
रुद्रपुर शहर की सड़कों पर इन दिनों अराजकता का राज है। हेलमेट सिर पर नहीं, नियमों की परवाह नहीं, और जिम्मेदारी की तो बात ही छोड़िए—हर दिन, हर चौराहे पर ट्रैफिक अनुशासन तार-तार होता दिखाई देता है। चालानी कार्रवाई, वाहन सीज और ड्राइविंग लाइसेंस निलंबन के बावजूद हालात जस के तस हैं। सात महीनों में पाँच सौ से अधिक लाइसेंस निलंबित किए जा चुके हैं, पाँच हजार से ज्यादा चालान कटे हैं, लेकिन सड़क पर सुधार की रफ्तार शून्य है। सवाल यह उठता है कि इतनी कार्रवाई के बाद भी आखिर लोग क्यों नहीं सुधर रहे?

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
अनुशासनहीनता बन चुकी है “आदत”
यातायात नियमों का पालन करना अब नागरिक कर्तव्य नहीं, बल्कि “विकल्प” बन चुका है। लोग सोचते हैं कि जब तक पुलिस पकड़ न ले, तब तक सब जायज़ है। यही सोच रुद्रपुर की ट्रैफिक व्यवस्था को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा रही है।
गलत दिशा में वाहन दौड़ाना, ट्रिपल राइडिंग, नशे में ड्राइविंग, मोबाइल पर बात करते हुए बाइक चलाना, रेड लाइट जंप करना — यह सब आम दृश्य हैं। और यह “आम” इसलिए हुआ है क्योंकि दंड का भय खत्म हो चुका है।
कानून का डर क्यों खत्म हुआ?
एआरटीओ और ट्रैफिक पुलिस की कार्रवाई सीमित प्रभाव डाल रही है। वजह यह है कि अभियानों का असर अस्थायी है — चेकिंग के दौरान कुछ घंटे अनुशासन दिखता है, पर अभियान खत्म होते ही लोग फिर वही पुरानी चाल पकड़ लेते हैं।
एसएसपी मणिकांत मिश्रा के अनुसार पुलिस लगातार चेकिंग अभियान चला रही है, फिर भी हालात नहीं सुधर रहे। इसका मतलब साफ है कि समस्या सिर्फ सख्ती की नहीं, बल्कि “व्यवहारिक परिवर्तन” की है।
अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर भी एक कारण
रुद्रपुर, जो अब औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र बन चुका है, वहां की सड़कें अभी भी पुराने ढांचे में जकड़ी हैं। हाईवे पर ओवरलोडेड ट्रक और डंपर, शहर के भीतर अनियोजित पार्किंग और संकरी गलियां—यह सब मिलकर यातायात व्यवस्था को चरमराते हैं।
ओवरलोड वाहन न केवल सड़कों की हालत खराब करते हैं बल्कि दुर्घटनाओं का बड़ा कारण भी बनते हैं। यह सब अधिक मुनाफे की लालच और प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है।
सिर्फ चालान नहीं, संस्कार की जरूरत
यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है कि चालान और लाइसेंस निलंबन से ट्रैफिक अनुशासन स्थापित नहीं हो सकता। जब तक नागरिक स्वयं यातायात नियमों के प्रति सजग नहीं होंगे, तब तक सड़कें “चालान की फैक्ट्री” बनी रहेंगी।
स्कूलों और कॉलेजों में ट्रैफिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। हर ड्राइविंग लाइसेंस देने से पहले सड़क सुरक्षा प्रशिक्षण और टेस्ट को कठोर बनाया जाए।
ट्रैफिक पुलिस को चाहिए आधुनिक संसाधन
आज भी कई बार रुद्रपुर की ट्रैफिक पुलिस बिना आवश्यक संसाधनों के काम कर रही है। सीसीटीवी कैमरों की कमी, सिग्नल सिस्टम की खराबी, और स्टाफ की सीमित संख्या पुलिस को कमजोर बनाती है।
कंट्रोल रूम से की जा रही कार्रवाई स्वागतयोग्य है, परंतु जब तक तकनीक को व्यापक स्तर पर लागू नहीं किया जाएगा, तब तक यह अभियान सतही ही रहेगा।
सामाजिक मानसिकता में बदलाव की दरकार
समस्या का मूल कारण “मैं क्यों नियम मानूं” वाली मानसिकता है। किसी को जल्दी है, किसी को दिखावा करना है, किसी को अपनी बाइक की आवाज सुनानी है — ये सब मिलकर सड़कों को दुर्घटना स्थल बना देते हैं।
यदि समाज में नियम तोड़ना “शर्म” का विषय बने, तो परिवर्तन स्वतः संभव है। लेकिन अफसोस, आज भी लोग नियम पालन करने वालों को “भोंदू” और नियम तोड़ने वालों को “हीरो” समझते हैं। यह मानसिकता हमें हर दिन नई दुर्घटनाओं की ओर ले जा रही है।
विभागीय सख्ती को स्थायी स्वरूप देना होगा
सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी मोहित कोठारी का कहना है कि रोजाना चेकिंग अभियान चलाकर कार्रवाई जारी है। यह सराहनीय है, परंतु इसे “अभियान” नहीं, बल्कि “निरंतर व्यवस्था” बनाना होगा।
प्रत्येक थाने क्षेत्र में ट्रैफिक स्वयंसेवकों की नियुक्ति, कैमरा आधारित चालान प्रणाली और सोशल मीडिया पर सार्वजनिक “ब्लैकलिस्ट” जारी करने जैसी पहलें बदलाव ला सकती हैं।
राजस्व बनाम सुरक्षा: प्राथमिकता क्या है?
चालानी कार्रवाई से विभाग का राजस्व तो बढ़ता है, लेकिन सड़क सुरक्षा का स्तर नहीं। सरकार को तय करना होगा कि उद्देश्य पैसा कमाना है या जान बचाना।
जब तक ट्रैफिक विभाग की सफलता “चालान की संख्या” से मापी जाएगी, तब तक जनता इसे “वसूली अभियान” ही समझेगी, सुधार अभियान नहीं।
जनजागरूकता का नया अध्याय जरूरी
हर वार्ड, स्कूल, और औद्योगिक क्षेत्र में ट्रैफिक जागरूकता शिविर चलाना चाहिए। स्थानीय रेडियो, अखबार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से “सड़क सुरक्षा अभियान” को जनांदोलन बनाना होगा।
ट्रैफिक सुरक्षा को उसी गंभीरता से लेना चाहिए, जैसे हम चुनाव या स्वच्छता अभियान को लेते हैं। कार्रवाई नहीं, परिवर्तन चाहिए
रुद्रपुर की सड़कों पर अनुशासन लौटाना सिर्फ पुलिस का नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है।
यदि हर व्यक्ति यह ठान ले कि वह नशे में वाहन नहीं चलाएगा, हेलमेट पहनेगा, मोबाइल पर बात नहीं करेगा, तो शहर का चेहरा बदल सकता है।
पाँच सौ लाइसेंस सस्पेंड करना गर्व की नहीं, शर्म की बात है — क्योंकि इसका अर्थ है कि पाँच सौ लोग कानून की अवहेलना में पकड़े गए।
अब वक्त आ गया है कि हम ‘चालान संस्कृति’ से आगे बढ़कर ‘संस्कार संस्कृति’ की ओर कदम बढ़ाएँ। तभी रुद्रपुर की सड़कें सचमुच सुरक्षित बनेंगी।


