चारों ओर कच्चा सूत (साफ धागा) सात बार लपेटा जाता है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और हर सुहागिन स्त्री पूरे विश्वास और श्रद्धा से इसका पालन करती है।

क्यों होता है सात बार सूत लपेटने का विधान?
सात बार सूत लपेटना केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक भावना है। मान्यता है कि बरगद का पेड़ जीवन की स्थिरता और दीर्घायु का प्रतीक है और जब स्त्रियां उसके चारों ओर सात बार सूत लपेटती हैं, तो यह पति-पत्नी के सात जन्मों के अटूट बंधन का संकेत देता है। साथ ही, ऐसा माना जाता है कि यह क्रिया पति पर आने वाले संकटों को टाल देती है और जीवन में सुख-शांति बनाए रखती है।

वट सावित्री व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थीं जिनके पति सत्यवान अल्पायु थे। जब यमराज उनके प्राण लेने आए, तो सावित्री ने उनका पीछा किया और अपने तर्क, भक्ति और प्रेम से उन्हें इतना प्रभावित किया कि यमराज को न केवल सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े, बल्कि उन्हें सौ पुत्रों का आशीर्वाद भी देना पड़ा। जिस स्थान पर यह चमत्कार घटित हुआ, वह वट वृक्ष के नीचे था। इसी वजह से वट वृक्ष की पूजा विशेष मानी जाती है, इसकी शाखाओं को ‘सावित्री स्वरूप’ मानकर स्त्रियां श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा करती हैं।


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