
उत्तराखंड की राजनीति में फिलहाल जो सबसे बड़ा सवाल हवा में तैर रहा है, वह यह नहीं कि विपक्ष कितनी मजबूत हो रही है, बल्कि यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी खुद अपने ही मुख्यमंत्री को बदलने की तैयारी कर रही है?


यह सवाल अचानक पैदा नहीं हुआ। इसकी जड़ें हाल के पंचायत चुनावों, पार्टी के भीतर खेमेबाज़ी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की लोकप्रियता के बावजूद उनके खिलाफ पनपते असंतोष में छिपी हैं।पंचायत चुनाव बने सियासी लिटमस टेस्ट
ताज़ा पंचायत चुनाव नतीजों ने सत्ता की गलियों में हलचल बढ़ा दी है। पंचायत चुनाव भले स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हों, लेकिन इनका संदेश दूर तक जाता है। यदि जिला पंचायत अध्यक्षों पर भाजपा का शिकंजा ढीला पड़ा, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी संकट गहराना तय है। यही वजह है कि भाजपा के भीतर गुप्त मंत्रणा तेज़ है।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के सर्वे के मुताबिक, कई वरिष्ठ नेता गढ़वाल से मुख्यमंत्री का चेहरा लाने की वकालत कर रहे हैं, ताकि क्षेत्रीय संतुलन साधा जा सके। और इस रेस में धन सिंह रावत सबसे आगे बताए जा रहे हैं।
क्या धामी के सिवा कोई और चेहरा है?
लेकिन सवाल यह है — क्या भाजपा 2027 का चुनाव किसी और चेहरे पर लड़ सकती है?
उत्तराखंड की जनता का जवाब फिलहाल साफ है — नहीं।
हिंदुत्व का एजेंडा हो, युवाओं के बीच लोकप्रियता हो, या राज्य की मूल अवधारणा पर काम करने का मुद्दा — पुष्कर सिंह धामी हर पैमाने पर भाजपा के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक निवेश साबित हुए हैं।
उनके शासनकाल में कानूनों में ऐतिहासिक बदलाव हुए। एक ओर Uniform Civil Code (UCC) की दिशा में ऐतिहासिक पहल, दूसरी ओर भू-कानून में सख्ती, और धार्मिक-सांस्कृतिक विमर्श को सशक्त करने वाले कदम — धामी ने भाजपा के कोर वोटर को एकजुट रखने में अब तक कोई कमी नहीं छोड़ी।
लेकिन… अंसतोष का धुआं
फिर भी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। भाजपा के ही कई वरिष्ठ नेता गढ़वाल में असंतोष पाले बैठे हैं। धामी का कद जितना बड़ा हो रहा है, उतनी ही उनकी छवि से ईर्ष्या और विरोध भी भीतर ही भीतर बढ़ रहा है।
गढ़वाल के अंदरखाने में यह धारणा गहरी हो रही है कि “क्यों न गढ़वाल से ही मुख्यमंत्री हो, ताकि क्षेत्रीय असंतुलन खत्म हो और भाजपा को ज्यादा सुरक्षित जमीन मिले।”
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि पार्टी के अंदर एक वर्ग धन सिंह रावत को मुख्यमंत्री के संभावित चेहरे के तौर पर लगातार आगे बढ़ा रहा है। लेकिन पार्टी के अंदर ही बहुत सारे लोग मानते हैं कि धन सिंह रावत की जन-स्वीकृति का स्तर फिलहाल धामी के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता।
“चुनाव हारने के बावजूद धामी नंबर-वन क्यों?”
यह भी याद रखना चाहिए कि जब धामी खुद चुनाव हार गए थे, तब भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा। उस समय हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ने ही सबसे पहले इशारा किया था कि भाजपा धामी को हटाने नहीं जा रही है। और वही हुआ।
क्यों? क्योंकि भाजपा जानती है — धामी का नाम ही सबसे बड़ा चुनावी ब्रांड है।
आज भी यदि भ्रष्टाचार और घोटालों के मामलों को दरकिनार कर दें, तो जनता धामी को ही अपने सबसे बड़े नेता के तौर पर देख रही है।
2027 की जंग और हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स का सर्वे
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के ताज़ा सर्वे ने बड़ा धमाका किया है। इस सर्वे के मुताबिक —
“उत्तराखंड की जनता आज भी धामी को ही 2027 के लिए सबसे भरोसेमंद चेहरा मान रही है। यदि भाजपा धामी को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए रखती है, तो 2027 में फिर सत्ता में वापसी की राह आसान हो सकती है।”
लेकिन इस रिपोर्ट में यह भी साफ चेतावनी है — यदि पंचायत चुनावों के नतीजे गड़बड़ाए, या पार्टी के भीतर असंतोष गहरा हुआ, तो धामी की कुर्सी पर खतरा बढ़ सकता है।यानी धामी के लिए पंचायत चुनाव अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं।
2027 की लड़ाई न सिर्फ कांग्रेस से होगी, बल्कि भाजपा के भीतर के असंतोष से भी होगी।
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अगर पंचायत चुनाव में भाजपा मजबूत रही, तो धामी ही मुख्यमंत्री का चेहरा बने रहेंगे।
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अगर पार्टी के भीतर असंतोष और गहराया, और पंचायत चुनावों में झटका लगा, तो मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति पर अमल हो सकता है। लेकिन कोई भी नया चेहरा धामी जितनी लोकप्रियता और जनस्वीकृति हासिल कर पाएगा — इसकी गारंटी किसी के पास नहीं।
फिलहाल उत्तराखंड की जनता कह रही है —धामी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं।हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के सर्वे ने साफ कर दिया है कि पुष्कर सिंह धामी ही भाजपा के लिए सबसे बड़ा दांव हैं — और यही सर्वे आने वाले समय में उत्तराखंड की राजनीति में “मील का पत्थर” साबित होगा।

