
रुद्रपुर,भारतीय जनता पार्टी (BJP) की राजनीति में संगठनात्मक ढांचा उसकी असली ताकत रहा है। सत्ता की सीढ़ियाँ संगठन के रास्ते से ही चढ़ी जाती हैं, और इसीलिए भाजपा ने अब पूरी ताकत संगठन के चुनावों में झोंक दी है। अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की ताजपोशी से पहले कम-से-कम 19 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे करने का जो एजेंडा तय किया गया, उसमें चार महत्वपूर्ण राज्यों – उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश – पर फिलहाल सबकी नजरें टिकी हैं।
लेकिन सवाल सिर्फ इतना नहीं कि कौन अध्यक्ष बनेगा। असल सवाल है – इन नियुक्तियों के पीछे भाजपा का असली सियासी गणित क्या है? आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं।


उत्तराखंड: महेंद्र भट्ट पर दांव क्यों?
उत्तराखंड में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने फिर से अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कर दिया है। सूत्र बता रहे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व उन्हें दोबारा यह जिम्मेदारी सौंप सकता है। भट्ट का कार्यकाल अब तक पार्टी के लिए संगठनात्मक रूप से स्थिरता और अनुशासन लेकर आया है।
भाजपा जानती है कि 2027 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र उत्तराखंड जैसे छोटे लेकिन राजनीतिक दृष्टि से अहम राज्य में किसी नए चेहरे को लाने का जोखिम फिलहाल नहीं उठाया जा सकता। भट्ट गढ़वाल मंडल के मजबूत नेता हैं, जबकि कुमाऊँ से भी उनका अच्छा तालमेल है। भाजपा को पहाड़ी-बनाम-मैदानी राजनीति के संतुलन की ज़रूरत है, और महेंद्र भट्ट इस संतुलन को साधने में फिलहाल उपयुक्त माने जा रहे हैं।
इसके अलावा, उत्तराखंड में भाजपा के भीतर हाल के दिनों में उठ रही असंतोष की आवाजों (जैसे नौकरियों में भ्रष्टाचार, सरकारी योजनाओं में गड़बड़ियां) को भी नेतृत्व बदलकर फिलहाल हवा नहीं देना चाहती।
हिमाचल प्रदेश: राजीव बिंदल की वापसी
हिमाचल प्रदेश में राजीव बिंदल का एक बार फिर नामांकन इस संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि भाजपा स्थिर संगठनात्मक नेतृत्व चाहती है। बिंदल संगठन में पुराने खिलाड़ी हैं, और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं। हालाँकि उन पर पिछली बार हेल्थ स्कैम के आरोपों की छाया पड़ी थी, लेकिन हाईकमान को लगता है कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ भाजपा को एक अनुभवी चेहरा चाहिए।
हिमाचल में हालिया उपचुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी है। पार्टी को ऐसा नेतृत्व चाहिए, जो पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रख सके और आंतरिक गुटबाजी पर नियंत्रण रख सके। बिंदल को फिर से आगे बढ़ाने के पीछे यही गणित काम कर रहा है।
तेलंगाना: रामचंद्र राव पर दांव क्यों?
तेलंगाना में भाजपा पिछले कुछ सालों से एंट्री की कोशिश कर रही है। हालाँकि हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा, फिर भी पार्टी की रणनीति लंबी दूरी की दौड़ पर केंद्रित है।
रामचंद्र राव पुराने संगठनात्मक नेता हैं। तेलंगाना में उनकी साफ-सुथरी छवि और कानूनी पृष्ठभूमि भाजपा को सूट करती है। भाजपा को लगता है कि रामचंद्र राव, OBC समुदाय के बीच भी अपनी पैठ बढ़ा सकते हैं, जो दक्षिण की राजनीति में निर्णायक वोट बैंक है।
इसके अलावा, आने वाले नगरपालिका और जिला परिषद चुनावों के लिए भाजपा को जमीनी संगठन मजबूत करना है। रामचंद्र राव का नाम इसीलिए आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि वे पार्टी को BRS और कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत विकल्प के तौर पर स्थापित कर सकें।
आंध्र प्रदेश: पीवीएन माधव और गठबंधन की गणित
आंध्र प्रदेश में भाजपा फिलहाल तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के साथ गठबंधन में है। यहां पर पीवीएन माधव का नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है। भाजपा जानती है कि राज्य में स्वतंत्र रूप से उसका जनाधार फिलहाल सीमित है। ऐसे में वह चाहती है कि अध्यक्ष ऐसा चेहरा हो, जो गठबंधन की राजनीति को भी संभाल सके और भाजपा की अपनी पहचान भी बनाए रखे।
पीवीएन माधव का नाम इसीलिए उछला है क्योंकि वे आंध्र प्रदेश में भाजपा के पुराने नेता हैं और TDP के साथ भी व्यक्तिगत समीकरण अच्छे हैं। दक्षिण भारत में भाजपा की मजबूती के लिए आंध्र को एक मजबूत संगठनात्मक चेहरे की ज़रूरत है, और पीवीएन माधव उस कसौटी पर खरे उतरते हैं।
आखिर राष्ट्रीय अध्यक्ष की तैयारी क्यों?
इन चार राज्यों में नियुक्तियां दरअसल राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की तैयारी हैं। पार्टी नेतृत्व चाहता है कि नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने से पहले राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे हो जाएं, ताकि कोई गुटबाज़ी या असंतोष न उभरे।
भाजपा की पूरी रणनीति है कि 2029 तक का रोडमैप अब नए अध्यक्ष की कमान में तैयार हो। उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे होते ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की फाइल पर अंतिम मुहर लग जाएगी।
निष्कर्ष: असल में क्या चल रहा है गणित?
कुल मिलाकर इन चार राज्यों में अध्यक्ष की दौड़ सिर्फ नामों का फेरबदल नहीं है। यह भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति के लिए पावर बैलेंसिंग एक्ट है। पार्टी हर राज्य में ऐसा चेहरा चाहती है –
- जो स्थिरता दे
- जमीनी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करे
- गुटबाजी पर काबू रखे
- लोकसभा चुनाव 2029 की तैयारी में संगठनात्मक मशीनरी पूरी ताकत से सक्रिय रखे
यानी भाजपा एक ही तीर से कई निशाने साध रही है — राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति का रास्ता साफ करना, राज्यों में गुटबाजी रोकना, और संगठन को 2029 तक के लिए फुल चार्ज मोड में रखना।
अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा अपने इस संगठनात्मक गणित को पूरी तरह साध पाती है, या फिर राज्यों के भीतर ही कोई बगावत या नई चुनौती खड़ी होती है। फिलहाल पार्टी का पूरा फोकस एक ही है — संगठन मज़बूत हो, ताकि सत्ता की राह आसान रहे।
(अवतार सिंह बिष्ट, संपादक, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / शैल ग्लोबल टाइम्स / उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी)

