
रुद्रपुर में नगर निगम की हालिया कार्रवाई ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अब अवैध शराब कारोबारियों और अतिक्रमण करने वालों की खैर नहीं। महापौर विकास शर्मा और नगर आयुक्त नरेश दुर्गापाल के नेतृत्व में संजय नगर खेड़ा में जिस खोखे को ध्वस्त किया गया, वह वर्षों से नशेड़ियों का अड्डा बना हुआ था। दुकानदारों ने सब्जी बेचने के नाम पर खोखे खड़े कर लिए थे, मगर असलियत में वहां से अवैध शराब और नशे का धंधा चल रहा था। यह न केवल कानून की अवमानना थी, बल्कि समाज की नींव को खोखला करने की साजिश भी।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
नगर निगम की इस कार्रवाई ने यह भी उजागर कर दिया कि केवल पुलिस कार्रवाई से समस्या का समाधान नहीं होता। कई बार पुलिस रेड करती है, मगर अवैध कारोबारी कुछ ही दिनों में फिर से सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में जब स्थानीय निकाय स्वयं आगे आएं और पूरी सख्ती के साथ ऐसे ठिकानों को जड़ से उखाड़ फेंकें, तो न केवल कानून व्यवस्था मजबूत होती है, बल्कि आम नागरिकों के भीतर विश्वास भी लौटता है।
महापौर विकास शर्मा का यह बयान काबिले-गौर है कि रुद्रपुर में नशे के सौदागरों के लिए कोई जगह नहीं है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के “ड्रग्स फ्री उत्तराखण्ड” अभियान को नगर निगम ने जिस प्रकार स्थानीय स्तर पर जमीन पर उतारा है, वह निश्चित रूप से अन्य शहरों के लिए भी एक मिसाल है। नशा केवल एक व्यक्ति को बर्बाद नहीं करता, बल्कि पूरे परिवार और समाज को खोखला कर देता है। इसलिए इस लड़ाई को आधे-अधूरे प्रयासों से नहीं, बल्कि निरंतर और संगठित अभियानों से ही जीता जा सकता है।
इस कार्रवाई का एक और बड़ा पहलू है — अतिक्रमण के खिलाफ सख्ती। शहरों में खोखे, ठेले और अवैध दुकानें पहले सड़कें संकरी करती हैं, फिर धीरे-धीरे अपराध और असामाजिक गतिविधियों का गढ़ बन जाती हैं। रुद्रपुर में किच्छा बाईपास रोड और सब्ज़ी मंडी जैसे स्थानों पर यही हो रहा था। नगर निगम का यह अभियान बताता है कि अब “सड़क जनता के लिए है, माफियाओं के लिए नहीं।”
हालांकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि genuine रोज़गार चलाने वाले छोटे ठेले वालों को इस कार्रवाई की आड़ में नुकसान न पहुंचे। सरकार और निगम को चाहिए कि वैध कारोबारियों को वैकल्पिक व्यवस्था देकर सड़क पर कब्जा करने की मजबूरी से मुक्त करें।
अंततः, यह कहना उचित होगा कि रुद्रपुर नगर निगम की यह कार्रवाई केवल एक दुकान गिराने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नशा और अतिक्रमण दोनों के खिलाफ “जंग का शंखनाद” है। समाज और प्रशासन अगर साथ खड़े हो जाएं, तो वह दिन दूर नहीं जब रुद्रपुर वास्तव में “ड्रग्स फ्री” और व्यवस्थित शहर कहलाएगा।
रुद्रपुर नगर निगम ने जिस तरह अवैध शराब के अड्डे को नेस्तनाबूद किया, वह निश्चित ही ड्रग्स फ्री उत्तराखण्ड अभियान की दिशा में साहसिक कदम है। महापौर विकास शर्मा और नगर आयुक्त नरेश दुर्गापाल ने यह साबित किया कि यदि इच्छाशक्ति हो, तो नशा माफियाओं के गढ़ ढहाए जा सकते हैं।
लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर इतने लंबे समय तक संजय नगर खेड़ा में यह अवैध कारोबार चलता कैसे रहा? क्या उधम सिंह नगर पुलिस को इसकी भनक नहीं थी? या फिर कार्रवाई केवल दबाव और शिकायतों के बाद ही होती है? यह स्थिति पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है।
सच्चाई यह है कि पुलिस की ढिलाई ही नशे के कारोबारियों को हौसला देती है। कई बार छापे तो पड़े, लेकिन नशा माफिया फिर लौट आते हैं। नगर निगम ने दिखा दिया कि कानून तोड़ने वालों को चेतावनी नहीं, कार्रवाई चाहिए।
जरूरी है कि नगर निगम और पुलिस मिलकर लगातार अभियान चलाएं। यह लड़ाई केवल खोखे गिराने से नहीं जीती जाएगी, बल्कि राजनीतिक संरक्षण और पुलिस की चुप्पी पर भी चोट करनी होगी। तभी उत्तराखण्ड को सच में नशा मुक्त बनाया जा सकेगा।

