कुमाउनी भाषा के संवर्धन और संरक्षण हेतु रुद्रपुर में विचार गोष्ठी का आयोजन

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रुद्रपुर, शैल सांस्कृतिक समिति(शैल परिषद)गंगापुर रोड।कुमाउनी भाषा के संवर्धन और संरक्षण के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंतनगर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. बी. एस. बिष्ट ने की।


मुख्य वक्ता के रूप में उत्तराखंड भाषा संस्थान के सदस्य एवं कुमाउनी पत्रिका “पहरू” के संस्थापक डॉ. हयात सिंह रावत ने कहा कि “हमारा देश सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं से परिपूर्ण है। उत्तराखंड राज्य का निर्माण स्थानीय पहचान और भाषा-संस्कृति को संरक्षित करने की भावना से हुआ था। हमें अपनी विशिष्ट पहचान को लेकर सजग और सक्रिय रहना होगा।” उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड की स्थानीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

पूर्व स्वास्थ्य निदेशक डॉ. ललित उप्रेती ने शैल परिषद संस्था की ओर से अपने विचार रखते हुए भाषा आंदोलन को जन-आंदोलन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रो. शंभू दत्त पांडे ‘शैलेय’ ने कहा कि “भाषा हमारी संस्कृति का जीवंत अंग है, इसलिए इसे सामान्य आचरण और संवाद में लाना सबसे महत्वपूर्ण है।”
एडवोकेट दिवाकर पांडे ने अपनी दुधबोली को आने वाली पीढ़ी तक हस्तांतरित करने पर जोर दिया।

बैठक के उपरांत सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि आगामी “राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन” रुद्रपुर में 7, 8 और 9 नवंबर 2025 को आयोजित किया जाएगा। इस सम्मेलन में देशभर से साहित्यकार, भाषाविद और भाषाप्रेमी सम्मिलित होंगे।

उपस्थित गण:
शैल परिषद अध्यक्ष गोपाल सिंह, हेम पंत, डी. के. दनाई, पूरन चंद्र जोशी, त्रिलोचन पनेरू, महेश जोशी, जगदीश बिष्ट, संदीप बुधोरी, सतीश लोहनी सहित अनेक भाषा प्रेमी एवं सामाजिक कार्यकर्ता।

संपादकीय : कुमाउनी भाषा का संरक्षण, समय की मांग?भाषा किसी भी समाज की आत्मा होती है। उत्तराखंड की विविधता में कुमाउनी भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, लोकजीवन और परंपराओं की धड़कन है। रुद्रपुर में आयोजित विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने जिस चिंता को साझा किया, वह हमारी उपेक्षा का आईना है। राज्य निर्माण का मूल उद्देश्य स्थानीय पहचान की रक्षा था, किंतु आज हमारी दुधबोलियां उपेक्षा और विस्मृति का शिकार हो रही हैं।मुख्य वक्ता डॉ. हयात सिंह रावत का यह कथन कि स्थानीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिलना चाहिए, अत्यंत प्रासंगिक है। भाषा तभी जीवित रहती है जब उसे रोजमर्रा के आचरण, शिक्षा और सामाजिक व्यवहार में स्थान दिया जाए। केवल साहित्यिक विमर्श पर्याप्त नहीं, बल्कि घर-परिवार से लेकर विद्यालय और प्रशासन तक कुमाउनी भाषा का प्रयोग आवश्यक है।यह प्रसन्नता की बात है कि नवंबर 2025 में रुद्रपुर में राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन आयोजित होगा। यह आयोजन भाषा संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है, बशर्ते यह केवल प्रतीकात्मक न रहकर जनांदोलन का रूप ले।आज आवश्यकता है कि हम अपनी मातृभाषा को अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित करें। यदि भाषा बचेगी तो पहचान बचेगी, और पहचान बचेगी तो उत्तराखंड की आत्मा भी सुरक्षित रहेगी।





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