
हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं संबद्ध डॉ. सुशीला तिवारी चिकित्सालय, हल्द्वानी में शासन के आदेशों की खुली अवहेलना का मामला सामने आया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा 1 मई 2025 से सभी कर्मचारियों के लिए बायोमेट्रिक उपस्थिति अनिवार्य की गई थी, जिसके आधार पर वेतन/पारिश्रमिक जारी करने के स्पष्ट निर्देश जारी हुए थे। मुख्य सचिव, सचिव चिकित्सा शिक्षा, निदेशक चिकित्सा शिक्षा और कॉलेज प्राचार्य तक के आदेशों के बावजूद भी मेडिकल कॉलेज में अब तक “ट्रस्ट वाली कार्यप्रणाली” चल रही है।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

सूत्रों के अनुसार, उपनल कर्मचारियों का वेतन अब भी गेटों पर रखे रजिस्टरों के आधार पर जारी किया जा रहा है, जबकि बायोमेट्रिक सिस्टम को केवल औपचारिकता बनाकर छोड़ दिया गया है। कई कर्मचारी नियमित रूप से बायोमेट्रिक उपस्थिति नहीं दर्ज कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कुछ कर्मचारी सुबह 11:30 बजे तक दफ्तर पहुंचते हैं, मात्र एक-दो घंटे बैठकर पूरे दिन कार्यालय से गायब रहते हैं।
यहां तक कि कई कर्मचारी महीने में केवल एक-दो दिन उपस्थित होकर पूरी महीने की हाजिरी पंजिका में हस्ताक्षर कर लेते हैं।
शासन की मंशा के विपरीत, यह व्यवस्था पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों पर सवाल खड़े करती है।
एक गंभीर आरोप यह भी सामने आया है कि फ्रंट डेस्क एक्जीक्यूटिव (रिसेप्शनिस्ट) को कार्मिक अनुभाग (उपनल) का प्रभारी बना दिया गया है। संबंधित व्यक्ति न तो समय पर कार्यालय आता है और न ही अपने कार्यस्थल पर उपस्थित रहता है, फिर भी वह अन्य कर्मचारियों के अवकाश स्वीकृत करने में बाधा डालता है।
जबकि अधिकांश कर्मचारी अपने विभागाध्यक्ष या प्रभारी से विधिवत अवकाश स्वीकृत कराते हैं, फिर भी उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया जाता है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि जब फ्रंट डेस्क एक्जीक्यूटिव का दायित्व “जनसंपर्क एवं मरीज सहायता कार्य” है, तो उन्हें प्रशासनिक फाइलों के बीच क्यों बिठाया गया है?
अस्पताल में “May I Help You” काउंटर का अभाव मरीजों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन रहा है। पहाड़ों से आने वाले सैकड़ों मरीज और उनके तीमारदार सरकारी सुविधाओं की जानकारी के अभाव में अस्पताल परिसर में इधर-उधर भटकते रहते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि फ्रंट डेस्क कर्मियों को अपने पदानुसार “मरीज सहायता काउंटर” पर नियुक्त किया जाए ताकि वे जनसंपर्क और सूचना देने का कार्य कर सकें।
साथ ही, मेडिकल कॉलेज प्रशासन को शासन के आदेशों का अक्षरशः पालन कराना चाहिए, अन्यथा यह लापरवाही न केवल प्रशासनिक अनुशासन को कमजोर कर रही है बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगा रही है।
यह शिकायत पत्र चिकित्सा शिक्षा विभाग के निदेशक, प्राचार्य राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी और कुमाऊं मंडल के आयुक्त को भी प्रेषित किया गया है।
अब देखना यह है कि शासन स्तर पर इस खुली अनियमितता और कार्यसंस्कृति की गिरावट पर क्या कार्रवाई होती है।




 
		
 
		 
		