
संपादकीय लेख: “त्योहारों के मौसम में उपद्रव नहीं, सहयोग चाहिए — रुद्रपुर में पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठाना गैरजिम्मेदारी, व्यापार मंडल की दोहरी भूमिका पर उठते प्रश्न”

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
रुद्रपुर शहर इन दिनों त्योहारों की रौनक से चमक रहा है। दीपावली, धनतेरस और छठ जैसे पर्वों के बीच बाजारों में ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है। लेकिन इसी बीच शहर के मुख्य बाजार में बैरिकेड लगाने को लेकर व्यापार मंडल और पुलिस के बीच टकराव ने जिस तरह का माहौल पैदा किया है, वह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि शहर की शांति व्यवस्था पर भी एक अनावश्यक दबाव डालने वाला कदम साबित हो रहा है।
मुख्य बाजार में यातायात व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए पुलिस प्रशासन ने बैरिकेड लगाने का निर्णय लिया, ताकि पैदल चलने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और जाम की समस्या से राहत मिले। त्योहारों में जहां हर ओर भीड़ रहती है, ऐसे में पुलिस द्वारा किया गया यह कदम एक जनहितकारी पहल है। लेकिन दुख की बात यह है कि इस व्यवस्था को सहयोग देने की बजाय कुछ व्यापारिक संगठन इसके विरोध में खड़े हो गए।
पुलिस की पहल और व्यवस्था का उद्देश्य?रुद्रपुर पुलिस, विशेषकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मणिकांत मिश्रा और उनकी टीम लगातार यह प्रयास कर रही है कि त्योहारों के दौरान शहर में शांति, सुरक्षा और यातायात व्यवस्था बनी रहे। मुख्य बाजार में बैरिकेड लगाकर पुलिस ने यह सुनिश्चित किया कि वाहनों की अनियंत्रित आवाजाही रोकी जा सके, फड़-ठेलों और ग्राहकों के बीच टकराव की नौबत न आए, और भीड़ नियंत्रण में रहे।
दरअसल, बीते वर्षों में इसी क्षेत्र में त्योहारों के दौरान कई बार विवाद और जाम की स्थिति बनी थी, जिससे न केवल आम जनता बल्कि व्यापारी वर्ग भी परेशान हुआ था। ऐसे में पुलिस ने जो निर्णय लिया, वह पूरी तरह सुरक्षा और सार्वजनिक हित में था।
व्यापार मंडल का विरोध — हितैषी या अवसरवादी?व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजय जुनेजा ने बैरिकेडिंग के विरोध में बाजार बंद और धरने की घोषणा कर दी है। उन्होंने यह तर्क दिया कि पुलिस की इस व्यवस्था से व्यापार प्रभावित होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या व्यापार पुलिस की व्यवस्था से प्रभावित होता है या अव्यवस्था से?
जानकारों का कहना है कि जुनेजा का विरोध दरअसल “हितैषी मुखौटे” के पीछे की राजनीति है। पहले तो उन्होंने ठेलेवालों की मदद के नाम पर नगर निगम से गांधी पार्क में मेला लगाने की पैरवी की — ताकि ठेलेवालों को व्यापार का अवसर मिले। लेकिन अब वही व्यक्ति मुख्य बाजार में उन्हीं ठेलेवालों के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। यह दोहरी नीति साफ बताती है कि व्यापार मंडल अब व्यापारियों की एकता का मंच नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थ और राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा का उपकरण बन चुका है।
गरीबों की हमदर्दी” का ढोंग? जुनेजा की इस भूमिका को देखकर शहर के कई व्यापारी स्वयं असहज हैं। जिन गरीब ठेलेवालों की आड़ लेकर वे निगम में “हमदर्दी” दिखा रहे थे, आज उन्हीं के खिलाफ बाजार बंद की मांग कर रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से एक कपटी चरित्र का प्रदर्शन है — “चेहरे पर हमदर्दी, दिल में कपट।”
सोशल मीडिया पर कई स्थानीय नागरिकों ने यह भी आरोप लगाया है कि कुछ व्यापारी बड़े दुकानदारों की मिलीभगत से फड़वालों से ₹20 से ₹25 हजार तक वसूली कर रहे हैं। अगर यह आरोप सच है, तो यह न केवल नैतिक रूप से गलत है बल्कि प्रशासन को गुमराह करने वाला भी है।
उत्तराखंड पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल — दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति? सबसे आपत्तिजनक बात यह है कि व्यापार मंडल अध्यक्ष ने इस विवाद को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की और पुलिस पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिया। एक ईमानदार और निष्पक्ष पुलिस अधिकारी पर इस तरह का व्यक्तिगत आक्षेप केवल प्रशासन की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है।
उत्तराखंड पुलिस आज पूरे राज्य में अपने सख्त लेकिन मानवीय रवैये के लिए जानी जाती है। चाहे वह यातायात नियंत्रण हो, त्योहारों में सुरक्षा व्यवस्था हो, या नशे व अपराध के खिलाफ अभियान — पुलिस ने हर मोर्चे पर जनता के साथ खड़े होकर सेवा की है। ऐसे में उस पर अंगुली उठाना केवल राजनीतिक लाभ और व्यक्तिगत प्रचार की चाहत से प्रेरित कदम लगता है।
त्योहारों में उपद्रव नहीं, सहयोग चाहिए? त्योहारों का अर्थ है — भाईचारा, सौहार्द और व्यवस्था। अगर व्यापारी ही पुलिस के साथ टकराव का माहौल बना देंगे, तो शहर का आम नागरिक किस पर भरोसा करे? ऐसे समय में जब प्रशासन, निगम और पुलिस मिलकर सुरक्षा और सफाई व्यवस्था दुरुस्त कर रहे हैं, तब कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा धरना, विरोध या भड़काऊ पोस्ट डालना केवल माहौल बिगाड़ने का काम करेगा।
प्रश्न व्यापार मंडल की विश्वसनीयता ?रुद्रपुर का उद्योग व्यापार मंडल एक समय शहर के विकास, व्यापारी कल्याण और प्रशासनिक संवाद का मंच हुआ करता था। लेकिन अब यह मंच धीरे-धीरे “राजनीतिक अखाड़ा” बन गया है। संजय जुनेजा जैसे कुछ नेताओं की मानसिकता ने इसकी साख को कमजोर किया है। बार-बार हर त्यौहार या सामाजिक अवसर पर विरोध, बयानबाज़ी और उपद्रव की कोशिशें इस संस्था की मूल भावना के विपरीत हैं।
त्योहारों में उपद्रव नहीं, सहयोग चाहिए। पुलिस और प्रशासन की कोशिशों को राजनीति की भेंट चढ़ाना बंद होना चाहिए। रुद्रपुर के व्यापारी वर्ग को चाहिए कि वे ऐसी नकारात्मक सोच से खुद को अलग रखें और शहर के हित में पुलिस-प्रशासन का साथ दें।
क्योंकि जब पुलिस सड़कों पर शांति के लिए खड़ी होती है, तब हमें भी अपनी दुकानों में व्यवस्था और संयम की मशाल जलानी चाहिए।
– संपादकीय विभाग,
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स रुद्रपुर


