
उत्तराखंड जब देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सवाल उठते हैं, निजी अस्पतालों की फीस आमजन की पहुंच से बाहर होती जा रही है, और सरकारी चिकित्सा संस्थान व्यवस्था के बोझ तले कराहते नजर आते हैं — ऐसे में अगर कोई मेडिकल कॉलेज सेवा भावना, ईमानदारी और दक्षता की मिसाल पेश करे, तो निश्चित ही वह पूरे प्रदेश के लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता की सराहना
अल्मोड़ा निवासी वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता श्री संजय पांडे ने हाल ही में हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज का दौरा किया और वहाँ की व्यवस्था, डॉक्टरों के व्यवहार और मरीजों के साथ की जा रही संवेदनशीलता से वे अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने इस अनुभव को एक असली ‘जनसेवा केंद्र’ के दर्शन की तरह बताया।
प्रो. अरुण जोशी: नेतृत्व में सेवा का उदाहरण
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के हृदय रोग विभाग के प्रमुख प्रो. अरुण जोशी न केवल एक अनुभवी विशेषज्ञ हैं, बल्कि अपने कार्य के प्रति उनका समर्पण अनुकरणीय है। श्री पांडे ने बताया कि उन्होंने प्रो. जोशी को स्वयं इको मशीन का संचालन करते हुए देखा, जबकि यह कार्य अक्सर तकनीशियन करते हैं।
यह व्यवहार इस बात का प्रमाण है कि—


जब डॉक्टर मरीज को केवल ‘केस’ नहीं, एक ‘व्यक्ति’ के रूप में देखें, तभी सच्ची चिकित्सा सेवा संभव है।
अन्य विभागों में भी सेवा भावना
- प्रो. पंकज सिंह — हड्डी रोग विभाग के प्रमुख, सीमित संसाधनों में भी मरीजों को अत्यंत सम्मान और संवेदना के साथ देखते हैं।
- न्यूरोलॉजी व यूरोलॉजी विभाग की टीम भी बिना थके मरीजों की सेवा कर रही है।
- अत्यधिक भीड़ होने के बावजूद मरीजों की उपेक्षा नहीं की जाती, बल्कि हर व्यक्ति को समय देकर सुना जाता है।
आमजन के लिए MRI और CT Scan
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में MRI और CT Scan जैसी महंगी सुविधाएं भी सरकारी दरों पर उपलब्ध हैं, जिससे खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों और आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को बहुत राहत मिलती है।
निजी संस्थानों में जहाँ MRI 4000-7000 रुपये तक की पड़ सकती है, वहीं यहाँ यह 400-800 रुपये में हो जाता है।
यह पहल वास्तविक स्वास्थ्य न्याय का स्वरूप है।
निःशुल्क उपचार भी हो रहा संभव
श्री संजय पांडे ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि यहाँ ऐसे कई मरीजों का भी उपचार निःशुल्क किया जा रहा है—
- जिनके पास BPL कार्ड नहीं है
- जो आयुष्मान योजना में पंजीकृत नहीं हैं
- फिर भी उन्हें सिर्फ मानवता के आधार पर चिकित्सा सुविधा मिल रही है।
डॉक्टरों द्वारा किए गए ये कार्य सरकारी सेवा की आत्मा को जीवित रखते हैं।
कुछ चुनौतियाँ और त्वरित प्रतिक्रिया
श्री पांडे ने बताया कि उन्हें कुछ निचले स्तर के कर्मचारियों द्वारा निजी अस्पतालों की ओर मरीजों को मोड़ने की शिकायतें मिलीं।
उन्होंने यह मुद्दा तत्काल प्राचार्य महोदय के समक्ष रखा, जिन्होंने—
- शिकायत को गंभीरता से लिया
- तत्काल जांच और आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया
- साथ ही ऐसे तत्वों को संस्थान से बाहर करने की प्रतिबद्धता जताई
यह त्वरित प्रतिक्रिया भी दर्शाती है कि प्रशासनिक स्तर पर भी संवेदनशीलता और सजगता बनी हुई है।
जब सेवा ही धर्म बन जाए
आज जब पूरे देश में स्वास्थ्य सेवा में भ्रष्टाचार, लापरवाही और अव्यवस्था की खबरें आम हैं, तो हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज जैसे उदाहरण नई पीढ़ी के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को सेवा के वास्तविक उद्देश्य से जोड़ सकते हैं।
“जब संसाधन सीमित हों, तब ईमानदारी ही सबसे बड़ा संसाधन बन जाती है।”
यह पंक्ति हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों पर पूरी तरह सटीक बैठती है।
उत्तराखंड सरकार के लिए सीख
राज्य सरकार को चाहिए कि—
- हल्द्वानी मॉडल को दूसरे मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में भी लागू किया जाए।
- ऐसे डॉक्टरों को सम्मानित कर ‘रोल मॉडल’ के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
- मेडिकल छात्रों को इंटर्नशिप के दौरान ऐसे केंद्रों पर तैनात कर सेवा भावना का प्रशिक्षण दिया जाए।
श्री संजय पांडे का संदेश
अंत में श्री पांडे ने कहा:मेरे जैसे एक सामाजिक कार्यकर्ता को जब सरकारी अस्पताल में सेवा, संवेदना और सादगी दिखाई देती है — तो यह भरोसा फिर से मजबूत होता है कि व्यवस्था बदली जा सकती है, बशर्ते इरादे नेक हों।”
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज का यह उदाहरण केवल एक मेडिकल संस्थान की बात नहीं है — यह उस ‘भारत की कल्पना’ की जीवंत तस्वीर है, जहाँ सरकारी सेवाएं जनता के लिए एक समर्पण भाव से कार्य करती हैं।
यह रिपोर्ट एक प्रेरक प्रमाण है कि जब नेतृत्व स्पष्ट हो, नीयत साफ हो और सेवा सर्वोपरि हो — तो सरकारी संस्थाएं भी निजी संस्थानों से बेहतर कार्य कर सकती हैं।
(लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ संवाददाता — Hindustan Global Times/ Shail Global Times)

