संपादकीय :जुगाड़ पर कड़ी लगाम, लेकिन सवाल अब?रुद्रपुर, उधम सिंह नगर के संदर्भ में)

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उत्तराखंड का नाम जब जुगाड़ तकनीक के लिए लिया जाता है तो यह आम आदमी की रचनात्मकता और आर्थिक विवशता दोनों को उजागर करता है। साइकिल से बैलगाड़ी, बाइक से मिनी ट्रक और स्कूटर से बने रिक्शा तक—देसी जुगाड़ हर गली-मोहल्ले में दिखाई देता है। लेकिन यही जुगाड़ जब कानून, सुरक्षा और समाज के लिए खतरा बन जाए तो उस पर कठोर कार्रवाई भी अनिवार्य हो जाती है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

हाल ही में देहरादून में परिवहन विभाग की बड़ी कार्रवाई के तहत 36 जुगाड़ रिक्शा कबाड़ में काट डाले गए, सैकड़ों ई-रिक्शा और ई-ऑटो के चालान व सीज की कार्रवाई की गई। यह कदम संदेश देता है कि अब अवैध और असुरक्षित परिवहन साधनों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सवाल यह है कि क्या रुद्रपुर जैसे तेजी से बढ़ते औद्योगिक शहर में भी ऐसी ही कड़ी कार्रवाई संभव और ज़रूरी है?

रुद्रपुर की सड़कों पर रोजाना सैकड़ों जुगाड़ वाहन दौड़ते हैं। पुराने स्कूटर या बाइक का आगे का हिस्सा और पीछे लोहे का बॉक्स, और बन गया “जुगाड़ रिक्शा”—जो सस्ते दामों पर माल ढोने का काम करते हैं। लेकिन इन पर न नंबर प्लेट, न फिटनेस, न बीमा और न ही सुरक्षा का कोई इंतज़ाम। हादसा होने पर न जिम्मेदारी तय होती है और न ही पीड़ित को मुआवजा मिलता है। यह न केवल मोटरयान अधिनियम का खुला उल्लंघन है बल्कि आम जनता की जान से खिलवाड़ भी है।

रुद्रपुर की हकीकत यह भी है कि ये जुगाड़ रिक्शा गरीब और बेरोजगार युवाओं के लिए रोज़गार का साधन बने हुए हैं। औद्योगिक क्षेत्र की छोटी फैक्ट्रियों और बाजारों में माल ढुलाई का सस्ता विकल्प यही जुगाड़ वाहन हैं। ऐसे में केवल इन्हें काट देना या सड़क से हटाना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। यह वैसा ही है जैसे बीमारी की जड़ तक पहुंचे बिना सिर्फ लक्षणों को दबा देना।

परिवहन विभाग और सरकार को दोहरी रणनीति अपनानी होगी।

  1. सख्त प्रवर्तन: जैसे देहरादून में कार्रवाई की गई, वैसे ही रुद्रपुर में भी जुगाड़ रिक्शा और अवैध ई-रिक्शा पर कठोर कदम उठाए जाएं। यह संदेश साफ होना चाहिए कि कानून से खिलवाड़ नहीं चलेगा।
  2. वैकल्पिक व्यवस्था: गरीब और बेरोजगार चालकों को लाइसेंसयुक्त, पंजीकृत और सब्सिडी वाले ई-रिक्शा या लोडर वाहन उपलब्ध कराए जाएं। सरकार अगर “स्टार्टअप” और “मेक इन इंडिया” की बात करती है तो स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे वित्तीय मॉडल बनाकर इन युवाओं को कानूनी और सुरक्षित रोजगार देने की योजना बनाए।
  3. शहर की यातायात योजना: रुद्रपुर पहले ही जाम, प्रदूषण और अव्यवस्थित यातायात से जूझ रहा है। जुगाड़ वाहन इस समस्या को और विकराल बनाते हैं। नगर निगम और परिवहन विभाग को मिलकर शहर की यातायात व्यवस्था में सुधार लाने की ठोस कार्ययोजना बनानी होगी।

आरटीओ डॉ. अनीता चमोला ने सही कहा कि यात्री वाहनों में माल ढुलाई व दुपहिया इंजन से बने जुगाड़ वाहन पूरी तरह अवैध हैं। लेकिन सिर्फ अपील और कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं होगी, जब तक कि वैकल्पिक आजीविका और परिवहन व्यवस्था उपलब्ध न कराई जाए।

रुद्रपुर में यह कदम और भी अहम हो जाता है क्योंकि यहां उद्योगों और बाजारों का दायरा दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। छोटे दुकानदारों और मजदूर वर्ग के लिए सस्ता और सुरक्षित परिवहन विकल्प उपलब्ध कराना उतना ही ज़रूरी है जितना कि अवैध जुगाड़ वाहनों को रोकना।


जुगाड़ भारतीय दिमाग की ताकत है, लेकिन यह ताकत कानून और सुरक्षा की सीमा पार कर जाए तो इसे रोकना ही होगा। रुद्रपुर में अब समय आ गया है कि सड़कों से ऐसे खतरनाक जुगाड़ रिक्शों को हटाकर सुरक्षित और पंजीकृत परिवहन व्यवस्था लागू की जाए। तभी हम कह पाएंगे कि हमने सिर्फ समस्या काटी नहीं, बल्कि उसका स्थायी समाधान भी खोजा है।



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