
उत्तराखंड के राज्य बनने के बाद जनता को उम्मीद थी कि “छोटा राज्य” होने के कारण यहाँ पारदर्शिता और जवाबदेही की मिसाल कायम होगी। लेकिन दो दशक बाद सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है। सूत्रों के अनुसार, राज्य गठन के तुरंत बाद ही ट्रांसफर-पोस्टिंग का जो गंदा खेल शुरू हुआ था, वह अब एक संस्थागत भ्रष्टाचार में तब्दील हो चुका है — जिसे सत्ता, नौकरशाही और दलालों का त्रिकोण मिलकर चला रहा है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
आज स्थिति यह है कि किसी भी विभाग में पद, स्थान और प्रमोशन पैसों, सिफारिशों और राजनीतिक संपर्कों से तय होता है। कई विभागों में यह खेल इतनी मजबूती से जड़ें जमा चुका है कि इसे “पोस्टिंग माफिया नेटवर्क” कहना गलत नहीं होगा।
शिक्षा विभाग — सबसे बड़ा पोस्टिंग हब
सूत्रों के अनुसार, शिक्षा विभाग उत्तराखंड का सबसे बड़ा “पोस्टिंग बाजार” है। यहाँ ट्रांसफर सीजन आते ही पूरा सिस्टम सक्रिय हो जाता है।
- शिक्षक से लेकर प्रिंसिपल तक की तैनाती के लिए ₹50,000 से ₹5 लाख तक की दरें तय हैं।
- बीईओ और डीईओ स्तर पर यह रकम ₹8 लाख तक पहुँच जाती है।
- जो लोग “फेवरेट स्कूल” या शहर के नजदीक पोस्टिंग चाहते हैं, उनसे अतिरिक्त “सुविधा शुल्क” लिया जाता है।
सूत्रों का कहना है कि निदेशालय से लेकर सचिवालय तक ट्रांसफर लिस्ट तैयार करने वाले क्लर्क और पीए तक इसमें हिस्सेदार होते हैं। कई बार तो आदेश जारी होने के बाद जानबूझकर रोक दिए जाते हैं ताकि “सेटिंग” पूरी की जा सके।
स्वास्थ्य विभाग — डॉक्टरों की पोस्टिंग बन गई मंडी
स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार अब किसी से छिपा नहीं है। सूत्रों के मुताबिक —
- डॉक्टरों की नियुक्ति ₹5 से ₹7 लाख तक में होती है।
- फार्मासिस्ट और नर्सिंग स्टाफ की पोस्टिंग ₹2 से ₹3 लाख तक में तय होती है।
- अगर कोई डॉक्टर मनपसंद शहर या अपने गृह जनपद में रहना चाहता है, तो ₹8 से ₹10 लाख तक का “रेट” तय किया जाता है।
इस खेल में मध्यस्थों का पूरा नेटवर्क काम करता है — जिनके तार सचिवालय, स्वास्थ्य निदेशालय, और कुछ मंत्रियों तक जुड़े बताए जाते हैं। आर.टी.आई. एक्टिविस्ट संजय पांडे और चंद्रशेखर जोशी जैसे लोग इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और विजिलेंस में शिकायतें दर्ज करा चुके हैं।
लोक निर्माण विभाग (PWD) — ठेकों से जुड़ी पोस्टिंग
PWD में पोस्टिंग वही पाता है जो “बजट और ठेके” वाले क्षेत्रों में तैनाती के लिए भुगतान करता है।
- जूनियर इंजीनियर (JE) से लेकर एक्सईएन तक, हर स्तर की पोस्टिंग में लाखों रुपये की बोली लगती है।
- पहाड़ी जिलों में कम और मैदानी जिलों में अधिक दरें तय हैं, क्योंकि वहीं से ठेकों में बड़ी कमाई होती है।
सूत्रों के मुताबिक, कई बार अफसर खुद ठेकेदारों से “मिलकर” अपनी पोस्टिंग तय करवाते हैं ताकि सरकारी योजनाओं में हिस्सेदारी मिल सके।
राजस्व विभाग — तहसील स्तर पर रिश्वत का बोलबाला
राजस्व विभाग में पटवारी, नायब तहसीलदार और तहसीलदार की पोस्टिंग के लिए मोटी रकम दी जाती है।
- एक पटवारी क्षेत्र तय कराने के लिए ₹1 से ₹2 लाख तक
- तहसीलदार स्तर पर ₹5 से ₹6 लाख तक
- नायब तहसीलदार के लिए ₹3 से ₹4 लाख तक
यहाँ तक कि प्रमोशन के समय भी “फाइल क्लियर” कराने के लिए पैसे मांगे जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि कुछ मामलों में मंत्री कार्यालय के निजी कर्मचारी सीधे रूप से इन डील्स में शामिल पाए गए हैं।
परिवहन विभाग — चेकपोस्टों की नीलामी
परिवहन विभाग में यह खेल खुलेआम होता है। हर चेकपोस्ट और आरटीओ कार्यालय की “कमाई क्षमता” के अनुसार वहाँ पोस्टिंग तय होती है।
- सीमा चौकियों या औद्योगिक जिलों में तैनाती पाने के लिए ₹3 से ₹5 लाख तक का भुगतान आम बात है।
- कई अधिकारी एक साल में “अपना पैसा निकालने” के लिए अवैध वसूली शुरू कर देते हैं, जिससे जनता और ट्रांसपोर्ट व्यवसायी दोनों त्रस्त हैं।
पुलिस विभाग — थाना-पोस्टिंग में सौदेबाजी
पुलिस विभाग में थानों और चौकियों की पोस्टिंग अब “राजनीतिक कृपा” और “वित्तीय क्षमता” पर निर्भर है।
- थाना प्रभारी बनने के लिए ₹2 से ₹5 लाख तक
- अच्छे थाने या शहर में पोस्टिंग के लिए ₹8 से ₹10 लाख तक
- चौकी इंचार्ज के लिए ₹50,000 से ₹1 लाख तक
सूत्रों के अनुसार, कुछ जिलों में स्थानीय विधायक और मंत्री भी पोस्टिंग में हस्तक्षेप करते हैं ताकि अपने “नजदीकी अधिकारियों” को रख सकें।
सचिवालय, सेवा आयोग और निगम — प्रमोशन में भी दखल
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सूत्रों ने यह भी बताया कि अब यह गंदा खेल सचिवालय तक पहुँच चुका है।
- प्रमोशन के लिए फाइल आगे बढ़ाने के नाम पर ₹1 से ₹2 लाख तक की मांग की जाती है।
- सेवा आयोगों में भी “रिटायरमेंट के पहले ट्रांसफर” या “प्रभावशाली पदों” पर टिके रहने के लिए रकम चुकाई जाती है।
- कुछ अधिकारी तो इस कार्य के लिए अपने निजी एजेंट नियुक्त करते हैं जो दलालों से संपर्क रखते हैं।
ऊर्जा, जल संस्थान और नगर निकाय भी अछूते नहीं
ऊर्जा विभाग में सब-डिवीजनल इंजीनियर और लाइन सुपरवाइजर स्तर पर भी पोस्टिंग के लिए पैसा चलता है।
जल संस्थान और नगर निकायों में अभियंता, सफाई निरीक्षक और क्लर्क स्तर तक लेन-देन की परंपरा है।
सूत्रों का दावा — सीधा रिश्ता सत्ता से
कई सूत्रों का दावा है कि इस पूरी व्यवस्था की जड़ सत्ता के गलियारों में है। ट्रांसफर से आने वाला पैसा “राजनीतिक फंडिंग” में उपयोग होता है। कुछ विभागीय अधिकारी अपनी हिस्सेदारी सीधे मंत्रियों के रिश्तेदारों या निजी सहायकों (PA) के माध्यम से ऊपर भेजते हैं।
एक सूत्र के शब्दों में —
“सिस्टम ऐसा बना दिया गया है कि बिना पैसा या सिफारिश के कोई आदेश नीचे तक नहीं उतरता। फाइलें जानबूझकर लटकाई जाती हैं, ताकि लेन-देन का अवसर मिल सके।”
🔹 जनता की उम्मीदों पर ग्रहण
उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में यह स्थिति बेहद शर्मनाक है। जहाँ राज्य गठन का उद्देश्य सुशासन और पारदर्शिता था, वहीं आज भ्रष्टाचार ने इसे अंदर से खोखला कर दिया है।
हर ट्रांसफर सीजन आने पर सरकारी गलियारों में “मोलभाव” और “संपर्क-संवाद” का मौसम शुरू हो जाता है। ईमानदार अधिकारी हाशिए पर हैं, जबकि “सेटिंगबाज” पदोन्नति पा रहे हैं।
सुधार की आखिरी उम्मीद
जब तक ट्रांसफर और प्रमोशन की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन, पारदर्शी और लोकायुक्त निगरानी में नहीं लाई जाती, तब तक यह काला कारोबार जारी रहेगा।
सूत्रों का कहना है कि इस व्यवस्था से हर साल करोड़ों रुपये का “ब्लैक रेवेन्यू” उत्पन्न होता है, जो अंततः जनता की सेवाओं को पंगु बना देता है।
उत्तराखंड की जनता अब यह सवाल पूछ रही है —
“क्या यह वही देवभूमि है, जहाँ भ्रष्टाचार भी ट्रांसफर लिस्ट के साथ छपता है?”




 
		
 
		 
		