दूनिया के आर्थिक और सैन्य मंच पर तेजी से कद्दावर बन चुके गुटनिरपेक्ष देश भारत ने रूस को साधकर नम्बर वन अमेरिका और नम्बर टू चीन को रणनीतिक मुश्किल में डालते हुए भींगी बिल्ली बना दिया

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इससे समकालीन विश्व के जी-7, नाटो, जी–20, ब्रिक्स और एससीओ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में ग्लोबल साउथ की पूछ-परख बढ़ गई है, क्योंकि इनका अगुवा अब भारत बन चुका है।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

जानकार बताते हैं कि अमेरिकी दांवपेंचों और चीनी पैंतरों से आजिज आ चुके इन ग्लोबल साउथ के देशों को भारत की सदाशयी नीतियों से जो नीतिगत राहत और वैश्विक सहयोग मिला है, वह इनकी प्राथमिक जरूरत भी है। चूंकि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत सबसे तेज़ इकॉनमी बन चुका है, मजबूत सैन्य ताकत के रूप में छा चुका है, इसलिए भारत की मुखालफत दुनियावी थानेदारों को भी भारी पड़ सकती है।

यह ठीक है कि सीजफायर और टैरिफ को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के दावों-आरोपों का भारत ने अभी तक जो भी जवाब दिया, उसमें भाषा विनम्र और सांकेतिक रखी गई। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से। लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गत दिनों जो ठोक-पीटकर जोशीला राजपूती बयान दिया है, इसके कूटनीतिक और राजनीतिक मायने में बिल्कुल अलग और अहम हैं। ऐसा इसलिए कि ट्रंप का नाम भी उन्होंने नहीं लिया, लेकिन इस बार जवाब ज्यादा सख्त था।

रक्षा मंत्री सिंह के तल्खी भरे बयान यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि अब भारत अपने राष्ट्रीय, मित्रगत और पड़ोसी हितों से कोई समझौता नही करेगा और जो इस रास्ते में अड़चनें पैदा करने की कोशिश करेगा, या वैसी ताकतों को शह देगा, उससे सख्ती पूर्वक ही निपटा जाएगा। इस बार सीजफायर वाली हड़बड़ाहट भी नहीं दिखाई जाएगी। इसलिए अब कोई भी बातचीत बराबरी के स्तर पर ही होनी चाहिए। वो भी अमेरिका-चीन जैसे देशों के साथ अनिवार्य तौर पर। लिहाजा, केंद्रीय मंत्री संजय सेठ ने ठीक ही कहा है कि नया भारत शेर की तरह दहाड़ता है। शक्तिशाली नेताओं की आंखों में देखकर बात करता है।

उल्लेखनीय है कि भारत के साथ अपने मनमाफिक डील करने में नाकाम रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत की इकॉनमी को ही ‘डेड’ बताया था। इसलिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी इसी निकृष्ट मानसिकता का दबंग अंदाज में जवाब देते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे दबंग और गतिशील अर्थव्यवस्था करार दिया। जबकि ‘सबके बॉस तो हम है’ का भाव रखने वाले कुछ देशों को भारत का तेजी से विकास रास नहीं आ रहा है। समझा जाता है कि भारत से होने वाले आयात पर अमेरिका के 50 प्रतिशत टैक्स लगाए जाने के बाद उनका यह बयान सामने आया है।

रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि ऐसी कोशिश की जा रही है कि हमारी चीजें बाहर महंगी हो जाएं। फिर भी कोई ताकत दुनिया की बड़ी शक्ति बनने से भारत को नहीं रोक सकती है। तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था अगर किसी देश की है तो वह हमारे भारत की है। अब भारत ₹24000 करोड़ का रक्षा उत्पाद दुनिया को निर्यात कर रहा है। अब हमने भी ठान लिया है कि आतंकियों को उनके धर्म देखकर नहीं, बल्कि उनका कर्म देखकर मारेंगे। जो हमें छेड़ेगा, उसे छोड़ेंगे नहीं।

यह महज संयोग नहीं कि रविवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर बात की और भारत की अर्थव्यवस्था के तेज रफ्तार के बारे में संकेत देते हुए साफ कहा कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहा है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है। यह गति सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन की भावना से हासिल की गई है। पिछले 11 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर 10वें स्थान से बढ़कर पहले शीर्ष पांच में पहुंच गई है और अब तेजी से शीर्ष चार से शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की ओर अग्रसर है।

बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निशाना साधने के कुछ दिन बाद पीएम की यह प्रतिक्रिया सामने आई है। पीएम ने यहां तक कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के पीछे भारतीय टेक्नॉलजी और मेक इन इंडिया का हाथ था। उसने कुछ ही घण्टों में पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने पिछले हफ्ते ही भारत की जीडीपी ग्रोथ का 2025-26 के लिए अनुमान 6.5 प्रतिशत पर बनाए रखा, जबकि दुनिया की बाकी इकॉनमी की ग्रोथ के लिए यह अनुमान तकरीबन 3 फीसदी ही है।

वहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के डेटा बताते हैं कि 2024 में भारत ने ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ में लगभग 17 प्रतिशत का योगदान दिया और अगले 5 साल में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। इस तरह से कोरोना महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने सबसे शानदार रिकवरी की और दुनियावी युद्धों व वैश्विक उथल-पुथल के बीच भी वह बढ़त बनाए हुए है।

दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय विकसित अर्थव्यवस्था की हकीकत यह है कि खुद अमेरिका की अर्थव्यवस्था इस समय संकट के दौर में गुजर रही है। वहां पर ट्रंप की अव्यवहारिक नीतियों के चलते महंगाई दर बढ़ने का डर है, जिससे आर्थिक विकास दर पर बुरा असर होगा। ऐसा अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का भी मानना है। समझा जाता है कि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी के कारण अगर अमेरिका में मंदी के हालात बनते हैं, तो इसका असर दूसरे मुल्कों पर भी होगा।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि ट्रेड और टैरिफ पर ट्रंप का सख्त रुख किसी के लिए भी सही नहीं है। अब तो इसे टैरिफ टेरर या टैरिफ फतवा तक करार दिया जाने लगा है।आखिरकार इस बढ़े टैक्स की कीमत अमेरिकियों को ही चुकानी पड़ेगी। ऐसे में बेहतर है कि समाधान बातचीत से निकाला जाए। लेकिन, वह बातचीत एकतरफा और अपनी मर्जी थोपने वाली नहीं हो सकती। इसलिए अपनी ग्रोथ को बनाए रखने के लिए भारत की एनर्जी संबंधी जरूरतें अमेरिका से बिल्कुल अलग है। इसी तरह, विशाल किसान व पशुपालक आबादी को लेकर भी भारत की कुछ स्वाभाविक चिताएं हैं। लिहाजा किसी भी समझौते में इन पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए। उनका संकेत पीएम मोदी, एचएम शाह और डीएम सिंह के सख्ती भरे फैसलों व बयानों की तरफ था, जिन्होंने रविवार को धूम मचा दिया। केंद्रीय मंत्री गडकरी ने नागपुर में ठीक ही कहा कि आज दुनिया में जो देश दादागिरी कर रहे हैं, वे ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योकि वे आर्थिक रूप से मजबूत हैं और उनके पास उन्नत तकनीक है। फिर भी उन्होंने चुटकी भरे अंदाज में कहा कि, दुनिया झुकती है बस झुकाने वाला चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत को अपनी निर्यात बढ़ानी होगी और आयात घटाने होंगे। अगर हमारी अर्थव्यवस्था और निर्यात की दर बढ़ेगी, तो हमें किसी के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा, जिनके पास अच्छी तकनीक और संसाधन हैं, वही दबदबा दिखा रहे हैं। अगर हमारे पास भी यह सब होगा, तो हम किसी पर जुल्म नहीं करेंगे, क्योंकि हमारी संस्कृति दुनिया के कल्याण की सोच रखती है।

उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया की कई समस्याओं का हल विज्ञान और तकनीक है, और यह ज्ञान ही शक्ति है। अगर भारत को विश्वगुरु बनना है तो हमें निर्यात बढ़ाना और आयात कम करना होगा। गडकरी ने सुझाव दिया कि शोध संस्थान, आईआईटीज और इंजिनियरिंग कॉलेज देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर शोध करें, हालांकि अन्य क्षेत्रों में भी शोध जरूरी है।


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