
उत्तराखंड में धामी राज के घोटाले: नेता, नौकरशाह और माफिया की तिकड़ी का खेल
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में उत्तराखंड में विकास की बड़ी-बड़ी घोषणाओं के पीछे घोटालों और फर्जीवाड़ों की लंबी फेहरिस्त खड़ी हो गई है। चाहे रोजगार हो, निर्माण कार्य हों या प्राकृतिक संसाधनों का दोहन—हर क्षेत्र में नेता, नौकरशाह और माफिया की तिकड़ी का गठजोड़ नजर आता है।


सबसे बड़ा मामला UKSSSC पेपर लीक घोटाला रहा, जिसने हजारों युवाओं का भविष्य बर्बाद कर दिया। परीक्षा के पेपर लाखों में बिके, और सत्ताधारी दल के करीबियों और अधिकारियों पर उंगलियां उठीं। इसके बाद विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाला उजागर हुआ, जहां नियमों को ताक पर रखकर सत्ताधारी नेताओं और अफसरों के रिश्तेदारों को नौकरी बांटी गई।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
खनन क्षेत्र में भी माफिया का कब्जा और अवैध वसूली चरम पर है। लाखों ट्रॉली अवैध खनन के जरिए निकलती हैं, जिन पर प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में सड़क और सीवरेज निर्माण में बिलों की फर्जीवाड़ा कर करोड़ों का गबन हुआ।
आयुष्मान भारत योजना में फर्जी मरीज और झूठे इलाज के नाम पर घोटाला सामने आया, जबकि टिहरी बांध पुनर्वास और जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं में भी भारी अनियमितताएं उजागर हुई हैं।
जनता का आरोप है कि धामी सरकार के दौर में माफिया, नेता और अफसरशाही का गठजोड़ इतना मजबूत हो गया है कि सच बोलने वालों को डराया-धमकाया जा रहा है। सवाल है—क्या इन घोटालों पर वाकई कोई कार्रवाई होगी, या फिर सबकुछ चुनावी नारों में ही दफ्न हो जाएगा?
उत्तराखंड,साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था, एक नए युग के सपने के साथ—ईमानदारी, पारदर्शिता और विकास। लेकिन इन 25 सालों में हकीकत कुछ और ही निकली। नेता, अफसरशाही और माफियाओं के गठजोड़ ने उत्तराखंड को घोटालों की प्रयोगशाला बना दिया। जहां जनता को रोजगार, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य चाहिए था, वहीं सत्ता के गलियारों में हजारों करोड़ के घोटाले पनपते रहे।
यहां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के सबसे बड़े 10 घोटालों की, जिन्होंने इस पहाड़ी राज्य को आर्थिक, सामाजिक और नैतिक रूप से कमजोर किया। यह लेख किसी एक पार्टी पर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर आरोप-पत्र है।
1. UKSSSC पेपर लीक घोटाला (2022)
उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों की आस लगाए लाखों युवाओं के लिए 2022 सबसे काला साल साबित हुआ। UKSSSC भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक घोटाले ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया।
- करीब 40 से ज्यादा गिरफ्तारियां, जिनमें नकल माफिया, सरकारी कर्मचारी और राजनीतिक रसूखदार शामिल थे।
- एक पेपर 5-10 लाख रुपये में बेचा जा रहा था।
- जांच में STF और SOG ने कई गैंग पकड़े, लेकिन असली मास्टरमाइंडों तक हाथ नहीं पहुंच सका।
- हजारों युवाओं की सालों की मेहनत, उम्र सीमा, और विश्वास सब कुछ बर्बाद हो गया।
आज तक लोग पूछते हैं—इस घोटाले का असली गुनहगार कौन?
2. विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाला (2022)
उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में बिना विज्ञापन, बिना परीक्षा 200 से अधिक लोगों की नियुक्ति की गई। मामला तब सामने आया जब सूची लीक हुई।
- कई मंत्रियों और अफसरों के रिश्तेदार, निजी स्टाफ भर्ती पाए गए।
- इस घोटाले ने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया।
- विधानसभा स्पीकर ऋतु खंडूरी को जांच करानी पड़ी, लेकिन किसी बड़े नेता पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई।
जनता की नजर में ये घोटाला राजनीतिक संरक्षण का सबसे शर्मनाक उदाहरण बन गया।
3. खनन माफिया घोटाला
उत्तराखंड के हरिद्वार, बाजपुर, कोटद्वार, लक्सर, काशीपुर, किच्छा और रामनगर इलाके खनन माफिया का गढ़ बने हुए हैं।
- एक अनुमान के मुताबिक सालाना 5000 करोड़ रुपये का अवैध खनन।
- अफसरों और नेताओं को हफ्ता जाता है।
- कानून के डर से कोई मुंह नहीं खोलता, क्योंकि विरोध करने पर जेल, धमकी या हिंसा झेलनी पड़ती है।
- खनन माफिया ने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बदल दिया, पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचाई।
4. स्मार्ट सिटी घोटाला
देहरादून, ऋषिकेश, हल्द्वानी में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में बड़े घोटाले सामने आए।
- कई जगह सड़कें बनाई गईं जो छह महीने में टूट गईं।
- एक ही कार्य को दो-तीन ठेकेदारों के नाम पर अलग-अलग बिलिंग।
- काम का रेट बाजार से तीन गुना तक बढ़ा।
- RTI कार्यकर्ताओं पर धमकियां और मुकदमे दर्ज हुए, ताकि घोटालों की परतें न खुलें।
5. आयुष्मान कार्ड घोटाला
केंद्र की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत का उत्तराखंड में मजाक बना दिया गया।
- हजारों फर्जी मरीजों के नाम पर करोड़ों के बिल।
- निजी अस्पतालों ने बिना इलाज के भी भुगतान लिया।
- जांच में कुछ अस्पतालों के लाइसेंस रद्द हुए, पर प्रमुख खिलाड़ियों पर कोई कार्रवाई नहीं।
6. टिहरी बांध पुनर्वास घोटाला
टिहरी बांध बना, लेकिन पुनर्वास आज भी अधूरा है।
- मुआवजा पाने वालों की सूची में हजारों फर्जी नाम।
- असली विस्थापित आज भी झोपड़ियों में जीवन यापन कर रहे हैं।
- करोड़ों का बजट खर्च, लेकिन विस्थापितों को न जमीन मिली, न घर।
7. शिक्षा विभाग फर्नीचर घोटाला (2018)
उत्तराखंड के स्कूलों में फर्नीचर खरीद के नाम पर 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला।
- फर्जी बिल बनाकर पैसा निकाल लिया गया।
- स्कूलों में आज भी बच्चे ज़मीन पर बैठते हैं।
8. जल जीवन मिशन पाइप घोटाला (2022–2024)
ग्रामीण इलाकों में नल-जल योजना में बड़े घोटाले हुए।
- पाइप की कीमतें असली बाजार भाव से तीन-चार गुना अधिक दिखाई गईं।
- घटिया पाइप इस्तेमाल हुए, जिनसे लिकेज और पानी की बर्बादी।
- अफसर और ठेकेदार मिलकर किकबैक की व्यवस्था चलाते रहे।
9. हाईवे निर्माण भूमि घोटाला (2021)
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल और NH-74 प्रोजेक्ट में भूमि अधिग्रहण घोटाले का खुलासा हुआ।
- खेतों को आबादी घोषित कर मुआवजा कई गुना बढ़वाया गया।
- जमीन के असली मालिक दर-दर भटक रहे हैं, फर्जी मालिक करोड़पति बन गए।
10. पीआरडी और आउटसोर्सिंग भर्ती घोटाला (2023)
सरकारी विभागों में पीआरडी और आउटसोर्सिंग के नाम पर करोड़ों की बंदरबांट।
- प्रदेश के बाहर के लोग संविदा पर रखे गए।
- उत्तराखंड के युवाओं को ‘अनफिट’ बताकर रिजेक्ट किया गया।
- कई विभागों में कर्मचारियों की भर्ती केवल सिफारिश और रिश्वत पर हुई।
इन घोटालों की फेहरिस्त बताती है कि उत्तराखंड में भ्रष्टाचार व्यवस्था में घुल-मिल गया है। सरकारें बदलती रहीं, चेहरे बदलते रहे, पर घोटाले करने वालों का गठजोड़ कायम रहा।
उत्तराखंड के युवा, आंदोलनकारी, किसान, मजदूर आज पूछ रहे हैं — जिस राज्य को हमने अपने लहू से सींचा, क्या उसका भविष्य नेताओं और माफियाओं की तिजोरी भरने में ही खर्च होगा?
सवाल ये नहीं कि घोटाले हुए या नहीं। सवाल ये है — क्या कोई सरकार इन घोटालों के असली दोषियों को जेल भेज पाएगी? या सबकुछ फिर “चुनावी जुमलों” में दब जाएगा?

