सोशल मीडिया पर इन दिनों एक “आधिकारिक घोषणा” का शोर?भेड़ चाल और फेसबुक का फेक डर

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सोशल मीडिया पर इन दिनों एक “आधिकारिक घोषणा” का शोर मचा है—
“मैं अपनी निजी जानकारी और तस्वीरों के उपयोग की अनुमति फेसबुक/मेटा को नहीं देता… कल रात 9:20 बजे से नए नियम लागू होंगे…”✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
और फिर आदेश— “इस संदेश को कॉपी-पेस्ट कर अपने प्रोफ़ाइल पर डालें, वरना अनुमति मान ली जाएगी।”


वाह! एक क्लिक में कानूनी क्रांति। शर्मा जी ने डाला, वर्मा जी ने डाला, फिर मामी और मामी के पड़ोसी तक। यह है असली भेड़ चाल—जिसमें कोई न जांचता, न सोचता, बस दौड़ पड़ता है।

सच यह है कि फेसबुक या मेटा की कोई “कल रात” वाली पॉलिसी नहीं बदलती। आपकी जानकारी उन्हीं शर्तों के अनुसार उपयोग होती है, जिनसे आप अकाउंट बनाते समय सहमत हुए थे। कोई भी पोस्ट कॉपी-पेस्ट कर आप कानूनी सुरक्षा नहीं पा सकते। यह वैसा ही है जैसे घर का दरवाज़ा खुला छोड़कर नोट चिपका देना—“चोरी मना है।”

भेड़ चाल का नुकसान तीन हैं—गलत सूचना फैलती है, आपकी विश्वसनीयता गिरती है, और समय-ऊर्जा दोनों बर्बाद होते हैं। असली सुरक्षा के लिए प्राइवेसी सेटिंग्स कड़ी करें, तस्वीरें सीमित लोगों से साझा करें, और टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन अपनाएं।

पिछले डेढ़ साल में फेक न्यूज़ की खेती करने वालों का नया खेत तैयार है—फेसबुक “गोपनीयता नोटिस” पोस्ट। बिना पढ़े, बिना सोचे, बस कॉपी-पेस्ट! जैसे किसी ने कहा, “कूदो,” और भेड़ों का झुंड छलांग मार दे। इन महान लोगों को लगता है कि उनका स्टेटस अपडेट, मेटा के अरबों डॉलर के कानूनी सिस्टम को हिला देगा। अरे भाइयों-बहनों, अगर डिजिटल ज्ञान इतना ही होता, तो वकील बेरोज़गार और आप सुप्रीम कोर्ट में होते। अगली बार फेक का बीज बोने से पहले, थोड़ा दिमाग की खाद भी डाल लें—वरना मूर्खों की मंडली में स्थायी सदस्यता पक्की है।

याद रखिए—सोशल मीडिया में सबसे खतरनाक वायरस अज्ञानता है, जो “भेड़ों का मार्च” बनकर फैलता है। इसलिए शेयर करने से पहले सोचें, जांचें और फिर क्लिक करें। वरना अगली फेक लहर में आप भी उसी मूर्ख मंडली के साथ खड्ड की ओर बढ़ेंगे।





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