
उत्तराखंड दिल्ली में आज से सख्ती शुरू हो गई है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के आदेश के मुताबिक, 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियां पेट्रोल पंपों से ईंधन नहीं भरवा सकेंगी। पेट्रोल पंपों पर हाई-टेक कैमरे (ANPR सिस्टम) तैनात हैं, पुलिसकर्मी चौकस हैं, और सरकार की मंशा साफ है – पुरानी, धुआं उगलने वाली गाड़ियों को सड़कों से हटाना ही दिल्ली की हवा बचा सकता है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
लेकिन सोचिए, क्या सिर्फ दिल्ली की हवा बचाने की जिम्मेदारी है? क्या उत्तराखंड की हवा किसी दूसरे दर्जे की है? हकीकत ये है कि हमारे पहाड़ों पर आज भी 20-25 साल पुरानी जीपें, बसें, टैक्सियां और ट्रक धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। कहीं ये स्कूल बच्चों को ला-ले जा रही हैं, कहीं पर्यटकों को। ये गाड़ियां जितना ज़हर उगल रही हैं, उतना ही ख़तरा पैदा कर रही हैं पहाड़ी पर्यावरण और लोगों की सेहत पर।
दिल्ली में 15 साल पुरानी गाड़ियों पर रोक है, लेकिन उत्तराखंड में 25-30 साल पुरानी गाड़ियां भी बिना किसी रोकटोक के सड़कों पर दौड़ रही हैं। पहाड़ी रास्तों पर तो हालत और भी गंभीर है। पावर कम होने के चलते ये गाड़ियां हर मोड़ पर ज़ोर मारती हैं, इंजन बुरी तरह धुआं छोड़ता है, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि पहाड़ों की नाज़ुक इकोलॉजी पर भी सीधा असर पड़ रहा है।
सरकार आंखें मूंदे क्यों बैठी है?
क्या उत्तराखंड सरकार को यह नहीं दिख रहा कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए कितनी सख्त नीतियां लागू हो रही हैं? दिल्ली में पेट्रोल पंपों पर ANPR सिस्टम लगे हैं, हर गाड़ी की नंबर प्लेट स्कैन हो रही है, कानून का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना और गाड़ी जब्ती की कार्रवाई हो रही है। लेकिन उत्तराखंड में हालात ऐसे हैं कि मानो प्रदूषण कोई मुद्दा ही न हो।
पर्यटन राज्य का सबसे बड़ा सहारा है। लेकिन अगर समय रहते प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया, तो एक दिन ऐसा आएगा जब लोग साफ हवा की तलाश में उत्तराखंड की ओर रुख करने के बजाय दूसरी जगहों का रुख करेंगे। यही उत्तराखंड के विकास और अर्थव्यवस्था पर सबसे बड़ा प्रहार होगा।
सरकार को तत्काल यह कदम उठाने चाहिए:
10-15 साल पुरानी व्यावसायिक गाड़ियों का राज्यव्यापी सर्वे कराएं।
पहाड़ी जिलों में ANPR सिस्टम लगाकर पुराने वाहनों की पहचान करें।
नए फिटनेस सर्टिफिकेट नियम लागू करें और सख्ती से पालन कराएं।
पुराने वाहनों के लिए स्क्रैप पॉलिसी लागू करें और मालिकों को सब्सिडी देकर नई गाड़ियां खरीदने के लिए प्रोत्साहित करें।
नगर निगम और परिवहन विभाग को संयुक्त अभियान चलाने का निर्देश दें।
यह मत भूलिए कि दिल्ली में लागू हुआ नियम आने वाले वक्त में पूरे देश के लिए उदाहरण बनेगा। अगर उत्तराखंड सरकार अब भी नहीं चेती, तो शायद बहुत देर हो जाएगी। पहाड़ों पर साफ हवा केवल नारा नहीं, हमारी जीवनरेखा है।
उत्तराखंड सरकार को इस खबर का संज्ञान लेना ही होगा, वरना हमारी धरोहर और भविष्य – दोनों ही धुएं में घुट जाएंगे।

