संपादकीय,चारधाम यात्रा: आस्था पर भारी लापरवाही और मुनाफाखोरी – उत्तराखंड सरकार के लिए आईना

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चारधाम यात्रा… केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का मेरुदंड। युगों-युगों से यह यात्रा न केवल आस्था का प्रतीक रही है, बल्कि पहाड़ों की अर्थव्यवस्था का भी आधार बनी रही। किंतु आज की तस्वीर बेहद भयावह और चिंताजनक है। हेलिकॉप्टर हादसे, सड़क दुर्घटनाएँ, भू-स्खलन, बेतरतीब भीड़ प्रबंधन, और हर ओर फैला लालच — ये सब उत्तराखंड सरकार के उस ‘विकास मॉडल’ की पोल खोल रहे हैं, जिसमें सब कुछ व्यापार और मुनाफे के तराजू पर तौला जा रहा है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

चारधाम यात्रा, जिसे ईश्वर और प्रकृति का वरदान माना जाता था, आज न केवल यात्रियों की बल्कि पहाड़ों की भी जान के लिए खतरा बन गई है। इस साल की यात्रा के शुरू होते ही हादसों की झड़ी लग गई। आंकड़े कहते हैं — मात्र दो महीनों में 60 से अधिक तीर्थयात्रियों की जान जा चुकी है, और यह आँकड़ा हर दिन किसी नई खबर के साथ बढ़ता ही चला जा रहा है।

सवाल बड़ा सीधा है — आखिर कब तक इस यात्रा के नाम पर श्रद्धालुओं की जान से खिलवाड़ होगा? कब तक उत्तराखंड सरकार और उसकी नियामक एजेंसियाँ कागजों पर ‘सुरक्षा मानकों’ की खानापूर्ति करती रहेंगी? कब तक पहाड़ अपनी ही छाती फाड़कर मलबा उड़ाते रहेंगे और लोग असमय काल का ग्रास बनते रहेंगे?

यह लेख इसी सवाल का आईना है — उत्तराखंड सरकार के लिए, नीति-निर्माताओं के लिए और उस मशीनरी के लिए, जो इस आस्था को केवल कमाई का साधन मान चुकी है।

हेलिकॉप्टर सेवा — आस्था की यात्रा या मौत की उड़ान?चारधाम यात्रा की सबसे भयावह कहानी हेलिकॉप्टर सेवाओं के नाम पर लिखी जा रही है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ — चार धामों की यात्रा को सुगम बनाने के नाम पर हेलिकॉप्टर सेवा प्रारंभ की गई थी। लेकिन अब यही सेवा उत्तराखंड में ‘रिक्शा और तांगे’ की तरह चल रही है, जैसा कि पर्यावरणविद् प्रो. बी.डी. जोशी कहते हैं। मुनाफाखोरी की अंधी दौड़ ने इसे मौत की उड़ान में बदल दिया है।

8 मई को गंगनानी-गंगोत्री मार्ग पर दुर्घटना में 6 यात्रियों की मौत

  • 12 मई को बद्रीनाथ से उड़ान भरते समय हेलिकॉप्टर की आपात लैंडिंग।
  • 15 जून को त्रियुगीनारायण-गौरीकुंड मार्ग पर हेलिकॉप्टर पेड़ से टकराया, 6 यात्री और पायलट की मौत

डीजीसीए (नागर विमानन महानिदेशालय) ने बार-बार निर्देश जारी किए हैं कि केदारनाथ जैसे पहाड़ी मार्गों पर हेलिकॉप्टर एक बार में सिर्फ 4 यात्रियों को ले जाएं, अधिकतम दो हेलिकॉप्टर ही एक साथ उड़े। लेकिन हकीकत में तीन-तीन हेलिकॉप्टर एक साथ रवाना हो रहे हैं, यात्रियों की संख्या भी मानकों से अधिक रखी जा रही है।

यह न केवल नियमों की धज्जियाँ उड़ाना है, बल्कि सीधी हत्या के बराबर है। दुर्घटना के बाद मुख्यमंत्री ने आदेश दिया था कि हेलिकॉप्टरों में केवल चार ही सवारियाँ होंगी। लेकिन 17 जून की दुर्घटना ने फिर साबित कर दिया कि आदेश सिर्फ फाइलों में हैं, जमीनी स्तर पर कोई पालन नहीं।

क्या यह मान लिया जाए कि मुनाफाखोरी के सामने राज्य सरकार भी घुटने टेक चुकी है? या फिर सरकार भी इस खेल में किसी न किसी रूप में शामिल है?

सड़क हादसे — पहाड़ों पर खून से लिखी गई इबारत,हेलिकॉप्टर हादसों के साथ-साथ सड़कें भी मौत का सफर बन गई हैं। जगह-जगह दुर्घटनाओं की कहानियाँ सामने आ रही हैं —

गुरुवार को रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ-बद्रीनाथ मार्ग पर बस अलकनंदा नदी में गिर गई। 3 यात्री मरे, 7 लापता।

  • यमुनोत्री में भूस्खलन से 2 श्रद्धालुओं की मौत, 2 लापता।
  • केदारनाथ पैदल मार्ग पर जंगलचट्टी के पास मलबे की चपेट में आकर एक की मौत, दो घायल।

यह सब उस निर्मम विकास मॉडल का परिणाम है, जिसके तहत सड़कों को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों का दिल छलनी किया जा रहा है।

पर्यावरणविद प्रो. दिनेश भट्ट का कहना बिल्कुल सटीक है — “सड़कों के चौड़ीकरण के नाम पर जिस बर्बरता से पेड़ काटे जा रहे हैं और पहाड़ों को छेदा जा रहा है, उससे पहाड़ कमजोर हो गए हैं। मामूली बारिश में भी पहाड़ टूट रहे हैं।”

आईआईटी रुड़की के प्रो. सत्येंद्र मित्तल की चेतावनी भी नजरअंदाज कर दी गई — “सड़क और विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के समय भूगर्भीय संरचना का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। लगातार ब्लास्टिंग के कारण पहाड़ कमजोर हो रहे हैं।”

विकास’ या विनाश — सरकार का खोखला दावा
उत्तराखंड सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि चारधाम यात्रा को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं। हेलिकॉप्टर कंपनियों को नोटिस दिए जा रहे हैं, ड्राइवरों को दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं, यात्री सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है।

लेकिन सच्चाई है — यह सिर्फ ‘कागजी इंतजाम’ हैं। न हेलिकॉप्टर कंपनियाँ डर रही हैं, न ट्रैवल एजेंसियाँ। और न ही अधिकारी ज़मीनी हकीकत देखने निकल रहे हैं।

चारधाम यात्रा के दो ही ध्येय रह गए हैं —

  • अधिकतम यात्रियों को खींचो
  • अधिकतम कमाई करो

भले ही उसकी कीमत किसी की जान क्यों न हो।

प्रकृति से छेड़छाड़ — भुगत कौन रहा है?उत्तराखंड के पहाड़ इस वक्त कराह रहे हैं। विकास की तलवार उनकी छाती पर चल रही है। हर ओर सड़कें चौड़ी करने की होड़ है।

पेड़ कट रहे हैं।

  • पहाड़ों को ब्लास्टिंग से उड़ा दिया जा रहा है।
  • नदियों के किनारे कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं।

पर्यावरणविद रवि चोपड़ा सही कहते हैं — “उत्तराखंड में विकास के नाम पर विनाश हो रहा है। इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।”

और यह सिर्फ पर्यावरण का नुकसान नहीं है। इससे सीधे-सीधे चारधाम यात्रा पर असर पड़ा है। कमजोर पहाड़ों पर बना सड़क नेटवर्क हर बारिश में टूट जाता है। भू-स्खलन की घटनाएँ बढ़ गई हैं। पहाड़ों में हल्की सी बारिश भी अब यात्रियों के लिए मौत का संदेश बनकर आती है।

ऑपरेशन सिंदूर’ और श्रद्धालुओं की भीड़ — नाकाम प्रबंधन का सच
इस साल यात्रा की शुरुआत में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत कुछ समय तक श्रद्धालुओं की संख्या नियंत्रित रही। लेकिन जैसे ही अभियान ढीला पड़ा, भीड़ फिर बेकाबू हो गई।

  • केदारनाथ में एक ही दिन 50 हजार लोग पहुँच गए।
  • बद्रीनाथ में लंबी कतारें लग रही हैं।
  • रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया का कोई ठोस पालन नहीं हो रहा है।

प्रशासन दावा करता है कि भीड़ नियंत्रण के लिए ‘ई-पास सिस्टम’ और ‘ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन’ लागू हैं। लेकिन हकीकत में यह सिस्टम उतना ही खोखला है, जितना सरकार का बाकी तंत्र। कहीं इंटरनेट नहीं चलता, कहीं गेट पर ही लोगों को घुसा दिया जाता है, कहीं अफसर खुद वीआईपी सिफारिशों पर पर्चियाँ फाड़ देते हैं।

इस अफरातफरी में न केवल श्रद्धालु असहज हैं, बल्कि पुलिस और प्रशासन भी हाथ खड़े कर चुका है।

क्या है समाधान?
यह सवाल सिर्फ उत्तराखंड सरकार से नहीं, हम सब से है। इस चारधाम यात्रा को व्यवसाय के बजाय आस्था और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के नजरिए से देखने की जरूरत है।

कुछ सुझाव:

  1. हेलिकॉप्टर संचालन पर कठोर नियंत्रण — डीजीसीए की गाइडलाइंस का शत-प्रतिशत पालन कराना होगा। एक साथ तीन हेलिकॉप्टर भेजना बंद हो। उड़ानें सिर्फ दिन में ही संचालित हों। हर उड़ान से पहले तकनीकी जांच अनिवार्य हो।
  • सड़क निर्माण में पर्यावरणीय विशेषज्ञों की सलाह — पहाड़ों में ब्लास्टिंग पूरी तरह प्रतिबंधित होनी चाहिए। भूगर्भीय सर्वे के बिना एक भी सड़क या सुरंग नहीं बनाई जाए।
  • भीड़ नियंत्रण के लिए सख्ती — रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन हो। वीआईपी संस्कृति खत्म हो। जरूरत पड़े तो यात्रियों की संख्या घटाई जाए।
  • इको-फ्रेंडली पर्यटन पर जोर — बड़े होटलों, पार्किंग और कंक्रीट के जंगल के बजाय छोटे होम-स्टे और लोकल इकोनॉमी को बढ़ावा मिले।
  • जनता की भागीदारी — ग्राम सभाओं और स्थानीय निकायों को चारधाम यात्रा प्रबंधन में शामिल किया जाए। स्थानीय लोग पहाड़ों को सबसे अच्छे से जानते हैं, उन्हें दरकिनार करना अपराध है।

उत्तराखंड सरकार के लिए आईना।
उत्तराखंड सरकार को यह समझना होगा कि चारधाम यात्रा केवल एक टूरिज्म प्रोजेक्ट नहीं है। यह आस्था की यात्रा है, जो प्रकृति की गोद में होती है। अगर सरकार इसे केवल कमाई का साधन मानकर मुनाफाखोरी की छूट देती रही, तो जल्द ही ऐसा दिन दूर नहीं जब ये पहाड़ यात्रियों को ही अपने सीने से उतार फेंकेंगे।

जिस राज्य का नाम ही ‘देवभूमि’ हो, वहां ‘रिक्शा और तांगे’ की तरह हेलिकॉप्टर उड़ना, यात्रियों की लाशों का अंबार लगना, और प्रशासन का मूकदर्शक बने रहना — यह बेहद शर्मनाक है।

सिर्फ सड़कें चौड़ी कर देना विकास नहीं है। विकास वह है जिसमें मानव जीवन, प्रकृति और आस्था — तीनों सुरक्षित रहें। लेकिन उत्तराखंड में फिलहाल तीनों खतरे में हैं।

चारधाम यात्रा आज उत्तराखंड सरकार के लिए सबसे बड़ा आईना है। यह आईना सरकार को दिखा रहा है कि उसके विकास के दावे कितने खोखले हैं। यह आईना सरकार को चेतावनी भी दे रहा है — अब भी संभल जाओ, वरना पहाड़ भी चीख-चीखकर कह उठेंगे कि उन्हें और खून नहीं चाहिए।


चारधाम यात्रा को बचाना है तो मुनाफे और विकास की आड़ में विनाश को रोकना होगा। वरना देवभूमि के पहाड़ों पर यह यात्रा हर साल श्रद्धालुओं की लाशों की कीमत पर ही होती रहेगी। और वह दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे — चारधाम यात्रा पर जाना मतलब मौत को बुलावा देना।

अब फैसला उत्तराखंड सरकार को करना है — धर्म बचाना है या धंधा चलाना है?



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