
रुद्रपुर,उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और आवासविहीन परिवारों के लिए खुशखबरी सामने आई है। देहरादून नगर निगम ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) 2.0 के तहत ऑनलाइन आवेदन मांगे हैं। इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवारों को 2.75 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाएगी, ताकि वे अपना पक्का घर बना सकें या पुराने मकान में सुधार कर सकें।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
योजना के उद्देश्य की बात करें तो सौरभ थपलियाल ने बताया कि यह योजना सितंबर 2024 में शुरू की गई थी और पाँच वर्षों तक चलेगी। इसका मकसद आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न-मध्यम आयवर्ग के उन परिवारों को आर्थिक मदद देना है, जिनके पास स्वयं का पक्का मकान नहीं है। केंद्र सरकार 2.25 लाख रुपये और राज्य सरकार 50 हजार रुपये की मदद देगी।
लाभ उन्हीं परिवारों को मिलेगा जिनके नाम पर भारत में कहीं भी पक्का घर नहीं है, जिन्होंने बीते 20 वर्षों में किसी भी सरकारी आवास योजना का लाभ नहीं लिया और जो 1 सितंबर 2024 से पहले नगर निगम क्षेत्र के निवासी हों। लाभार्थी परिवार की परिभाषा पति, पत्नी और अविवाहित बेटा-बेटी तक सीमित रहेगी।
मेयर थपलियाल ने स्पष्ट किया कि आवेदन पूरी तरह निशुल्क है। उन्होंने जनता से अपील की कि किसी दलाल के झाँसे में न आएं और यदि कोई इस योजना के नाम पर पैसों की माँग करे, तो सीधे नगर निगम कार्यालय में शिकायत दर्ज कराएं।
यह खबर कागज पर बेहद सुनहरी और राहत भरी दिखाई देती है। लेकिन उत्तराखंड की ज़मीन पर जब हकीकत की पड़ताल होती है, तब तस्वीर कुछ और ही कहती है।
2. रुद्रपुर का परिदृश्य: भूरारानी का मामला
अब इसी खबर के संदर्भ में रुद्रपुर की स्थिति पर नज़र डालें, तो वहाँ की हकीकत और भी ज्यादा चौंकाने वाली है।
रुद्रपुर नगर निगम के अंतर्गत भूरारानी क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत बहुमंज़िला फ्लैट बनाए गए थे। इन फ्लैटों को बनाने का उद्देश्य भी यही बताया गया था — आर्थिक रूप से कमजोर तबके को पक्के घर देना।
लेकिन हकीकत यह रही कि इन फ्लैटों का आवंटन उत्तराखंड के बाहर के लोगों को कर दिया गया, जिनमें विशेष समुदाय के लोग भी शामिल हैं। स्थानीय लोगों का आरोप रहा कि यह आवंटन राजनीतिक समीकरणों, जातीय-धार्मिक तुष्टिकरण और बाहरी प्रभावों के चलते किया गया।
इससे भूरारानी के ग्रामीण भड़क उठे और आंदोलन तक कर डाला। लोग सड़कों पर उतरे। रुद्रपुर के विधायक शिव अरोड़ा और मेयर विकास शर्मा ने जनता को आश्वासन दिया था कि स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा की जाएगी और मामले की जाँच कराई जाएगी। लेकिन यह आश्वासन सिर्फ आश्वासन ही रह गया।
आज तक ना तो कोई ठोस जाँच सामने आई, ना ही किसी की ज़िम्मेदारी तय हुई। वहीं, आवंटित परिवार फ्लैटों में कब्जा करके रह रहे हैं। न स्थानीयों को उनका अधिकार मिला, न कोई पारदर्शिता दिखाई दी।
3. योजनाओं पर ‘बाहरी कब्जा’ का बड़ा सवाल
रुद्रपुर का मामला कोई अपवाद नहीं है। पूरे उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों से सरकारी योजनाओं का लाभ बाहरी लोगों द्वारा हथियाए जाने की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं।
- प्रधानमंत्री आवास योजना
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
- राशन कार्ड
- वृद्धावस्था पेंशन
- मुख्यमंत्री आवासीय योजना
- अन्य शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
इन सभी योजनाओं में “स्थानीयता” का कोई ठोस मापदंड नहीं रखा गया। जिसके पास सही दस्तावेज़ हैं, वही “स्थानीय” कहलाता है। बाहरी लोग कागज़ी दस्तावेज़ तैयार कर, यहीं का पता लिखवाकर योजनाओं का लाभ उठाने लगे।
ऐसे में स्थानीय लोग हाशिए पर पहुँच रहे हैं। रुद्रपुर, हल्द्वानी, काशीपुर, हरिद्वार, देहरादून जैसे बड़े शहरी क्षेत्रों में यह स्थिति और भयावह है।
4. सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ
यह सवाल सिर्फ योजनाओं के वितरण तंत्र की विफलता तक सीमित नहीं है। इसके गहरे सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ हैं।
(a) जनसांख्यिकीय परिवर्तन
- बाहरी लोगों को योजनाओं का लाभ देकर बसाने का असर जनसंख्या संरचना पर पड़ रहा है।
- स्थानीय भाषा, संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने पर दबाव बढ़ रहा है।
- राजनीतिक समीकरण बदलने की आशंका स्थानीय लोगों को असुरक्षित कर रही है।
(b) राजनीतिक तुष्टिकरण
- कुछ पार्टियाँ वोट बैंक की राजनीति के लिए योजनाओं का आवंटन “विशेष समुदायों” की ओर मोड़ रही हैं।
- यही कारण है कि कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
(c) स्थानीय युवाओं में आक्रोश
- स्थानीय युवाओं के लिए घर, नौकरी, योजनाएँ सब दूर होती जा रही हैं।
- “पहले हमारा हक” का नारा तेज होता जा रहा है।
- यह आक्रोश भविष्य में सामाजिक टकराव की बड़ी वजह बन सकता है।
5. प्रधानमंत्री आवास योजना पर कटाक्ष
अब सवाल उठता है – क्या प्रधानमंत्री आवास योजना सच में उत्तराखंड के गरीबों का सपना साकार कर रही है? या यह भी एक राजनीतिक छलावा बनकर रह गई है?
योजना की शर्तों पर गौर कीजिए:
- “जिसके पास भारत में कहीं भी पक्का घर न हो।”
- “जिसने बीते 20 वर्षों में किसी आवास योजना का लाभ न लिया हो।”
- “नगर निगम क्षेत्र का निवासी हो।”
यह सब कागज़ पर तो सुंदर नियम हैं। पर ज़मीन पर कौन देखता है कि कोई झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार या यूपी से आकर यहाँ झूठा प्रमाणपत्र न बना ले?
नगर निगम के पास न कोई सत्यापन की तकनीक है, न कोई इच्छा। चंद दस्तावेज़ जमा होते हैं, और ‘आवासहीन’ का तमगा मिल जाता है।
रुद्रपुर में भूरारानी इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। वहाँ भी दस्तावेज़ सब सही थे, लेकिन स्थानीय लोग बेघर रह गए।
6. सरकारी तंत्र की नाकामी
सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि जब जनता सवाल उठाती है, तो नेता सिर्फ आश्वासन देते हैं।
“जाँच कराएँगे…”
“स्थानीयों को हक दिलाएँगे…”
“किसी बाहरी को योजना का लाभ नहीं लेने देंगे…”
पर हकीकत यह है कि सरकार के पास कोई ठोस फिल्टरिंग सिस्टम ही नहीं है। न नगर निगम के पास स्टाफ है, न विभागों के पास तकनीकी संसाधन। भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप अलग से।
7. आर्थिक शोषण का खतरा
मेयर थपलियाल कह रहे हैं कि आवेदन निशुल्क होगा। मगर हकीकत यह है कि ऐसे सरकारी पोर्टलों पर आवेदन करने के नाम पर लोग बिचौलियों को पाँच-पाँच, दस-दस हज़ार रुपये तक दे देते हैं।

