
रुद्रपुर, हरिद्वार। नगर निगम हरिद्वार द्वारा सराय क्षेत्र में 54 करोड़ रुपये में खरीदी गई जमीन के घोटाले की परतें लगातार खुल रही हैं। विजिलेंस जांच में सामने आया है कि विक्रेताओं ने यह जमीन महज एक सप्ताह पहले तक 15 करोड़ रुपये मूल्य की ही दिखाई थी। लेकिन सरकारी पैसे की बंदरबांट के लिए पहले जमीन की श्रेणी बदली गई और फिर बढ़ी हुई कीमत पर उसे खरीदा गया।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
रुद्रपुर-उधम सिंह नगर में सरकारी भूमि घोटाले : सुनियोजित लूट का नमूना?उधम सिंह नगर, विशेषकर रुद्रपुर में पिछले डेढ़ दशक में सरकारी भूमि की सुनियोजित लूट हुई है। वर्ष 2000 के बाद जब रुद्रपुर को जिला मुख्यालय बनाया गया, तो तेजी से शहरीकरण हुआ और इसी बदलाव का लाभ उठाकर एक बड़ा भूमि माफिया सक्रिय हुआ। औद्योगिक भूखंडों, नजूल भूमि, और ग्राम समाज की जमीन को भू-माफिया ने अफसर-नेताओं की मिलीभगत से कब्जाया।
बहुचर्चित ट्रांजिट कैंप, मानपुर रोड, सिविल लाइंस और बगवाड़ा क्षेत्र में ग्राम समाज की भूमि को पट्टों के माध्यम से अपने करीबी लोगों को बाँटा गया और फिर उसे मोटे दामों पर बेचा गया। कई मामलों में फर्जी खतौनी और कागजात बनाकर सरकारी भूमि को निजी दिखाकर रजिस्ट्री कर दी गई।
नजूल भूमि को आवासीय घोषित कराने के लिए करोड़ों की दलाली चली। नगर निगम, विकास प्राधिकरण और राजस्व विभाग की सांठगांठ से यह खेल वर्षों तक चलता रहा। इन मामलों में कुछ जांचें शुरू हुईं, लेकिन अब तक किसी बड़ी मछली पर कार्रवाई नहीं हुई। यदि यह जांच व्यापक स्तर पर हो, तो रुद्रपुर में 500 करोड़ से अधिक की सरकारी ज़मीनों का घोटाला सामने आ सकता है।
इस मामले में विक्रेताओं जितेंद्र यादव, धनपाल और सुमन देवी के बैंक खातों को विजिलेंस ने फ्रीज किया है। इन खातों में कुल 34 करोड़ रुपये जमा हैं। इतना ही नहीं, जांच में ऐसे 16 बैंक खाते भी चिन्हित किए गए हैं, जिनमें किसानों से ट्रांसफर की गई 13 करोड़ रुपये की रकम जमा है। ये खाते हरिद्वार के कई प्रॉपर्टी डीलर, नेताओं और किसानों के रिश्तेदारों के बताए जा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक विजिलेंस के पास मुकदमा दर्ज कराने लायक सबूत हैं और किसी भी वक्त केस दर्ज करके गिरफ्तारियां की जा सकती हैं। इस घोटाले में तत्कालीन जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह समेत 10 अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है।
जांच में यह भी सामने आया कि जमीन बेचकर मिले पैसे से विक्रेताओं ने सात करोड़ रुपये में ज्वालापुर स्थित ट्रांसपोर्ट नगर में HRDA से नई जमीन खरीदी। विजिलेंस ने इस राशि को भी फ्रीज कर लिया है।
संपादकीय ,सरकारी ज़मीन घोटाले : सिस्टम का Cancer और समाज पर असर
हरिद्वार नगर निगम का ताज़ा ज़मीन घोटाला एक बार फिर सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ों की गहराई दिखा रहा है। जिस जमीन की कीमत 15 करोड़ रुपये थी, उसे 54 करोड़ में खरीदना सिर्फ एक कागजी खेल नहीं है, यह करोड़ों की जनता की गाढ़ी कमाई की डकैती है।
योजना सीधी और घिनौनी होती है — पहले ज़मीन की श्रेणी बदली जाती है, फिर रेट बढ़ाया जाता है, और फिर सरकारी खजाने से पैसा बहाया जाता है, ताकि उसका बड़ा हिस्सा अफसर-नेता-ब्रोकर-प्रॉपर्टी माफिया के गठजोड़ में बंट सके।
हरिद्वार का मामला चौंकाने वाला है, पर दुर्भाग्य से यह अकेला नहीं। देहरादून, उधम सिंह नगर, रुद्रपुर, हल्द्वानी — सभी जगह यह बीमारी फैली है। कई जगह विकास प्राधिकरणों (HRDA, MDDA, SDA) द्वारा “परिवर्तित भूमि” की ऊँची दर पर खरीद-फरोख्त होती है। किसान को मामूली दाम पर ज़मीन खरीदकर बिल्डर लॉबी और सरकारी अफसर मोटी कमाई करती है।
उधम सिंह नगर और रुद्रपुर में कई औद्योगिक क्षेत्र और हाउसिंग स्कीमों की जमीनें आज भी विवादों में हैं। यहाँ जमीन की रेट बदलवाना और भू-उपयोग बदलवाना “कमाई का ज़रिया” बन चुका है। हल्द्वानी में नगर निगम की सीमाओं का विस्तार और मेट्रो या स्मार्ट सिटी जैसी योजनाएं भी कई ज़मीन सौदों के पीछे की वजह बनीं।
यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं, सामाजिक और आर्थिक असमानता की भी जड़ है। करोड़ों रुपये के घोटाले से विकास योजनाएं रुकती हैं, स्कूल-अस्पतालों का बजट कटता है, और जनता के लिए जरूरी सुविधाएं ठप होती हैं। किसानों की ज़मीन छीनकर उन्हें कुछ लाख थमा देना, फिर उसकी सौ गुना कीमत वसूलना, सामाजिक न्याय की हत्या है।
IPS अधिकारी रचिता जुयाल और विजिलेंस टीम की जांच उम्मीद बंधाती है। पर असली सवाल यह है — क्या यह मामला भी “लंबित जांच” की फाइलों में दफ्न हो जाएगा, या सचमुच सजा तक पहुँचेगा?
ज़रूरत है कि उत्तराखंड सरकार, लोकायुक्त और हाईकोर्ट ऐसे मामलों पर स्वतः संज्ञान लें। सिर्फ हरिद्वार ही नहीं, बल्कि देहरादून, उधम सिंह नगर, रुद्रपुर, हल्द्वानी समेत हर जिले के भूमि सौदों की व्यापक ऑडिट हो। सिर्फ अफसर ही नहीं, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त बड़े दलालों पर भी कार्रवाई हो।
वरना, यह सिस्टम का Cancer धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड की आत्मा को खा जाएगा।

