देवभूमि उत्तराखंड में दीपावली 21 अक्टूबर 2025 को मनाई जा रही है, और इसी तिथि को लक्ष्मी पूजन, दीप प्रज्वलन और पर्व की मुख्य रस्में सम्पन्न होंगी।

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देवभूमि उत्तराखंड में दीपावली 21 अक्टूबर 2025 को मनाई जा रही है, और इसी तिथि को लक्ष्मी पूजन, दीप प्रज्वलन और पर्व की मुख्य रस्में सम्पन्न होंगी।

उत्तराखंड का पर्वतीय समाज सदियों से अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म के प्रति सजग रहा है। हमारे पर्वतीय क्षेत्र में हर त्यौहार केवल एक सामाजिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारे इतिहास का हिस्सा है। यह समय है जब हम संकल्प लें कि पूरे उत्तराखंड के लोग — चाहे वह मैदानी क्षेत्रों में रहते हों या पर्वतीय क्षेत्रों में — एक दिन हर त्यौहार एक साथ मनाने की परंपरा को अपनाएँगे।

आजकल देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट पर नए-नए पोस्ट और सुझाव फैल रहे हैं, जो अक्सर भ्रम और भ्रांति का कारण बनते हैं। स्वयंभू ज्योतिषाचार्य, और कुमाऊं की महिला ज्योतिष आचार्य भी, अपनी व्यक्तिगत राय या नए विचारों के आधार पर तारीखों और मुहूर्तों के संबंध में घोषणा कर देते हैं। इससे हमारे पर्वतीय समाज में त्योहारों के आयोजन को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

उत्तराखंड का इतिहास और परंपरा हमें स्पष्ट मार्ग दिखाती है। हमारे पूर्वज हमेशा अपने कुल पुरोहितों और कर्मकांडों के ज्ञाता पंडितों के निर्देशों का पालन करते आए हैं। यही हमारे समाज की असली धरोहर है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम अपने पुराने रास्ते को अपनाएँ और हर त्यौहार केवल वही मनाएँ जो हमारे पुरोहितों और उनकी पंचांग पर आधारित हो।

इस दिशा में पहला कदम है रामदत्त पंचांग और ऋषिकेश तथा हरिद्वार के प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्यों से विचार-विमर्श करना। केवल उनकी सलाह और मार्गदर्शन के अनुसार ही पर्वों की तिथियों और मुहूर्तों का निर्धारण होना चाहिए। इससे पूरे उत्तराखंड में एकरूपता आएगी, और हर पर्व का महत्त्व और पवित्रता बनी रहेगी।

पर्वतीय लोग, आज हम सभी संकल्प लें कि आगे से किसी अन्य पंचांग या सोशल मीडिया के सुझावों के आधार पर नहीं चलेंगे। हम अपने कुल पुरोहितों और कर्मकांड ज्ञाता पंडितों के अनुसार ही त्योहार मनाएँगे। यही हमारी सांस्कृतिक शक्ति है और यही हमें हमारे इतिहास और परंपरा से जोड़ती है।

आइए, इस संकल्प के साथ हम उत्तराखंड के हर पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रवासियों को जोड़ें और सुनिश्चित करें कि हर त्यौहार न केवल खुशी का अवसर बने, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का प्रतीक भी बने।

दीपावली केवल घर-घर दीप जलाने का त्योहार नहीं है। यह अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय का पर्व है। उत्तराखंड में, विशेषकर कुमाऊँ और गढ़वाल के पर्वतीय जिलों में, दीपावली का महत्त्व केवल एक दिन तक सीमित नहीं है। यहाँ यह पर्व सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आयाम में भी गहराई रखता है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तराखंड कुमाऊँ गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों एवं मैदानी क्षेत्र के पर्वतीय लोग—चमोली अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत — में दीपावली का आयोजन परंपरागत रूप में आज 21 अक्टूबर को किया जा रहा है। यहाँ की सामाजिक संरचना में यह पर्व परिवारों को एकजुट करने, गांवों में सामूहिकता बढ़ाने और धार्मिक श्रद्धा को जीवित रखने का माध्यम है।

पंचांग और शुभ मुहूर्त?इस वर्ष की दीपावली के लिए कई प्रतिष्ठित पंचांगों — जैसे कि रामदत्त पंचांग कुमाऊं, चामुंडा पंचांग (गुजरात), श्री भादवामाता पंचांग (नीमच), श्रीधर शिवलाल पंचांग (अजमेर), दाते पंचांग (सोलापुर), निर्णय सागर पंचांग (नीमच), गृहस्थ दर्पण पंचांग, सनातन ज्योतिष पंचांग, अर्बुद श्री पंचांग, श्री गणेशमार्तन्ड पंचांग, श्री कालचक्र पंचांग, श्री मेवाड़ विजय पंचांग, श्री जयमार्तंड पंचांग, सवाई जयपुर पंचांग, ज्योतिष सम्राट् पंचांग, राज-पचार पंचांग, अखिल भारतवर्षीय पंचांग, ज्योतिष सम्राट् कालदर्शक, किशोर जंत्री, किशोर कालचक्र, गुरु-धाम पंचांग, गुरु धाम कालदर्शक, छ: न्याति कालदर्शक, श्रोत्रिय पंचांग, श्री सिद्धेश्वर पंचांग, मगभास्कर पंचांग, दैवज्ञ प्रबोध पंचांग, श्री साकेत पंचांग, श्री साकेत जंत्री, श्री नैना देवी पंचांग, श्री बद्रिकाशी पंचांग, श्री ताराप्रसाद दिव्य पंचांग, श्रीधर कालदर्शक पंचांग, निर्णयसागर कालदर्शक पंचांग, BBS सिद्धांति पंचांग, Indrakanti Vari Panchang, सिया भवानी पंचांग, कैलाश पंचांग, कालनिर्णय पंचांग, स्वामी समर्थ पंचांग, महालक्ष्मी पंचांग, स्वामी समर्थ गादी पंचांग, मुंबई समाचार गुजराती पंचांग, राजंदेकर पंचांग, निर्णयसागर पंचांग (मुंबई), सोमण पंचांग, शताब्दी पंचांग, मार्वल कालदर्शक, रस्तोगी कालदर्शक, राम कालदर्शक, श्री राघवेन्द्र पञ्चाङ्गम् — ने यह स्पष्ट किया है कि 21 अक्टूबर 2025 दीपावली मनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है।

उत्तराखंड के प्रमुख ज्योतिषाचार्य पूजा पद्धति कर्मकांड करने वाले विद्वान पंडितो के अनुसार, भी इस वर्ष लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6:18 बजे से 8:42 बजे तक है। यही समय गाँव-गाँव, घर-घर और मंदिरों में दीप प्रज्वलन और पूजा का सर्वोत्तम समय माना गया है।

इस वर्ष की अमावस्या तिथि की गणना के अनुसार, यह दिन धन, सुख और समृद्धि के लिए विशेष लाभकारी है। पंचांग के मूलांक, योग और नक्षत्र की गणना दर्शाती है कि 21 अक्टूबर का यह समय गृहस्थों और साधु-संतों के लिए आदर्श है।

उत्तराखंड में दीपावली की परंपरा

कुमाऊं उत्तराखंड क्षेत्र की दीपावली केवल आध्यात्मिक उत्सव नहीं है। यह पर्व सांस्कृतिक और सामाजिक पर्व भी है। यहाँ के गाँवों में दीपावली के समय घरों की सफाई, दीवारों पर रंगोली और दीपों की सजावट करना एक अनिवार्य परंपरा है। प्रत्येक घर में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

इसके अतिरिक्त, देवभूमि की पहचान को मजबूत करने वाले अन्य पर्व भी दीपावली से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, देव दीपावली और तुलसी विवाह की रस्में पर्व के बाद आती हैं। यह पूरी श्रृंखला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है बल्कि सामाजिक समरसता और परिवारिक बंधन को भी मजबूत बनाती है।

पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों का परिप्रेक्ष्य

उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों और मैदानी क्षेत्रों की दीपावली का समय भिन्न हो सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य और संदेश समान है। पर्वतीय क्षेत्रों में सूर्यास्त देर से होता है, इसलिए लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त शाम के अंतिम समय तक रहता है।

मैदानी क्षेत्रों में भी आज 21 अक्टूबर को दीपावली मनाना आदर्श है। यहां घर-घर दीप जलाकर, मंदिरों में पूजा और सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस प्रकार उत्तराखंड के प्रत्येक क्षेत्र में दीपावली का एक ही आध्यात्मिक संदेश फैलता है — अंधकार को मिटाओ और प्रकाश फैलाओ।

दीपावली का आध्यात्मिक संदेश

दीपावली केवल भौतिक दीपक जलाने का पर्व नहीं है। यह आध्यात्मिक जागरूकता, नैतिक मूल्यों और सकारात्मकता का पर्व है।
उत्तराखंड की परंपरा हमें सिखाती है कि दीपक केवल घरों में ही नहीं, बल्कि हमारे विचारों, हृदय और समाज में भी जलना चाहिए।

हर दीपक हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में नकारात्मकता, द्वेष और घृणा के अंधकार को दूर करना आवश्यक है। दीपावली का पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर ज्ञान, करुणा और प्रेम की ज्योति फैलाएँ।

आधुनिक समय में दीपावली

आज जब आधुनिकता, तकनीक और सोशल मीडिया हमारे जीवन में घुल-मिल रहे हैं, दीपावली का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
हर घर में स्मार्ट लाइट्स, इलेक्ट्रॉनिक दीपक और आधुनिक सजावट देखने को मिलती है। परंतु यह जरूरी है कि हम पारंपरिक मूल्यों और आध्यात्मिक संदेश को न भूलें। दीपावली का असली अर्थ केवल प्रकाश फैलाना नहीं, बल्कि जीवन, विचार और कर्म में उज्ज्वलता लाना है।

इस वर्ष 21 अक्टूबर को दीपावली मनाने का निर्णय हमारे लिए यह अवसर है कि हम अपनी परंपरा, पंचांग और संस्कृति को समझें और उसका सम्मान करें। पंचांग की गणना, शुभ मुहूर्त और लोक परंपराओं के अनुसार आज का दिन हमारे लिए धन, सुख और समृद्धि लेकर आए।

समाज और संस्कृति का महत्व

उत्तराखंड की दीपावली समाज और संस्कृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी याद दिलाती है। पर्व के समय गाँव-गाँव में सामूहिक आयोजन होते हैं, मंदिरों में भजन-कीर्तन और लोकगीत गाए जाते हैं। यहाँ बच्चे, युवा और बुजुर्ग सब मिलकर दीप जलाते हैं और अंधकार को दूर करते हैं।

यह पर्व सामाजिक समरसता को बढ़ाने का माध्यम भी है। दीपावली के समय लोग पुराने मतभेद भूलकर, प्रेम और सहयोग की भावना से एक-दूसरे के घर जाते हैं। यह पर्व यह संदेश देता है कि जीवन में सामूहिक सहयोग और सौहार्द्र उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि व्यक्तिगत पूजा।

भविष्य की सोच

इस वर्ष दीपावली पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम सिर्फ घरों में दीपक नहीं जलाएँगे, बल्कि अपने जीवन, समाज और मन में भी प्रकाश फैलाएँंगे।

हमारे कार्य, विचार और व्यवहार ही हमारे जीवन के दीपक हैं। जब हम नकारात्मकता, द्वेष और क्रोध को छोड़ेंगे और ज्ञान, प्रेम और करुणा को अपनाएँगे, तभी दीपावली का सच्चा अर्थ पूरा होगा।

उत्तराखंड की यह परंपरा हमें सिखाती है कि प्रकाश का उद्देश्य केवल दिखावा नहीं, बल्कि जीवन में स्थायी सकारात्मक परिवर्तन लाना है। यही दीपावली का वास्तविक संदेश है।

आज 21 अक्टूबर 2025 को, देवभूमि उत्तराखंड में दीपावली के अवसर पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें:

अपने जीवन से अंधकार को मिटाएँ और भीतर की ज्योति को प्रज्वलित करें।

समाज में सहयोग, प्रेम और करुणा का प्रकाश फैलाएँ।

हमारी परंपरा, संस्कृति और पंचांग की मान्यताओं का सम्मान करें।

बच्चों और युवाओं को यह संदेश दें कि दीपावली केवल पूजा और उत्सव नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन भी है।
जय देवभूमि उत्तराखंड!
जय दीपावली!


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