ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई किसी गुप्त जगह पर रह रहे हैं इसराइल के साथ युद्धविराम के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई अपने गुप्त ठिकाने से बाहर निकल सकते हैं.

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वो इसराइल के साथ युद्ध के दौरान क़रीब दो सप्ताह से किसी गुप्त बंकर में रह रहे हैं.

माना जा रहा है कि इसराइल के हमलों और मारे जाने के डर से वो छिपकर रह रहे हैं और उनसे कोई संपर्क नहीं हो रहा है. यहां तक कि देश के शीर्ष सरकारी अधिकारियों का भी उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और क़तर के अमीर की मदद से हुए युद्धविराम के बावजूद उन्हें सतर्क रहने की सलाह दी जाएगी. हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप ने कथित तौर पर इसराइल से ईरान के सर्वोच्च नेता की हत्या न करने को कहा था.

लेकिन इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस संभावना से इनकार नहीं किया.

अगर ख़ामेनेई वास्तव में अपने गुप्त ठिकाने से बाहर निकलते हैं तो उन्हें देश में मौत और विनाश का मंज़र दिखाई देगा.

ज़ाहिर तौर पर वो इस संघर्ष में जीत का दावा करते हुए सरकारी टीवी पर दिखाई देंगे.

लेकिन अब उन्हें नई हक़ीक़तों का सामना करना पड़ेगा, यहाँ तक कि एक नए युग का भी.

इसराइल के साथ युद्ध ने ईरान को काफ़ी कमजोर कर दिया है और इससे उनकी छवि भी कमज़ोर हुई है.

शीर्ष स्तर पर असहमति की सुगबुगाहट


BBCख़ामेनेई को देश में लोगों के गुस्से का सामना भी करना पड़ सकता है

युद्ध के दौरान इसराइल ने ईरान के हवाई क्षेत्र के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था और उसके सैन्य ढांचे पर हमला किया. ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड और सेना के शीर्ष कमांडरों को इसराइल ने संघर्ष के शुरुआती दौर में बहुत आसानी से मार दिया.

इस युद्ध में सेना को कितना नुक़सान हुआ है, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है और इस पर विवाद जारी है. लेकिन सेना और रिवोल्यूशनरी गार्ड के ठिकानों और प्रतिष्ठानों पर बार-बार बमबारी से पता चलता है कि ईरान की सैन्य ताक़त काफ़ी कमज़ोर हो गई है.

ईरान में सेना को मज़बूत करने की प्रक्रिया में लंबे समय से देश के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च हुआ है.

ईरान के वो परमाणु ठिकाने जिनके बारे में सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध थी और जिसकी वजह से देश को क़रीब दो दशकों तक अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है, उन्हें बनाने में अरबों डॉलर का ख़र्च हुआ है.

अब वे ठिकाने हवाई हमलों से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, हालांकि ऐसे ठिकानों को कितना नुक़सान हुआ है इसका आकलन करना मुश्किल है.


ख़ामेनेई साल 1989 में देश के सर्वोच्च नेता बने थे

ईरान में अली ख़ामेनेई की नीतियों पर बढ़ती असहमति, क्या यह नेतृत्व परिवर्तन की शुरुआत है?

ईरानियों की एक बड़ी संख्या देश के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को इसराइल और अमेरिका से टकराव की स्थिति के लिए ज़िम्मेदार मानती है. उनका मानना है कि इस टकराव की भारी क़ीमत देश और आम जनता को चुकानी पड़ी है.

कई ईरानी नागरिक ख़ामेनेई को ‘इसराइल के विनाश’ की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए दोषी मानते हैं. ये एक ऐसा विचार है जिससे अधिकांश लोग सहमत नहीं हैं.

कुछ लोग ख़ामेनेई की परमाणु शक्ति हासिल करने की ज़िद को भी सही नहीं मानते हैं. उनके मुताबिक, इसी नीति की वजह से ईरान पर कठोर प्रतिबंध लगे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था लगभग ठप हो गई.

तेल के बड़े निर्यातक देशों में शामिल ईरान आज आर्थिक संघर्षों से जूझता ग़रीब देश बन चुका है.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की विज़िटिंग स्कॉलर प्रोफेसर लीना खातिब कहती हैं, “यह कहना मुश्किल है कि ईरानी शासन इतने दबाव में कितने समय तक टिक पाएगा, लेकिन मौजूदा हालात अंत की शुरुआत जैसे दिखते हैं. अली ख़ामेनेई संभवतः इस्लामी गणराज्य के अंतिम ‘सर्वोच्च नेता’ बन सकते हैं.”

उनके ख़िलाफ़ शीर्ष स्तर पर असहमति की आवाज़ें भी तेज़ हो रही हैं. इसराइल के साथ युद्ध चरम पर था, तभी एक ईरानी समाचार एजेंसी ने रिपोर्ट दी थी कि ईरानी शासन में कभी शीर्ष पदों पर रहे कुछ पूर्व अधिकारी, जो अब ख़ामेनेई से असहमत हैं, पवित्र शहर क़ुम में धार्मिक विद्वानों से नेतृत्व परिवर्तन में हस्तक्षेप करने का आग्रह कर रहे थे.

सेंट एंड्रयूज़ यूनिवर्सिटी में ईरानी अध्ययन संस्थान के संस्थापक निदेशक प्रोफेसर अली अंसारी का कहना है,

“इन सबका हिसाब लिया जाएगा. यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नेतृत्व के भीतर गहरे मतभेद हैं और आम जनता में व्यापक नराज़गी है.”

‘ग़ुस्से और नाउम्मीदी की जड़ें होंगीं मज़बूत’


इसराइल के साथ जंग में ईरान में काफ़ी नुक़सान हुआ है

पिछले दो हफ़्तों के दौरान कई ईरानी नागरिक अपने देश की सुरक्षा की ज़रूरत और शासन के प्रति गहरी नफ़रत की परस्पर विरोधी भावनाओं से जूझते रहे.

वे इस संघर्ष के दौरान हूकुमत की रक्षा करने के लिए नहीं हुए बल्कि एक-दूसरे को संभालने के लिए एकजुट हुए. उस दौरान देश में व्यापक एकजुटता और लोगों के बीच क़रीबी की ख़बरें आईं.

शहरी क्षेत्रों से बाहर क़स्बों और गांवों में लोगों ने अपने दरवाज़े उन लोगों के लिए खोल दिए जो अपने शहरों में बमबारी से बचकर भागे थे. दुकानदारों ने बुनियादी ज़रूरत के सामान की कम कीमत ली और पड़ोसियों ने एक-दूसरे के दरवाज़े खटखटाकर पूछा कि क्या उन्हें किसी चीज की जरूरत है तो नहीं.

लेकिन बहुत से लोग यह भी जानते थे कि इसराइल शायद ईरान में सत्ता परिवर्तन की फिराक़ में है. बहुत से ईरानी चाहते हैं कि सत्ता परिवर्तन हो. हालाँकि, वे विदेशी ताकतों के रचे और थोपे गए सत्ता परिवर्तन को लेकर एक सीमा तय कर सकते हैं.

दुनियाभर में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले निरंकुश शासकों में से एक आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने अपने क़रीब 40 साल के शासन में देश में विपक्ष को ख़त्म कर दिया है.

विपक्षी नेता या तो जेल में हैं या देश छोड़कर भाग गए हैं. विदेशों में रह रहे विपक्षी नेता ऐसा माहौल तैयार करने में असमर्थ रहे हैं जो विपक्ष को शासन के ख़िलाफ़ एकजुट कर सके.

वे ऐसा कोई भी संगठन बनाने में नाकाम रहे हैं जो अवसर आने पर देश का नेतृत्व कर सके.


कई ईरानी देश में सत्ता परिवर्तन के अमेरीकी और इसराली तरीके का विरोध कर सकते हैं

दो सप्ताह चले युद्ध के दौरान कई लोगों को यह आशंका थी कि आगे की स्थिति सत्ता परिवर्तन की नहीं, बल्कि देश में अव्यवस्था और अराजकता की ओर बढ़ सकती है.

प्रोफेसर लीना खातिब कहती हैं, “यह असंभव है कि ईरानी शासन को आंतरिक विरोध के ज़रिए गिराया जा सके. शासन अब भी स्थानीय स्तर पर मज़बूत है और असहमति को कुचलने के लिए दमन और उत्पीड़न को और बढ़ा सकता है.”

इस बीच, ईरान में आम नागरिकों में शासन के बढ़ते दमन को लेकर डर बढ़ता जा रहा है. इसराइल के साथ युद्ध शुरू होने के बाद, बीते दो हफ्तों में इसराइल के लिए जासूसी करने के आरोप में कम से कम छह लोगों को मौत की सज़ा दी गई है.

अधिकारियों के अनुसार, जासूसी के आरोप में लगभग 700 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.

एक ईरानी महिला ने बीबीसी फ़ारसी से कहा, “हमें युद्ध में हुई मौतों और विनाश से ज़्यादा डर इस बात का है कि अब यह घायल और अपमानित शासन अपने ही नागरिकों पर ग़ुस्सा निकाल सकता है.”

प्रोफेसर अली अंसारी का मानना है, “अगर सरकार बुनियादी चीज़ों और सेवाओं की आपूर्ति करने में विफल होती है, तो लोगों में ग़ुस्सा और हताशा और बढ़ेगी.”

उन्होंने कहा, “मैं इसे एक चरणबद्ध प्रक्रिया के रूप में देखता हूं. ये कोई ऐसा बदलाव नहीं है जो बमबारी बंद होते ही तुरंत असर दिखाने लगे.”

ईरान में बहुत कम लोग यह मानते हैं कि सोमवार को घोषित युद्धविराम टिकेगा. कई लोगों का मानना है कि इसराइल की रणनीति अभी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि अब उसका ईरानी हवाई क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण है.

ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल


कई ईरानियों को लगता है कि इसराइल के साथ युद्धविराम ज़्यादा दिनों तक नहीं चलेगा

इस जंग में एक चीज जो विनाश से बच गई, वह है ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलें.

इन मिसाइलों को ढूंढ पाना इसराइल के लिए मुश्किल था, क्योंकि वे पूरे देश में पहाड़ों के नीचे सुरंगों में रखी गई हैं.

इसराइली डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ इयाल ज़मीर ने कहा कि इसराइल ने ईरान पर अपना पहला हमला यह जानते हुए किया कि ‘ईरान के पास सतह से सतह पर मार करने वाली ढाई हज़ार मिसाइलें हैं.’

ईरान ने जो मिसाइलें दागीं, उनकी वजह से इसराइल में काफ़ी विनाश हुआ और लोगों की मौत भी हुई.

इसराइल को अभी ईरान के पास बची डेढ़ हज़ार मिसाइलों के बारे में चिंता होगी.

इसराइल, अमेरिका, अन्य पश्चिमी और पड़ोसी देशों में भी यह गंभीर चिंता है कि ईरान अभी भी परमाणु बम बनाने की दिशा में तेजी दिखा सकता है. हालांकि ईरान ऐसा करने से हमेशा इनकार करता रहा है.

इस संघर्ष में ईरान के परमाणु ठिकाने लगभग निश्चित तौर पर प्रभावित हुए हैं. लेकिन ईरान ने कहा है कि उसने अपने उच्च संवर्धित यूरेनियम के भंडार सुरक्षित जगहों पर स्थानांतरित कर दिए हैं.


रिपोर्ट के मुताबिक़ ट्रंप ने इसराइल से कहा था कि वो ख़ामेनेई की हत्या न करे

विशेषज्ञों के मुताबिक़ 60% तक संवर्धित यूरेनियम के ये भंडार अगर 90% तक संवर्धित किया जाए तो उससे क़रीब नौ परमाणु बम बनाए जा सकते हैं.

जंग शुरू होने से ठीक पहले ईरान ने घोषणा की कि उसने संवर्धन के लिए एक और नया गुप्त ठिकाना बनाया है जो जल्द ही शुरू होने वाला है.

ईरानी संसद ने संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था आईएईए के साथ अपने सहयोग को जल्द कम करने के लिए मतदान किया है.

हालांकि इसके लिए अभी भी मंज़ूरी की ज़रूरत है, लेकिन अगर यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो ईरान परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी से बाहर निकलने से एक कदम दूर होगा.

ईरान में सर्वोच्च नेता का समर्थन करने वाले कट्टरपंथी लोग ईरान को परमाणु बम बनाने के लिए इस समझौते से बाहर निकलने का समर्थन कर रहे हैं.

आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को लग सकता है कि उनकी सत्ता बच गई है. लेकिन बीमार और 86 साल की उम्र होने की वजह से उन्हें यह भी पता है कि उनके दिन भी गिने-चुने रह गए हैं.

संभव है कि वो अन्य किसी मौलवी या नेताओं के किसी काउंसिल को सत्ता का व्यवस्थित हस्तांतरण कर शासन को बनाए रखना चाहते हों.

दूसरी तरफ सर्वोच्च नेता के वफ़ादार रहे रिवोल्यूशनरी गार्ड के बाक़ी शीर्ष कमांडर किसी भी परिस्थिति में पर्दे के पीछे से सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रहे होंगे.


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