
उत्तराखंड के तराई क्षेत्र का सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना विविधता से भरा है। इस विविधता में एक महत्वपूर्ण अध्याय उस बंगाली समाज का भी है, जिसने विभाजन की विभीषिका झेली, अपनी संस्कृति से समझौता नहीं किया, और इस्लामी कट्टरपंथ के आगे न झुकते हुए अपनी आस्था और पहचान बचाने के लिए सबकुछ छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बनना स्वीकार किया। उत्तराखंड के तराई क्षेत्र विशेषकर ऊधम सिंह नगर और उसके आस-पास के इलाकों में आज बंगाली समाज एक मज़बूत सामाजिक इकाई के रूप में स्थापित है, जिसने क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
विधायक शिव अरोरा की पहल पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा हालिया घोषणाएँ बंगाली समाज के लिए निश्चय ही ऐतिहासिक हैं। हरिचाँद गुरुचाँद स्मृति छात्रवृत्ति कोष की स्थापना इस समाज के मेधावी किंतु आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए एक वरदान साबित होगी। यह कोष न केवल शिक्षा के अवसर बढ़ाएगा, बल्कि उन बच्चों के सपनों को पंख देगा, जो अब तक सिर्फ़ आर्थिक अभाव के कारण अपनी उड़ान पूरी नहीं कर पाते थे। छात्रवृत्ति की समिति में स्वयं डीएम, सीडीओ, कोषाधिकारी और बंगाली समाज के प्रतिनिधियों को शामिल करना यह दर्शाता है कि सरकार इस योजना को समाज की ज़मीनी ज़रूरतों से जोड़कर लागू करना चाहती है।
इतना ही नहीं, बंगाली भाषा को नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत तराई के बंगाली बहुल क्षेत्रों में पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्देश भी सरकार के दूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रमाण है। समय की विडम्बना है कि अपनी संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़ने वाला यह समाज, आज अपनी भाषा को ही धीरे-धीरे खोता जा रहा था। मुख्यमंत्री धामी का यह निर्णय न केवल बंगाली समाज की सांस्कृतिक पहचान को सहेजने का काम करेगा, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता को और समृद्ध करेगा। इससे बंगाली समाज की आने वाली पीढ़ियां अपनी भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी रहेंगी, वहीं अन्य उत्तराखंडी भी इस भाषा से परिचित हो सकेंगे।
साथ ही, बंगाली समाज के निवास प्रमाण पत्रों से ‘पूर्वी पाकिस्तान’ शब्द हटाने, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस में सम्मान, और जिला स्तर पर ‘बंग भवन’ निर्माण जैसी घोषणाएँ, यह सिद्ध करती हैं कि धामी सरकार केवल सांकेतिक राजनीति नहीं कर रही, बल्कि सामाजिक सम्मान और ऐतिहासिक अन्याय के परिमार्जन की दिशा में ठोस कदम उठा रही है।
बंगाली समाज के उत्थान से उत्तराखंड के विकास को नई गति मिलेगी। यह समाज मेहनतकश, व्यवसायी, कृषि और उद्योग जगत में अग्रणी भूमिका निभाने वाला समुदाय है। ऐसे समाज को मुख्यधारा में और मज़बूती से जोड़ना, प्रदेश की सामाजिक-आर्थिक ताकत को और बढ़ाएगा। मुख्यमंत्री धामी के शब्द— “बंगाली समाज का विकास, उत्तराखंड का विकास है”— निश्चय ही भविष्य की राजनीति और सामाजिक दृष्टिकोण का मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।
धामी सरकार का यह फैसला इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा। यह केवल एक भाषाई या शैक्षणिक निर्णय नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की पहचान, आत्मसम्मान और उनके दर्द की कद्र का प्रतीक है, जो कभी अपने ही देश में बेगाने बन कर आए थे। आज उनके सपनों को पंख देने का वक़्त आ गया है। यह फैसला न केवल बंगाली समाज बल्कि पूरे उत्तराखंड की बहुल सांस्कृतिक पहचान को और मज़बूती देगा।
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