
रुद्रपुर/देहरादून/नैनीताल।उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं के खिलाफ दायर आरटीआई का असर अब धरातल पर दिखाई देने लगा है। राज्य के महानिदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण ने आदेश जारी कर सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) और अस्पतालों के अधीक्षकों से एक माह के भीतर अपने-अपने जनपद में कार्यरत एमबीबीएस एवं पीजी डिग्रीधारी चिकित्सकों की तैनाती व सेवा स्थिति की विस्तृत जानकारी मांगी है।



चंद्रशेखर जोशी तथा अल्मोड़ा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता संजय कुमार पांडे
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
यह कार्रवाई भीमताल निवासी पूर्व कृषि अधिकारी एवं आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्रशेखर जोशी तथा अल्मोड़ा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता संजय कुमार पांडे द्वारा दायर आरटीआई और लगातार उठाई गई शिकायतों के आधार पर की गई है। दोनों आरटीआई कार्यकर्ता लंबे समय से स्वास्थ्य विभाग में गहरे पैठे भ्रष्टाचार, फर्जी नियुक्तियों और चिकित्सकों की तैनाती में हो रही अनियमितताओं को उजागर करने के लिए संघर्षरत हैं।
आदेश की अहमियत?महानिदेशालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि प्रत्येक जनपद के अस्पतालों/चिकित्सा इकाइयों में कार्यरत सभी पीएमएचएस संवर्ग के चिकित्सकों की जानकारी स्पष्ट रूप से उपलब्ध कराई जाए। इसमें चिकित्सकों का नाम, पदनाम, नियमित/संविदा/बॉन्डधारी की स्थिति, शैक्षिक अर्हता, उत्तराखंड आयुर्विज्ञान परिषद में पंजीकरण संख्या व तिथि, वर्तमान तैनाती स्थल व तैनाती की तिथि सहित सभी विवरण शामिल होंगे।
स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि जानकारी सॉफ्ट एवं हार्ड कॉपी दोनों रूपों में एक माह के भीतर स्पीड पोस्ट और ईमेल के माध्यम से महानिदेशालय को भेजी जाए। यदि सूचना समय पर नहीं दी गई या त्रुटिपूर्ण दी गई तो संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी तय कर उनके खिलाफ नियमसम्मत कार्रवाई की जाएगी और वार्षिक गोपनीय आख्या (एसीआर) में प्रतिकूल प्रविष्टि दर्ज की जाएगी।
शिकायतों ने जगाई हलचल?गौरतलब है कि जोशी और पांडे ने स्वास्थ्य विभाग में व्यापक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों को लेकर मुख्यमंत्री हेल्पलाइन (सीएम हेल्पलाइन) और सीपीजीआरएएमएस पोर्टल पर भी कई शिकायतें दर्ज कराई थीं। दस्तावेज बताते हैं कि इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए महानिदेशालय ने मुख्य सतर्कता अधिकारी को भी कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
हो सकते हैं बड़े खुलासे?सूत्रों का कहना है कि इस कवायद से यह स्पष्ट हो जाएगा कि प्रदेश में वास्तव में कितने डॉक्टर कार्यरत हैं और किन क्षेत्रों में चिकित्सकों की भारी कमी है। इसके अलावा ऐसे कई मामलों का खुलासा भी संभव है, जहां डॉक्टर कागजों में तो कार्यरत दिखाए जाते हैं, लेकिन वे वास्तव में सेवाएं नहीं दे रहे।
आरटीआई एक्टिविस्टों की प्रतिक्रिया?चंद्रशेखर जोशी और संजय कुमार पांडे का कहना है कि—हमारी लड़ाई केवल आंकड़ों की नहीं है, बल्कि उन गरीब और वंचित लोगों की है जिन्हें समय पर इलाज न मिलने से अपनी जान गंवानी पड़ती है। स्वास्थ्य विभाग से भ्रष्टाचार का खात्मा ही प्रदेश की सबसे बड़ी आवश्यकता है।”
आरटीआई एक्टिविस्टों की इस पहल और महानिदेशालय के आदेश ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर नई बहस छेड़ दी है। यदि आदेश का पालन ईमानदारी से होता है तो आने वाले समय में न केवल फर्जी नियुक्तियों व तैनातियों का पर्दाफाश होगा, बल्कि आम जनता को भी पारदर्शी और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, संपादकीय लेख;भ्रष्टाचार की जकड़न से जूझता स्वास्थ्य विभाग: दो एक्टिविस्टों की बड़ी जीत”उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग की हालत किसी से छिपी नहीं। कभी दवाओं का अभाव, कभी डॉक्टरों की कमी, तो कभी फर्जी नियुक्तियां— जनता की जान से खिलवाड़ करने का यह खेल बरसों से चलता रहा है। लेकिन जब भीमताल के चंद्रशेखर जोशी और अल्मोड़ा के संजय कुमार पांडे ने RTI के जरिए इस दलदल में पत्थर फेंका, तो व्यवस्था की नींद टूटी।
महानिदेशक स्वास्थ्य को मजबूर होकर आदेश जारी करना पड़ा कि सभी जिलों से डॉक्टरों की तैनाती और सेवा स्थिति की पूरी जानकारी मांगी जाए। साथ ही, झूठी या अधूरी रिपोर्ट देने पर अधिकारियों के ACR में काली स्याही डालने की चेतावनी भी दी गई। यह आदेश साधारण नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य विभाग के भीतर पहली बार जवाबदेही तय करने की दिशा में बड़ा कदम है।पर सवाल यही है— क्या यह आदेश वाकई लागू होगा? या फिर फाइलों की धूल में दबकर रह जाएगा? अनुभव कहता है कि भ्रष्टाचार का जाल इतना गहरा है कि आंकड़े ‘साफ-सुथरे’ बनाकर ऊपर भेज दिए जाते हैं और जनता फिर से ठगी रह जाती है।
हकीकत यह है कि जब अस्पतालों में डॉक्टर नहीं होते, दवाएं गायब रहती हैं और मरीज रेफर होकर रास्ते में दम तोड़ते हैं— तो सबसे बड़ा नुकसान गरीब जनता उठाती है। नेताओं की चुप्पी और अधिकारियों की मिलीभगत ही इस ‘मौत के कारोबार’ की असली वजह है।चंद्रशेखर और संजय ने साबित किया है कि एक आवाज भी सिस्टम को हिला सकती है। अब जनता को तय करना है कि वह चुप रहेगी या इस पारदर्शिता की लड़ाई में उनका साथ देगी।
संपादकीय सवाल साफ है— क्या उत्तराखंड का स्वास्थ्य विभाग सचमुच बदल पाएगा, या फिर यह भी 25 साल की ‘घोषणाओं की राजनीति’ का एक और खोखला पन्ना साबित होगा?

