“स्वदेशी दीपावली मेले में स्वार्थी राजनीति की चकाचौंध — गांधी पार्क में संस्कृति के साथ राजनीति का मेला भी सज गया”

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रूद्रपुर। गांधी पार्क में नगर निगम द्वारा आयोजित “स्वदेशी दीपावली मेला” का उद्देश्य था — स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना, स्थानीय कलाकारों को मंच देना, और दीपोत्सव की संस्कृति को जन-जन तक पहुँचाना। परंतु अफसोस, यह सांस्कृतिक आयोजन अब राजनीतिक रंग में रंग चुका है। जिस मंच पर दीपों की ज्योति जलनी थी, वहां अब “राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की चमक” दिखाई दे रही है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

14 अक्टूबर से शुरू हुआ यह मेला 21 अक्टूबर तक चलेगा। हर दिन यहां हजारों की भीड़ उमड़ रही है। बच्चे, महिलाएं, व्यापारी, कलाकार — सबके लिए यह एक उत्सव है। लेकिन जैसे-जैसे मेले की लोकप्रियता बढ़ी, वैसे-वैसे इसकी “राजनीतिक उपयोगिता” भी बढ़ने लगी। और अब चर्चा सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की नहीं, बल्कि “पोस्टर पॉलिटिक्स” की हो रही है।

पोस्टर से शुरू हुआ विवाद?आज शाम मेले में मुख्य अतिथि के रूप में आने वाले हैं — केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री रह चुके, वर्तमान सांसद अजय भट्ट। उनके साथ रुद्रपुर के विधायक शिव अरोड़ा भी विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित हैं। दोनों ही जनप्रतिनिधि उत्तराखंड में भाजपा की मजबूत पहचान हैं। परंतु आश्चर्यजनक रूप से, मेले के मुख्य मंच पर लगे बड़े-बड़े पोस्टरों में इन दोनों नेताओं की तस्वीरें नदारद हैं!

पोस्टर पर दिखाई दे रहा है — मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का चित्र, और उसके ठीक बगल में “नगर निगम के महापौर विकास शर्मा” का विशाल चेहरा। ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरा आयोजन “मुख्यमंत्री-विकास शर्मा जोड़ी” का कार्यक्रम हो, जबकि वास्तविकता यह है कि यह आयोजन नगर निगम का है, और इसमें सांसद अजय भट्ट व विधायक शिव अरोड़ा दोनों की भागीदारी औपचारिक रूप से सुनिश्चित की गई है।

राजनीतिक गलियारों में उठी चर्चा

इस पोस्टर प्रकरण ने रुद्रपुर के राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। सवाल उठ रहे हैं —
क्या नगर निगम के महापौर विकास शर्मा ने जानबूझकर सांसद और विधायक की तस्वीरें हटवाईं?
क्या यह मुख्यमंत्री की नज़दीकियों का प्रदर्शन करने की कोशिश है?
या फिर यह “विकास शर्मा ब्रांड” को आगे बढ़ाने की रणनीति है?

भाजपा संगठन के कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी की गाइडलाइन स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी भी सार्वजनिक आयोजन में पदानुसार सभी जनप्रतिनिधियों का सम्मान और उल्लेख होना चाहिए। यदि मुख्यमंत्री का चित्र लगाना उचित है, तो उससे पहले सांसद और विधायक का भी चित्र लगना अनिवार्य है। आखिर लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व की मर्यादा और श्रेणी का ध्यान रखना संगठनात्मक अनुशासन का हिस्सा है।

‘महापौर की महफिल’ या ‘संगठन की अवहेलना’?

रुद्रपुर नगर निगम के महापौर विकास शर्मा का उत्साह निश्चित रूप से सराहनीय है। उन्होंने मेला सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सांस्कृतिक मंच से लेकर स्टॉल तक, साफ-सफाई से लेकर सुरक्षा व्यवस्था तक — सबमें निगम प्रशासन सक्रिय रहा। लेकिन उत्साह और अहंकार के बीच की सीमा बेहद पतली होती है।

लोग कह रहे हैं कि यह मेला अब “विकास शर्मा शो” बनकर रह गया है। हर बैनर, हर होर्डिंग, हर मंच — हर जगह उनका चेहरा प्रमुखता से दिख रहा है। यहां तक कि कुछ स्थानों पर तो यह धारणा बन गई है कि मानो यह कार्यक्रम भाजपा संगठन या नगर निगम का न होकर, विकास शर्मा का निजी राजनीतिक अभियान हो।

भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष है कि जब सांसद अजय भट्ट और विधायक शिव अरोड़ा जैसे जनप्रतिनिधि रुद्रपुर में हैं, तो उनकी तस्वीरों का न होना संगठन के अनुशासन पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

सांसद अजय भट्ट — संगठन के वरिष्ठ चेहरा, पर मंच पर ‘अनुपस्थित’ तस्वीर?पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद अजय भट्ट, उत्तराखंड भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में गिने जाते हैं। वे न केवल संगठन के प्रति समर्पित हैं, बल्कि पार्टी की विचारधारा को जनमानस तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ऐसे वरिष्ठ नेता के कार्यक्रम में उपस्थित होने की सूचना होने के बावजूद, उनका चित्र मंच पर न लगाना, एक तरह से राजनीतिक “असम्मान” के रूप में देखा जा रहा है।

सामाजिक और राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह केवल एक पोस्टर नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है — कि रुद्रपुर में “महापौर लॉबी” मुख्यमंत्री लॉबी के समानांतर अपनी पहचान गढ़ने में लगी है।

विधायक शिव अरोड़ा — विकास कार्यों में व्यस्त, पर संगठनात्मक अनदेखी का शिकार

विधायक शिव अरोड़ा इन दिनों रुद्रपुर के विकास कार्यों में व्यस्त हैं। वे लगातार क्षेत्र में रहकर सड़कों, जल निकासी, विद्युत और स्वास्थ्य सुविधाओं के सुधार पर ध्यान दे रहे हैं। उनकी लोकप्रियता कार्यशैली पर आधारित है, न कि प्रचार पर।

लेकिन इस मेले में जिस प्रकार उनकी उपेक्षा हुई है, उसे लेकर उनके समर्थक नाराज हैं। कई स्थानीय कार्यकर्ताओं ने कहा कि “मेले में तो अरोड़ा जी को सम्मान देना चाहिए था, जिन्होंने रुद्रपुर के विकास के लिए लगातार संघर्ष किया है। लेकिन यहां तो विकास शब्द का अर्थ ही बदल गया — ‘विकास शर्मा’ हो गया।”

मुख्यमंत्री लॉबी की राजनीति और संगठन की दरारें?भाजपा की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं कि हर मुख्यमंत्री की अपनी लॉबी होती है। परंतु यह लॉबी तब तक स्वस्थ मानी जाती है जब तक वह संगठनात्मक मर्यादाओं में रहे। रुद्रपुर में जो परिदृश्य उभर रहा है, वह इस संतुलन को तोड़ता नजर आता है।

मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले महापौर विकास शर्मा अब अपने आपको “मुख्यमंत्री के लाडले” के रूप में पेश करने में पीछे नहीं हैं। परंतु यही अति उत्साह यदि संगठन की एकजुटता को तोड़ने लगे, तो यह भाजपा के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है।

सांस्कृतिक आयोजन या राजनीतिक मंच?

स्वदेशी दीपावली मेले का उद्देश्य था — “स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ।” परंतु मंच पर जो दृश्य उभर रहा है, वह है — “राजनीति सजाओ, प्रचार बढ़ाओ।”
मेले के मुख्य द्वार पर बड़े-बड़े बैनरों में “महापौर विकास शर्मा” का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। नागरिकों में यह चर्चा आम है कि “नगर निगम का मेला है या फिर अगली चुनावी रणनीति का मंच?”

मेले में आने वाले आम लोग भले ही इस विवाद से अनजान हों, लेकिन राजनीतिक वर्ग में यह बहस गहराई तक जा चुकी है।

संघटन के लिए खतरे की घंटी?भाजपा अनुशासन, परंपरा और कार्यसंस्कृति की पार्टी कही जाती है। लेकिन जब स्थानीय स्तर पर पदाधिकारी व्यक्तिगत प्रचार की दौड़ में संगठन की मर्यादाओं को भूलने लगें, तो यह स्थिति गंभीर होती है।
रुद्रपुर का यह प्रसंग आने वाले दिनों में पार्टी के अंदर चर्चा का विषय बन सकता है।

कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला केवल पोस्टर का नहीं, बल्कि “राजनीतिक दृष्टिकोण” का है। महापौर विकास शर्मा यदि पार्टी अनुशासन में रहते हुए अपनी भूमिका निभाएं तो निश्चित ही वे संगठन की बड़ी संपत्ति सिद्ध हो सकते हैं। लेकिन यदि यह उत्साह “व्यक्तिगत छवि निर्माण” की ओर बढ़ता रहा, तो यह पार्टी के भीतर भ्रम और असंतोष दोनों को जन्म देगा।

स्वदेशी” की जगह “स्वार्थी” राजनीति
?विडंबना यह है कि जिस मेले को “स्वदेशी दीपावली मेला” कहा जा रहा है, उसमें “स्वार्थी राजनीति” का प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। स्वदेशी उत्पादों के स्टॉल और भारतीय संस्कृति की झलक के बीच राजनीति की जो चमक है, वह इस आयोजन की आत्मा को धुंधला कर रही है।

यह वही स्थिति है, जब एक सुंदर दीपक का प्रकाश किसी के अहंकार की छाया में दब जाता है।
राजनीति से ऊपर संस्कृति का सम्मान
?रुद्रपुर के नागरिकों को यह याद रखना चाहिए कि गांधी पार्क में आयोजित यह मेला केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि नगर की सामूहिक अस्मिता का प्रतीक है। यहां राजनीति नहीं, संस्कृति बोलनी चाहिए।

महापौर विकास शर्मा को भी यह समझना होगा कि “पद का मूल्य प्रचार से नहीं, परिपक्वता से बढ़ता है।” सांसद अजय भट्ट और विधायक शिव अरोड़ा जैसे वरिष्ठ जनप्रतिनिधियों का सम्मान करना न केवल शिष्टाचार है, बल्कि लोकतांत्रिक गरिमा का दायित्व भी।
राजनीति की रौशनी भले ही चकाचौंध भरी लगे, लेकिन दीपावली का असली संदेश है — “प्रकाश से अंधकार मिटाओ, न कि अहंकार से संबंध।”
गांधी पार्क का यह स्वदेशी दीपावली मेला रुद्रपुर की पहचान बने — यह सभी की कामना है। परंतु यदि इस मेले को “राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन” का मंच बना दिया गया, तो जनता इसे केवल एक “राजनीतिक तमाशा” समझेगी।

समय का चक्र घूमता है — और जिस दिन यह बदलेगा, तब शायद लोग याद करेंगे कि “दीपावली के दीप तो जल गए, पर लोकतंत्र के दीप बुझते चले गए।”


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