साइबर सिटी का अंधेरा सच: उत्तराखंड में म्यूल अकाउंट्स और डिजिटल धोखाधड़ी का जाल

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संपादकीय,देश डिजिटल इंडिया की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है, लेकिन इस रफ्तार के साथ ही साइबर अपराध का शिकंजा भी कसता जा रहा है। हाल ही में सीबीआई के ऑपरेशन चक्र-5 के तहत उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में की गई छापेमारी ने एक बार फिर यह कड़वा सच उजागर कर दिया कि डिजिटल लेनदेन की आड़ में किस कदर ठगी और अपराध फल-फूल रहे हैं। उत्तराखंड, जिसे हाल के वर्षों में “साइबर सिटी” के रूप में विकसित करने के दावे किए जा रहे हैं, खुद ऐसे अपराधों की जमीन बनता जा रहा है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

सीबीआई की जांच में यह तथ्य चौंकाने वाला है कि देशभर में करीब 8.5 लाख म्यूल अकाउंट खोले गए, जिनमें से हजारों खाते उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में भी सक्रिय हैं। ये खाते साइबर ठगों के लिए “पैसे के गलियारे” का काम करते हैं। खासतौर पर देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जैसे जिले, जहां इंटरनेट की पहुंच और बैंकिंग नेटवर्क तेजी से फैला है, वहां इस तरह के अपराध की जमीन और उपजाऊ हो गई है।

म्यूल अकाउंट्स आम तौर पर गरीब या कम पढ़े-लिखे लोगों के नाम पर खोले जाते हैं। कुछ हजार रुपये के लालच में लोग अपने दस्तावेज दे बैठते हैं, जिनका इस्तेमाल साइबर ठग करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी के लिए करते हैं। सीबीआई के मुताबिक, बैंक अधिकारी, बैंकिंग एजेंट और बिचौलिए भी इस गोरखधंधे में शामिल हैं। यह सिस्टम की विफलता और भ्रष्टाचार का गहरा संकेत है।

उत्तराखंड में भी हाल के महीनों में डिजिटल अरेस्ट, फर्जी निवेश योजनाओं, ऑनलाइन ठगी और फर्जी विज्ञापनों के मामलों में तेजी आई है। “डिजिटल अरेस्ट” जैसे साइबर अपराध में अपराधी खुद को पुलिस या सरकारी अधिकारी बताकर लोगों को डराते हैं और मोटी रकम ठग लेते हैं। खास बात यह है कि ऐसी घटनाओं के शिकार सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि शिक्षित वर्ग और सरकारी कर्मचारी भी हो रहे हैं।

उत्तराखंड सरकार लगातार “डिजिटल उत्तराखंड” के नारे लगा रही है, लेकिन हकीकत यह है कि साइबर पुलिस थानों में संसाधनों की भारी कमी है। विशेषज्ञ कर्मियों की संख्या कम है, फॉरेंसिक सुविधाएं कमजोर हैं और अंतरराज्यीय नेटवर्क से लड़ने के लिए पर्याप्त तकनीकी टूल्स उपलब्ध नहीं हैं। यही वजह है कि ठगी की घटनाओं की एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अपराधी अक्सर कानून की पकड़ से बाहर रहते हैं।

यह वक्त है जब उत्तराखंड सरकार को डिजिटल अवसंरचना के साथ-साथ साइबर सुरक्षा अवसंरचना पर उतनी ही गंभीरता से ध्यान देना होगा। बैंकों पर भी सख्त निगरानी जरूरी है ताकि केवाईसी नियमों को ताक पर रखकर म्यूल अकाउंट खोलने वालों पर तुरंत कार्रवाई हो। साथ ही जनता को जागरूक करना उतना ही जरूरी है, ताकि लोग आसानी से ठगों के झांसे में न आएं।

यदि हम सचमुच उत्तराखंड को साइबर सिटी बनाना चाहते हैं, तो हमें पहले उसके अंधेरे कोनों में पल रहे साइबर अपराध के इन म्यूल अकाउंट्स के नेटवर्क को जड़ से खत्म करना होगा। वरना डिजिटल विकास के साथ-साथ डिजिटल धोखा भी प्रदेश की पहचान बन जाएगा, जो किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है।


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