पितृपक्ष का यह समय हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं।

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पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

पितृपक्ष 2025 की तारीखें

इस वर्ष 2025 में, यह 15 दिन का पवित्र समय 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक रहेगा। मान्यता है कि इन दिनों पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध को स्वीकार करते हैं। यदि आपको अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

सर्वपितृ अमावस्या: विशेष दिन

सर्वपितृ अमावस्या: पितरों के लिए खास दिन

पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन सर्वपितृ अमावस्या है, जो इस साल 21 सितंबर 2025 को आएगा। इसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है।

श्राद्ध के नियम और विधि

श्राद्ध के नियम और सही तरीका

पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले, श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पूरी तरह से शुद्ध होकर कर्म करना चाहिए। पिंडदान के समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करना चाहिए, क्योंकि इसे पितरों की दिशा माना जाता है। पिंड चावल, दूध और जौ मिलाकर बनाए जाते हैं।

पितृपक्ष की विशेषताएँ

इसके अलावा, ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दान देना अनिवार्य है। इस दौरान तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन या मांस से बचना चाहिए। इन नियमों का पालन करने से श्राद्ध का पूरा फल मिलता है और पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

पितृपक्ष की तारीखें

पितृपक्ष की तारीखें

पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025, रविवार को होगी और इसका समापन 21 सितंबर 2025, रविवार को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। यह 15 दिन का समय पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और कर्तव्य निभाने का अवसर है।


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