
नैनीताल,उत्तराखंड के नैनीताल में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के दौरान घटित अपहरण कांड और मतदान केंद्र तक हथियारबंद गिरोह का पहुंच जाना केवल एक प्रशासनिक लापरवाही नहीं है, बल्कि लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है। हाईकोर्ट ने जिस गंभीरता से इसे लिया और स्पष्ट कहा कि “इस एसएसपी का तो तुरंत तबादला होना चाहिए”, वह न्यायपालिका की उस सजगता का प्रमाण है जिसकी जनता अपेक्षा करती है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
यह प्रश्न केवल एक जिले या चुनाव की सुरक्षा तक सीमित नहीं है—यह पूरे प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है। आखिर कैसे संभव है कि मतदान केंद्र से मात्र 200 मीटर की दूरी तक हथियारबंद लोग बिना रोक-टोक पहुंच जाएं? यह न केवल पुलिस तंत्र की नाकामी है बल्कि खुफिया विभाग की असफलता भी है। लोकतंत्र में चुनाव की निष्पक्षता सर्वोपरि है और जब मताधिकार का इस्तेमाल भय और हिंसा के साए में हो, तो यह पूरे प्रणाली पर अविश्वास पैदा करता है।
वीडियो में पंचायत सदस्यों को घसीटते हुए और अपहरणकर्ताओं का खुलेआम ‘नैनीताल को हिला डाला’ कहना, इस बात का प्रमाण है कि अपराधी निडर होकर कानून को चुनौती दे रहे हैं। जब अपराधियों का आत्मविश्वास इतना बढ़ जाए कि वे खुलेआम चुनाव प्रक्रिया को बाधित करें, तो यह शासन-प्रशासन की विफलता से अधिक लोकतांत्रिक मूल्यों के ह्रास का संकेत है।
कांग्रेस द्वारा पुनर्मतदान की मांग और हाईकोर्ट द्वारा सुरक्षा व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी यह दिखाता है कि अब मामला सामान्य चुनावी विवाद से ऊपर उठ चुका है। यह प्रदेश की छवि, लोकतंत्र की पवित्रता और आम जनता के भरोसे से जुड़ा हुआ है। यदि निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगते रहे, तो राज्य में लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी।
अदालत ने सही कहा—सुरक्षा में इतनी भारी चूक पर केवल सफाई नहीं, बल्कि जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। एसएसपी का तबादला मात्र औपचारिकता नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की पुनर्स्थापना का पहला कदम होना चाहिए। लोकतंत्र के प्रहरी—पुलिस और प्रशासन—यदि अपने कर्तव्य में असफल होते हैं, तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई अनिवार्य है।
समापन में यही कहा जा सकता है कि यह घटना चेतावनी है—लोकतंत्र का संरक्षण केवल मतदाताओं की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन की सजगता पर भी निर्भर है। यदि हथियारबंद गिरोह चुनाव बूथ तक पहुंच सकते हैं, तो कल वे लोकतंत्र की जड़ों को भी उखाड़ सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि उत्तराखंड सरकार कठोर कदम उठाकर इस संदेश को स्पष्ट करे कि लोकतंत्र से बड़ा कोई नहीं।


