आज 10 जुलाई 2025 को भारतभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाएगी गुरु पूर्णिमा. महर्षि वेदव्यास की जयंती के इस दिन सूर्य को जल चढ़ाकर गुरु के चरणों में शीष झुकाने की परंपरा है.

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अर्थात गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है.’ अर्थात गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है. पारंपरिक रूप से, गुरु-शिष्य का रिश्ता अर्पण और समर्पण का होता था. शिष्य का गुरु के प्रति सम्पूर्ण समर्पण होता था, जबकि गुरु का स्नेह शिष्य के प्रति निस्वार्थ होता था. इस रिश्ते की मजबूती से सामाजिक मौलिकता और नैतिकता को बल मिलता था.

10 जुलाई को पूरा देश गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) मना रहा है. इस समय अपने शिक्षक और गुरुओं को सम्मान के स्वरूप याद कर रहे हैं. कई लोग अपनी यादों को साझा कर रहे हैं. हालांकि, कम ही लोग अब उसे प्रतिष्ठा की पंरपरा का पान करते हैं जहां गुरु के प्रति समर्पण होता था. वहीं शिक्षा का बाजारीकरण होने से लोग अब शिक्षक को भी किसी सामान की तरह ट्रीट करने लगे हैं.

गुरु शिष्य परम्परा के उदाहरण

आधुनिक समय में बदलाव

आज के समय में, शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बदलाव आए हैं. गुरु अब एजेंसी बन गया है, जो आपको किताबों और तकनीक की शिक्षा देता है, जबकि शिष्य ग्राहक बन गया है, जो अपने दिए मूल्य के अनुसार सब कुछ पा लेना चाहता है. आज भी पारंपरिक शिक्षा की मांग है, लेकिन गुरु-शिष्य के रिश्तों को शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आती रहती हैं. हमें आवश्यकता है कि हम गुरु और शिक्षक में अंतर करें और शिक्षा के मूल उद्देश्यों को जानें.

गुरु और शिक्षक में अंतर

गुरु एक आध्यात्मिक विषय है, जबकि शिक्षक आधुनिक विषय है. गुरु का स्थान जीवन में सर्वोपरि है, जो हमें जीवन की दिशा देता है. शिक्षक हमें शिक्षा प्रदान करते हैं और जीवन को चलाने के लिए आय के स्रोत के अनुरूप हमें शिक्षा देते हैं. गुरु और अच्छे शिक्षक दोनों का स्थान हमारे जीवन में सर्वोच्च होता है. हमें आवश्यकता है कि हम आत्मीय सम्मान को शीर्ष पर रखें और शिक्षा के मूल उद्देश्यों को जानकर शिक्षक के साथ अपनी खोई प्रतिष्ठा को पाने का प्रयास करें.

खोई प्रतिष्ठा पाने की जरूरत

गुरु-शिष्य का रिश्ता अर्पण और समर्पण का होता था. वहीं शिक्षक आपको आधुनिक शिक्षा और तकनीकी से परिचित कराता है. कई मायनों में वो आपको गुरू भी हो सकता है. पहले के समय में गुरु ही शिक्षक भी होता था. हालांकि, आज के दौर में न तो शिक्षक उस तरह से व्यवहार कर रहे हैं और न ही छात्रों में वो नैतिकता बची है. मतलब साफ है कि मानव को जब भी सीखने सिखाने की आवश्यकता होगी उसे एक अच्छे शिक्षक की जरूरत होगी. इस कारण जरूरी है कि बाजारीकरण से ऊपर उठकर हम शिक्षा के मूल उद्देश्यों को जान शिक्षक के साथ अपनी खोई प्रतिष्ठा बचाएं. आज

भगवानों ने भी गुरु बनाए, जानें क्यों यह पर्व है आत्मज्ञान का सबसे शुभ दिन.

गुरु पूर्णिमा 2025? जानें तिथि, पंचांग और पूजन मुहूर्त

  • तिथि आरंभ: 10 जुलाई 2025, रात्रि 1:36 बजे
  • तिथि समाप्ति: 11 जुलाई 2025, रात्रि 2:06 बजे
  • उदया तिथि अनुसार व्रत व पूजन: 10 जुलाई 2025 (गुरुवार)
  • पर्व का नाम: गुरु पूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा)
  • पर्व की मान्यता: महर्षि वेदव्यास की जयंती

वैदिक मान्यता अनुसार उदया तिथि को मान्यता प्राप्त होती है, इसलिए गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को यानि आज ही मनाई जाएगी.

गुरु का महत्व: भगवान भी जिनके शिष्य बने
गुरु केवल शिक्षक नहीं, आत्मज्ञान और मोक्ष तक की राह के पथप्रदर्शक होते हैं. इस दिन भगवान राम, श्रीकृष्ण, हनुमान और दत्तात्रेय जैसे देवताओं की भी गुरुओं के प्रति भक्ति को स्मरण किया जाता है-

  • श्रीराम: ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र से ज्ञान प्राप्त किया
  • श्रीकृष्ण: गुरु सांदीपनि के शिष्य बने
  • हनुमान जी: सूर्य देव को गुरु बनाया
  • भगवान दत्तात्रेय: 24 जीवों को गुरु माना
  • वेदव्यास जी: वेदों के संपादक, 18 पुराणों और महाभारत के रचयिता

गुरु पूर्णिमा की परंपरा, कैसे करें पूजा?
ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा बताती हैं कि इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक गुरु की पूजा करें:

घर में पूजा विधि

  • प्रातः स्नान करके सूर्य को जल अर्पित करें
  • घर के मंदिर में दीप जलाकर वेदव्यास जी का स्मरण करें
  • वेद, भागवत, महाभारत आदि ग्रंथों के अंशों का पाठ करें

गुरु पूजन विधि

  • गुरु को ऊंचे आसन पर बैठाएं
  • हार, चंदन, अक्षत, फल-मिठाई अर्पित करें
  • चरण पादुका की पूजा करें (यदि गुरु सशरीर न हों)
  • गुरु दक्षिणा और उपहार दें (सामर्थ्य अनुसार)
  • गुरु उपदेशों को जीवन में उतारने का संकल्प लें

यदि आपके पास गुरु नहीं हैं तो?

  • इस दिन गुरु का वरण (दीक्षा) करना अति शुभ माना जाता है
  • ब्रह्मलीन गुरु की पादुका या छायाचित्र की पूजा करें
  • किसी भी श्रेष्ठ ग्रंथ (जैसे श्रीमद्भगवद्गीता) को गुरु मानकर उसका पाठ प्रारंभ करें

गुरु पूर्णिमा के दिन करें ये विशेष पुण्य कार्य
दान और सेवा के कार्यों से पुण्य फल प्राप्त होता है. इस दिन निम्न कार्य विशेष रूप से करें:

ग्रंथ दान: धार्मिक पुस्तकों का दान

  • अन्नदान, गरीबों को भोजन कराना या राशन देना
  • वस्त्र व चप्पल दान
  • छाता, कंबल और दैनिक उपयोग की वस्तुएं
  • गौशाला में दान व सेवा, गाय को हरी घास खिलाना
  • शिव पूजा, शिवलिंग पर जल, दूध और चंदन चढ़ाएं
  • हनुमान उपासना, सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें
  • कृष्ण भोग, श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग तुलसी के साथ अर्पित करें

वर्षा ऋतु की शुरुआत भी गुरु पूर्णिमा से मानी जाती है
पुराणों के अनुसार, गुरु पूर्णिमा से वर्षा ऋतु का प्रारंभ माना जाता है. इसी दिन से साधु-संत ‘चातुर्मास’ में एक स्थान पर रुकते हैं और धर्मोपदेश देते हैं. इस ऋतु की शुरुआत आत्मचिंतन और गुरुवाणी के श्रवण के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है.

गुरु बिना गति नहीं
गुरु ही शिष्य का सृजन करते हैं. यदि जीवन में कोई सच्चा मार्गदर्शक नहीं है तो भटकाव निश्चित है. इस गुरु पूर्णिमा पर आंतरिक श्रद्धा और कर्म से गुरु के चरणों में समर्पण करें, यही जीवन का सर्वोच्च योग है.

FAQs
Q1. गुरु पूर्णिमा कब है 2025 में?
10 जुलाई 2025, गुरुवार को पूर्णिमा तिथि के उदय काल के अनुसार.

Q2. गुरु पूर्णिमा किसकी जयंती के रूप में मनाई जाती है?
महर्षि वेदव्यास की जिन्होंने वेदों और पुराणों का संपादन किया.

Q3. यदि गुरु नहीं हो तो क्या करें?
कोई ग्रंथ, सिद्ध संत या भगवत उपदेश को गुरु स्वरूप मानकर साधना शुरू करें.

Q4. गुरु पूर्णिमा पर कौन-से दान करना श्रेष्ठ होता है?
ग्रंथ, वस्त्र, अन्न, गौ सेवा, और धार्मिक सामग्री का दान शुभ माना जाता है.

Q5. क्या यह दिन भगवानों ने भी गुरु के रूप में मनाया है?
हां, श्रीराम, कृष्ण, हनुमान जैसे देवताओं ने भी गुरु बनाए.


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