उत्तराखंड आयुष विश्वविद्यालय से जुड़े सभी कॉलेज, छात्र हितों पर सौंपा ज्ञापन

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देहरादून। उत्तराखंड में आयुष शिक्षा को लेकर एक अहम पहल हुई है। प्रदेश के सभी आयुष कॉलेज अब उत्तराखंड आयुष विश्वविद्यालय से जुड़ गए हैं। सोमवार को विभिन्न कॉलेजों के एमडी और प्रतिनिधियों ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से मुलाकात की और छात्रहित से जुड़े मुद्दों पर ज्ञापन सौंपा।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( अध्यक्ष:उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद उत्तराखंड)

प्रतिनिधियों ने मांग की कि परीक्षा परिणाम समय पर घोषित किए जाएं ताकि छात्रों की पढ़ाई और करियर पर नकारात्मक असर न पड़े। इसके साथ ही कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्रयोगशालाओं की व्यवस्था और क्लीनिकल प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने की बात भी रखी गई।

फिलहाल उत्तराखंड में आयुष शिक्षा से जुड़े 17 कॉलेज संचालित हैं, जिनमें हजारों छात्र अध्ययनरत हैं। ज्ञापन देने पहुंचे प्रतिनिधियों ने कहा कि इन छात्रों का भविष्य सुरक्षित और उज्ज्वल बनाने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय और सरकार दोनों की है।

इस मौके पर उत्तराखंड आयुष परिषद के अध्यक्ष डॉ. किशोर चंदोला ने कहा कि हिमालयी राज्य उत्तराखंड की पहचान योग और आयुर्वेद से जुड़ी है। ऐसे में राज्य को आयुष शिक्षा और चिकित्सा का वैश्विक केंद्र बनाने की अपार संभावनाएँ हैं। उन्होंने कहा कि यदि समयबद्ध परीक्षाएँ, उच्चस्तरीय शोध और रोजगार अवसर उपलब्ध कराए जाएं तो आने वाले वर्षों में उत्तराखंड आयुष शिक्षा में देश का नेतृत्व कर सकता है।

छात्रों ने उम्मीद जताई कि सरकार और विश्वविद्यालय की सक्रियता से उनका भविष्य सुरक्षित होगा और उन्हें बेहतर शिक्षा व अवसर मिलेंगे।

ज्ञापन देने वालो व वार्ता करने वालों में मुख्य रूप से

  • डॉ. के.सी. चंदोला – चेयरमैन, उत्तराखंड आयुष एसोसिएशन
  • देवेंद्र भंडारी – रजिस्ट्रार, उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय
  • संदीप पांडे – सब-रजिस्ट्रार, उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय
  • डॉ. कांबोज – प्रतिनिधि
  • डॉ. मोनीस – प्रतिनिधि
  • डॉ. सत्येंद्र – प्रतिनिधि
  • डॉ. हरिओम – प्रतिनिधि
  • डॉ. मांजरी देवी – प्रतिनिधि
  • डॉ. विशाल – प्रतिनिधि
  • डॉ. बालकिशन चमोली – प्रतिनिधि मुख्य रूप से उपस्थित थे

संपादकीय✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
आज उत्तराखंड में 17 आयुष कॉलेज हैं, जो विभिन्न विषयों में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इनमें आयुर्वेदिक चिकित्सा, होम्योपैथी, यूनानी और योग से संबंधित शिक्षण शामिल है। इन संस्थानों में हजारों छात्र-छात्राएँ पढ़ रहे हैं। उनके सपनों, उनके भविष्य और उनकी मेहनत को सही दिशा देना केवल प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है।
चुनौतियाँ?रिजल्ट की देरी – छात्रों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि परीक्षा परिणाम समय पर घोषित नहीं होते। इससे उनके करियर और उच्च शिक्षा की योजनाएँ प्रभावित होती हैं।
सुविधाओं की कमी – कई कॉलेजों में अभी भी प्रयोगशालाओं, रिसर्च लैब, पुस्तकालय और क्लीनिकल प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
. मान्यता और पंजीकरण – केंद्र और राज्य स्तर पर मान्यता संबंधी प्रक्रियाएँ अक्सर लंबी और जटिल होती हैं, जिससे छात्रों में असुरक्षा बनी रहती है।
रोज़गार के अवसर – पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्रों को सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं में पर्याप्त अवसर नहीं मिलते।
संभावनाएँ:शोध और नवाचार – हिमालयी औषधियों पर शोध कर उत्तराखंड को वैश्विक आयुष हब बनाया जा सकता है।
स्वास्थ्य पर्यटन – योग और प्राकृतिक चिकित्सा के साथ स्वास्थ्य पर्यटन को जोड़कर राज्य की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी जा सकती है।
रोज़गार सृजन – आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक हो सकती है।
वैश्विक सहयोग – विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों से साझेदारी कर छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
आयुष विश्वविद्यालय के संदर्भ में हाल ही में जो पहल हुई, उसमें उत्तराखंड आयुष परिषद के अध्यक्ष डॉ. किशोर चंदोला की भूमिका उल्लेखनीय रही। उनके नेतृत्व में सभी कॉलेज प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर ज्ञापन सौंपा और यह स्पष्ट किया कि यदि शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता, समयबद्धता और गुणवत्ता लाई जाए तो आने वाले वर्षों में उत्तराखंड आयुष के क्षेत्र में राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक पहचान बना सकता है।छात्रों का भविष्य: सरकार और विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी,छात्र केवल संख्या नहीं होते, वे राष्ट्र के भविष्य का आधार हैं। यदि उनकी पढ़ाई, परीक्षा, परिणाम और डिग्री में अनिश्चितता रहेगी तो उनका आत्मविश्वास टूटेगा। सरकार को चाहिए कि:विश्वविद्यालय में डिजिटल मूल्यांकन प्रणाली लागू की जाए, जिससे परिणाम समय पर घोषित हों।प्रत्येक कॉलेज को रिसर्च ग्रांट और आधुनिक प्रयोगशालाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।क्लीनिकल इंटर्नशिप को सरकारी अस्पतालों से अनिवार्य रूप से जोड़ा जाए।आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति नीति बनाई जाए, जिससे छात्रों को रोजगार की गारंटी मिल सके।उत्तराखंड राज्य और आयुष की दृष्टि,जब उत्तराखंड राज्य आंदोलन की परिकल्पना की गई थी, तो उसमें यहाँ की विशेष पहचान—हिमालय, संस्कृति और प्राकृतिक संपदा—को उभारने का सपना था। आयुष शिक्षा और चिकित्सा उसी दिशा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि राज्य आयुष विश्वविद्यालय को प्राथमिकता देता है तो यह केवल शिक्षा का प्रश्न नहीं होगा, बल्कि उत्तराखंड की पहचान और आत्मनिर्भरता का प्रश्न भी होगा।आज जब पूरी दुनिया वैकल्पिक चिकित्सा और प्राकृतिक उपचार की ओर लौट रही है, उत्तराखंड के पास अवसर है कि वह आयुष शिक्षा और चिकित्सा का वैश्विक केंद्र बने। इसके लिए 17 कॉलेजों का सशक्तीकरण, छात्रों के हितों की सुरक्षा, समय पर परीक्षाएँ और परिणाम, तथा शोध और नवाचार को बढ़ावा देना आवश्यक है।डॉ. किशोर चंदोला और आयुष परिषद के नेतृत्व में जो पहल की गई है, वह स्वागतयोग्य है। परंतु इसे केवल ज्ञापन तक सीमित नहीं रहने देना चाहिए। सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे ताकि आने वाले वर्षों में उत्तराखंड के आयुष छात्र आत्मविश्वास के साथ कह सकें कि उन्होंने न केवल शिक्षा प्राप्त की, बल्कि उनके सपनों और करियर को भी उड़ान मिली। यही राज्य की असली उपलब्धि होगी और यही उत्तराखंड की आत्मा के अनुरूप भविष्य।


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