संपादकीय लेख:भराड़ीसैंण विधानसभा सत्र: उम्मीदें, चुनौतियाँ और जनभावनाएँ

Spread the love

गैरसैंण (भराड़ीसैंण) में आज से शुरू हो रहा विधानसभा का मानसून सत्र केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की जनता की आकांक्षाओं और उम्मीदों का दर्पण भी है। राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी में आयोजित इस सत्र से जनता की अपेक्षा होती है कि यहां केवल विधेयक पारित न हों, बल्कि जनता से जुड़े गंभीर मुद्दों पर सार्थक बहस भी हो।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

सरकार ने इस बार नौ विधेयकों को सदन में लाने की तैयारी की है, जिनमें उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन विशेष रूप से चर्चा का विषय रहेगा। इसके अलावा अनुपूरक बजट भी सत्र का हिस्सा होगा, जिससे राज्य की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने की कवायद दिखाई देगी। साथ ही विभिन्न विभागों की वार्षिक रिपोर्ट और प्रतिवेदन सदन के पटल पर रखे जाएंगे। यह सब आवश्यक है, लेकिन असल परीक्षा इस बात की होगी कि सदन जनता की नब्ज़ को कितना पहचानता है।

विपक्ष पहले से ही आपदा प्रबंधन की खामियों और पंचायत चुनावों में कथित गड़बड़ियों के मुद्दे को लेकर आक्रामक है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि बीते कुछ समय से राज्य लगातार प्राकृतिक आपदाओं और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं का सामना कर रहा है। ऐसे में विपक्ष का दायित्व है कि वह जनता की आवाज़ बनकर सरकार से कठोर सवाल पूछे। दूसरी ओर सत्ता पक्ष का दावा है कि वह हर सवाल का मजबूती से जवाब देने को तैयार है। यानी इस बार सदन में टकराव और तीखी बहस लगभग तय है।

लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सत्र महज़ शोर-शराबे और हंगामे की भेंट चढ़ जाएगा, या फिर इसमें से जनसरोकार से जुड़े ठोस समाधान भी निकलेंगे? भराड़ीसैंण की पवित्र धरती पर सत्र का आयोजन मात्र प्रतीकात्मक न होकर, यह संदेश देना चाहिए कि राज्य सरकार राजधानी के विकेंद्रीकरण और पहाड़ की जनता के विकास को लेकर गंभीर है।

यह भी उल्लेखनीय है कि भराड़ीसैंण सत्र को लेकर जनता की अपेक्षाएँ हमेशा ऊँची रहती हैं। राज्य आंदोलनकारियों का सपना भी यही था कि यहां से निर्णय होंगे, जो सीधे पहाड़ की समस्याओं और पलायन जैसे मुद्दों का हल प्रस्तुत करेंगे। लेकिन बीते वर्षों के अनुभव बताते हैं कि यहां भी बहस तो होती है, पर ठोस निर्णय अक्सर अधर में रह जाते हैं।

इस बार सदन के पटल पर 550 से अधिक प्रश्न आए हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि विधायक जनता की समस्याओं को उठाने के लिए सक्रिय हैं। अब यह सरकार और मंत्रिमंडल की जिम्मेदारी है कि इन प्रश्नों को केवल औपचारिकता समझकर टालने के बजाय इनके समाधान की दिशा में ठोस पहल करें।

निष्कर्षतः, भराड़ीसैंण में शुरू हो रहा यह सत्र सरकार और विपक्ष दोनों के लिए कसौटी है। यदि यह सत्र केवल हंगामे का अखाड़ा बनकर रह गया, तो जनता की उम्मीदें फिर टूटेंगी। लेकिन यदि यहां से नीतिगत निर्णय और ठोस पहल सामने आई, तो यह सत्र उत्तराखंड की लोकतांत्रिक परंपरा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। पहाड़ की जनता यही चाहती है कि भराड़ीसैंण की वादियों में सिर्फ राजनीतिक शोर न गूंजे, बल्कि विकास और जनकल्याण की ठोस प्रतिध्वनि सुनाई दे।



Spread the love