आज 10 अक्टूबर के दिन करवा चौथ (Karwa Chauth 2025) का व्रत मनाया जाने वाला है। सुहागन महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन वो निर्जला उपवास रख करवा माता और चंद्र देव की पूजन अर्चन करती हैं।

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यह सब कुछ महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं।

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर रखा जाने वाला यह व्रत 9 अक्टूबर की रात से शुरू होगा और 10 अक्टूबर की शाम 7:38 पर समाप्त होगा। इस बार करवा चौथ पर कई अलग-अलग योग बन रहे हैं। चलिए हम आपको इन योग की जानकारी देते हैं, साथ ही यह भी जान लेते हैं कि चंद्रोदय का समय क्या है और आपको पूजन कैसे करनी है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

करवा चौथ के दिन यानी 10 अक्टूबर की शाम 5:32 पर रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत होने वाली है। इसी के साथ 5:41 तक सिद्धि योग बना रहने वाला है। इस योग में आप पूजन पाठ कर सकते हैं।

इस बार करवा चौथ पर केवल एक घंटा 14 मिनट का मुहूर्त है। अगर आपको पूजन पाठ करनी है तो शाम 5:57 से 7:11 तक सबसे शुभ मुहूर्त है। वहीं सुबह से शाम तक के मुहूर्त की बात करें तो 4:40 से 5:30 तक ब्रह्म मुहूर्त, 11:45 से 12:31 तक अभिजीत मुहूर्त, 2:04 से 2:51 तक विजय मुहूर्त, 5:57 से 6:22 तक गोधूलि मुहूर्त, 3:22 से 4:48 तक अमृत मुहूर्त, 11:46 से 12:33 तक निशिता मुहूर्त रहने वाला है। चौघड़िया के मुहूर्त की बात करें तो सुबह 7:46 से 9:13 तक लाभ उन्नति, शाम 4:30 से 57 मिनट तक चर यानी सामान्य मुहूर्त रहने वाला है।

करवा चौथ पर चंद्र पूजन का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन चांद निकलने का समय शाम 8:13 का बताया जा रहा है। अलग-अलग शहरों में चांद निकलने के समय में थोड़ा अंतर देखने को मिल सकता है।

  • सबसे पहले आपको मिट्टी की वेदी पर भगवान शिव पार्वती गणेश जी और कार्तिकेय जी को स्थापित करना होगा।
  • अब विधि विधान से भगवान की पूजा करें। उन्हें कुमकुम, रोली, अक्षत, फूल और धूप दीप अर्पित करें।
  • अब आपको व्रत की कथा सुननी चाहिए।
  • कथा पूरी होने के बाद करवा, थाली, चलनी, लोटा लेकर चंद्र देव की पूजन करें।
  • इस बात का ख्याल रखें कि आपको चंद्र देव की पूजन के बाद उन्हें अर्घ्य जरूर देना चाहिए।
  • इसके बाद चलनी से अपने पति को देखकर आरती उतारे और उनके हाथों से जल ग्रहण कर व्रत का समापन करें।
  • महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रदेव से अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। हालांकि कई महिलाएं उम्र या स्वास्थ्य कारणों से इस व्रत का उद्यापन भी करती हैं।
    आइए जानते हैं कि करवा चौथ व्रत का उद्यापन कब और कैसे करें।
    करवा चौथ व्रत उद्यापन की सामग्री
    धार्मिक परंपरा के अनुसार करवा चौथ का व्रत 16 वर्षों तक किया जाता है, जिसके बाद इसे उद्यापन विधि से पूरा किया जा सकता है। इसके लिए कुछ आवश्यक सामग्री रखी जाती है….
    थाली, करवा और नारियल
    रोली, अक्षत, सिक्का
    सुपारी, चूड़ी, हल्दी
    बिंदी, काजल, कुमकुम
    पायल, बिछिया और करवा
    व्रत उद्यापन की विधि
    करवा चौथ के दिन व्रत उद्यापन के लिए उन 13 या 15 सुहागिन महिलाओं को आमंत्रित करें, जिन्होंने व्रत न रखा हो।
    सबसे पहले 13 करवे तैयार करें। प्रत्येक महिला को सुपारी भेंट करें।
    भोजन परोसने से पहले भगवान गणेश, माता पार्वती और करवा माता को भोग लगाएं।
    थालियों में भोजन परोसने से पहले रोली और अक्षत छिड़कें।
    अब पूजा करें और अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा याचना करें।
    सभी महिलाओं को प्रेमपूर्वक भोजन कराएं और साड़ी, चूड़ियां, बिंदी, पायल और करवा भेंट करें।
    कब करें व्रत का उद्यापन
    करवा चौथ व्रत का उद्यापन करवा चौथ वाले दिन ही किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब व्रत का संकल्प पूरा हो जाता है, तब उसे उद्यापन विधि से पूर्ण किया जाना आवश्यक होता है। बिना उद्यापन किए व्रत छोड़ना अशुभ माना जाता है।
  • शास्त्रों और लोककथाओं के अनुसार, स्वयं भगवान शिव ने देवी पार्वती को इस व्रत का महत्व और महत्ता बताई थी। इसके अलावा, महाभारत में एक प्रसंग आता है जहाँ द्रौपदी ने अपने परिवार के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था, हालाँकि यह व्रत मुख्य रूप से पति की दीर्घायु और सौभाग्य से जुड़ा है। तो, ये कहानियाँ क्या हैं? आइए जानें… करवा चौथ की महिमा पर भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच एक संवाद



    पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से अपने पति की दीर्घायु और सौभाग्य सुनिश्चित करने का उपाय पूछा, तो शिव ने उन्हें करक चतुर्थी व्रत के बारे में बताया, जिसे आज करवा चौथ के नाम से जाना जाता है। शिव ने बताया कि इस व्रत को करने से स्त्री को सौभाग्य और उसके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है। भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताया कि यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल से लेकर चन्द्रमा के दर्शन होने तक निर्जल व्रत रखना चाहिए। पूजा के दौरान देवी गौरी, चंद्र देव और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव ने देवी पार्वती को इस व्रत से संबंधित एक कथा भी सुनाई। कथा के अनुसार, एक बार वीरवती नाम की एक स्त्री ने यह व्रत रखा था, लेकिन उसके भाइयों ने उसे धोखे से पहले ही भोजन करा दिया। परिणामस्वरूप, उसके पति की मृत्यु हो गई। देवी पार्वती ने वीरवती को पुनः इस व्रत को करने की सलाह दी और इसके प्रभाव से उसका पति पुनर्जीवित हो गया। भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि जो स्त्री नियमित रूप से इस व्रत को करती है, वह अपने पति को मृत्यु के भय से बचा सकती है। जब देवी पार्वती ने चंद्र देव को अर्घ्य देने का कारण पूछा, तो भगवान शिव ने बताया कि चंद्रमा दीर्घायु का प्रतीक है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य देने से स्त्री का सौभाग्य और उसके पति की दीर्घायु सुनिश्चित होती है।
    भगवान शिव से करवा चौथ का महत्व जानने के बाद, देवी पार्वती ने स्वयं इस व्रत का पालन किया और इसका संदेश संसार में फैलाया। इस प्रकार, भगवान शिव ने करवा चौथ व्रत की स्थापना की और देवी पार्वती ने इसे स्त्रियों में फैलाया। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप और व्रत किया था। उन्होंने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को शिव की आराधना करते हुए निर्जल व्रत रखा। उनकी अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
    द्रौपदी की करवा चौथ पूजा: महाभारत में भी करवा चौथ व्रत का उल्लेख है। कथा के अनुसार, जब पांडव कठिन समय से गुज़र रहे थे, तब द्रौपदी अत्यंत चिंतित हो गईं और उन्होंने भगवान कृष्ण से अपने परिवार की रक्षा और उन्हें संकट से मुक्ति दिलाने का उपाय पूछा। भगवान कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ व्रत रखने की सलाह दी। कृष्ण के निर्देशों का पालन करते हुए, द्रौपदी ने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत का पालन किया। परिणामस्वरूप, पांडवों के जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो गईं और उन्हें शक्ति और सौभाग्य की प्राप्ति हुई। यह कथा दर्शाती है कि करवा चौथ केवल सौभाग्य या वैवाहिक प्रेम का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि धर्म, साहस और परिवार की रक्षा का भी प्रतीक है। यह व्रत स्त्री की आस्था, त्याग और अपने परिवार के प्रति अटूट समर्पण का एक दिव्य उदाहरण है।
    ✧ धार्मिक और अध्यात्मिक

isclaimer: यहां दी गई सूचना केवल एक सामान्य जानकारी है। उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स इसकी पुष्टि नहीं करता।


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